EditorialHimachal

*Editorial: कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की उपेक्षा—कब जागेगी सरकार? भविष्य की कृषि व्यवस्था बचाने का सवाल*

स्थायी कुलपति की नियुक्ति, बजट वृद्धि, रिक्त पदों की भरपाई और कृषि-वेटरनरी स्नातकों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ठोस नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत

Tct

Editorial:by bksood 
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की उपेक्षा—कब जागेगी सरकार? भविष्य की कृषि व्यवस्था बचाने का सवाल

Tct ,bksood, chief editor

चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर—जिसने प्रदेश को दशकों तक श्रेष्ठ कृषि वैज्ञानिक, वेटरनरी विशेषज्ञ, शोधकर्ता और प्रशिक्षित कृषि विस्तारक दिए—आज ऐसी समस्याओं से जूझ रहा है जो सीधे-सीधे प्रदेश की कृषि विकास यात्रा को प्रभावित कर रही हैं। यह संस्थान सिर्फ एक विश्वविद्यालय नहीं, बल्कि हिमाचल की खेती, बागवानी, डेयरी, पशुपालन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आधारशिला रहा है। लेकिन वर्तमान में इसकी बुनियादी व्यवस्थाएँ लगातार कमजोर पड़ रही हैं और सरकार की अनदेखी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।

सबसे प्रमुख मुद्दा विश्वविद्यालय में स्थायी कुलपति की नियुक्ति का है। जून 2023 से यह महत्वपूर्ण पद खाली है। नेतृत्व के अभाव में नीतिगत निर्णय टलते जा रहे हैं, शोध परियोजनाएँ रुक रही हैं और प्रशासनिक ढांचा धीमा पड़ गया है। विश्वविद्यालय जैसा विशाल संस्थान ‘एड-हॉक’ व्यवस्था पर नहीं चल सकता। तमाम विभागों का समन्वय, बाहरी निधि लाना, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय शोध सहयोग स्थापित करना—ये सभी कार्य स्थायी नेतृत्व मांगते हैं जिसे सरकार को अब और देर किए बिना पूरा करना चाहिए।

दूसरी गंभीर समस्या है विश्वविद्यालय को मिलने वाला सीमित बजट। पड़ोसी राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों की तुलना में पालमपुर विश्वविद्यालय का कुल अनुसंधान बजट लगभग आधा है। इससे आधुनिक प्रयोगशालाएँ अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं कर पा रहीं, नई तकनीकों पर शोध बाधित हो रहा है और कई विभाग वर्षों पुराने उपकरणों से ही काम चलाने को मजबूर हैं। जबकि यह विश्वविद्यालय हिमाचल जैसे पर्वतीय प्रदेश के लिए उच्च-ऊंचाई वाली फसलों, औषधीय पौधों, पशुधन प्रबंधन, बागवानी रोग नियंत्रण और जैविक खेती जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में अद्वितीय क्षमता रखता है। बेहतर बजट से यह विश्वविद्यालय प्रदेश की कृषि आय बढ़ाने में अभूतपूर्व योगदान दे सकता है।

इसके साथ ही बड़ी चुनौती है विश्वविद्यालय में लंबे समय से खाली पड़े शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों की। कई विभागों में प्रोफेसर, वैज्ञानिक, तकनीकी कर्मचारी और लैब सहायक तक के पद खाली पड़े हैं। इसका सीधा असर छात्रों की पढ़ाई और शोध की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। कई पीएचडी और एमएससी शोधार्थियों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा। यह स्थिति न केवल विश्वविद्यालय की शैक्षणिक प्रतिष्ठा को प्रभावित करती है, बल्कि भविष्य में राष्ट्रीय रैंकिंग और केंद्र सरकार की शोध परियोजनाओं के लिए आवेदन पर भी नकारात्मक असर डालती है।

इन सबके बीच सबसे चिंताजनक स्थिति छात्रों के भविष्य की है। कृषि, वेटरनरी, बेसिक साइंस और होम साइंस कॉलेज से हर वर्ष सैकड़ों छात्र ग्रेजुएशन और पोस्‍ट-ग्रेजुएशन पूरी कर बाहर निकलते हैं। लेकिन विश्वविद्यालय की देहरी पार करते ही इन विद्यार्थियों को बेरोजगारी के बाजार में भटकना पड़ता है। सरकारी, निजी और शोध आधारित रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं, स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा नहीं मिल रहा, और कृषि आधारित उद्योगों की कमी के कारण युवाओं का उत्साह टूट रहा है। एक समय था जब युवा वर्ग कृषि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के प्रति अत्यधिक आकर्षित था, लेकिन यह क्रेज लगातार घटता जा रहा है—और यह किसी भी सरकार के लिए गंभीर चेतावनी है।

सरकार को चाहिए कि वह कृषि विश्वविद्यालय की समस्याएँ कृषि अनुदान आयोग व अन्य केंद्रीय एजेंसियों के सामने मजबूती से उठाए। बजट बढ़ाया जाए, शिक्षकों और वैज्ञानिकों की रिक्तियाँ भरी जाएँ, शोध परियोजनाओं के लिए विशेष पैकेज दिया जाए, और कृषि-वेटरनरी क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए नई नीतियाँ बनाई जाएँ। हिमाचल में कृषि-आधारित स्टार्टअप्स, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों, फीड मिलों, पशु पोषण केंद्रों, औषधीय व जैविक उत्पादों के उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए। इससे युवाओं को रोजगार भी मिलेगा और राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में सुधार केवल एक विश्वविद्यालय का सुधार नहीं, बल्कि हिमाचल के किसानों, पशुपालकों और ग्रामीण क्षेत्रों के भविष्य को सुरक्षित करने का मार्ग है। सरकार अगर अब भी इन समस्याओं पर ध्यान नहीं देती, तो इसका सीधा नुकसान प्रदेश की कृषि उत्पादन क्षमता, किसान आय और वैज्ञानिक अनुसंधान व्यवस्था को होगा। समय आ गया है कि सरकार तत्काल ठोस कदम उठाए और इस विश्वविद्यालय को फिर से उसी गौरवशाली स्थिति में लाए जिसके लिए यह कभी जाना जाता था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button