राघव “मुझे पालमपुर ले चल , वहां पर मेरा ऑक्सीजन लेवल बिल्कुल सही हो जाएगा डॉ शिव कुमार के अंतिम शब्द ! !और इच्छा”
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राघव “मुझे पालमपुर ले चल , वहां पर मेरा ऑक्सीजन लेवल बिल्कुल सही हो जाएगा डॉ शिव कुमार के अंतिम शब्द ! !और इच्छा”
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किसी ने सपने में भी नहीं सोचा हडॉ शिवकुमार इतनी जल्दी इस दुनिया को अलविदा कहकर हमेशा हमेशा के लिए प्रभु चरणों में विलीन हो जाएंगे।
आज 9 दिसंबर को उनको अंतिम श्रद्धा श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है ।
शिवकुमार पालमपुर की एक ऐसे हस्ती थी जिनके बारे में चंद शब्द लिख देना सूर्य को दीपक दिखाने के समान होगा। वह शब्दों के या तारीफ के मोहताज नहीं थे ।वह लोगों के दिलों पर राज करते थे तथा उनके दिलों में बसते थे ,और हमेशा बस्ते रहेंगे।
कल उनके सपुत्र है बताया कि हमारी लाख कोशिशें करने के बावजूद संसाधन होने के बावजूद सभी प्रकार इलाज करवाने के पश्चात भी उन्हें अपने साथ नहीं ला पाए उनकी अंतिम इच्छा कि, राघव मुझे पालमपुर ले चल मेरा ऑक्सीजन लेवल वहां पर ठीक हो जाएगा पालमपुर जाते ही मैं ठीक हो जाऊंगा, वहां पर मुझे मेरे अपने बुला रहे हैं, मेरे मरीज मेरा इंतजार कर रहे हैं, मुझे अपना आई हॉस्पिटल संभालना है ,मुझे यहां से ले चल,,, पालमपुर जाते ही मैं ठीक हो जाऊंगा ,,मेरा ऑक्सीजन लेवल बिल्कुल सही हो जाएगा.…
इतना प्यार ,इतना लगाव ,इतना स्नेह और इतना अपनापन था उन्हें पालमपुर से पालमपुर के लोगों से।
पालमपुर की वादियों में उनकी रूह बस्ती थी। स्वयं डॉक्टर होने के बावजूद भी वे अपने इमोशंस पर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पा रहे थे, उन्हें लग रहा था कि मेरा संसार केवल पालमपुर है ,मेरे अपने केवल पालमपुर में बसते हैं ,मेरा इलाज केवल पालमपुर में ही होगा ,इतनी बड़ी भावना थी उनकी पालमपुर के प्रति पालमपुर के लोगों के प्रति इतना विश्वास था उन्हें , कि वह पालमपुर जाते ही सही हो जाएंगे, ठीक हो जाएंगे, परंतु ईश्वर के आगे किसी की नहीं चलती, यह बात हमें मान लेनी चाहिए।
हमारे पास कितने ही संसाधन हों हम कितने बड़े बड़े डॉक्टर हों कितने बड़े हॉस्पिटल हों ,या हमारे पास कितने ही अधिक तीमारदारों की फ़ौज हो, कितने ही हमारे सेवकों हों, फिर भी ईश्वर ने जो रचना की होती है वह होकर ही रहती है।
उनके सुपुत्र राघव ने बताया कि फॉर्टिस हॉस्पिटल से जब उन्हें ग्रेसियन हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया तो वहां के जनरल मैनेजर के पिताजी को पता चला कि डॉ शिवकुमार ग्रेसियन हॉस्पिटल में एडमिट हैं तब उन्होंने अपने जनरल मैनेजर पुत्र से कहा कि जब डॉक्टर साहब ठीक हो जाए तो उन से मेरी दवाइयां लिखवा देना, क्योंकि मैंने उनसे कई वर्ष पहले अपना ट्रीटमेंट करवाया था तथा उन्होंने जो दवाइयां लिखी थी वह मुझे बिल्कुल सही रही, और तब से लेकर आजतक मैं एकदम सही हूं फिट हूं। तो ऐसे थे हमारे डॉक्टर साहब ।
डॉक्टर साहब के पेशेंट लोगों को डॉ शिव पर इतना अधिक विश्वास होता था कि वह बड़े बड़े हॉस्पिटल में जाने के बावजूद भी डॉक्टर शिव को फोन करते थे कि डॉक्टर साहब इन्होंने यह दवाइयां लिखी है क्या यह सही है? कुछ लोग सुपर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल में जाने तथा दिखाने के बाद उस डॉक्टर की प्रिसक्रिप्शन,पालमपुर आकर डॉक्टर शिव साहब को दिखाते थे कि क्या इन्होंने यह सही ट्रीटमेंट लिखा है? इसको बोलते हैं विश्वास !
रोटरी फाउंडेशन के जितने भी सदस्य हैं, मैनेजमेंट के लोग हैं इस फाउंडेशन के सदस्य हैं जो परोक्ष या सीधे रूप से जुड़े हुए जितने भी लोग हैं आज सभी की आंखें नम है ।
आज बाल आश्रम के सभी बालक जाने अनजाने में द्रवित होंगे …वृद्ध आश्रम के लोग खुद को असहाय समझ रहे होंगे.. रोटरी हॉस्पिटल के जितनी भी ब्रांच इस हैं वहां के सभी लोग उन्हें दुआएं दे रहे होंगे, कि उनकी वजह से वे आज इस संसार में सम्मान भरा जीवन जी रहे हैं तथा इनके द्वारा किए गए प्रयासों से जो हॉस्पिटलज से बने हैं उनकी वजह से वे आज इस संसार में रोजी रोटी कमा रहे हैं और मरीज लोग अच्छी तरह से देख पा रहे हैं अच्छा इलाज करा पा रहे हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि इस सब में डॉक्टर शिव का एक टके का भी फायदा नहीं है। फायदा है तो केवल दुआओं का आशीर्वाद का और शुभकामनाओं का तथा आज नम आंखों का।
आज लाखों मरीज होंगे जो डॉ शिवकुमार को उनके द्वारा की गई सेवाओं को याद कर रहे होंगे, रोटरी क्लब हो या सनातन धर्म सभा हो , रोटरी हो या राजनीतिक लोग हो ,आम जनमानस हो,सभी लोग आज डॉक्टर शिव कुमार को याद करके उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहे हैं ।
राजनीतिक क्षेत्र में भी, उनके धुर विरोधी भी उनके लिए आज आंसू बहा रहे हैं। राजनीति में रहते हुए उन्होंने कितने ही लोगों का भला किया कितने ही लोगों को उनके घर के नजदीक नौकरी करने का अवसर दिया तथा कितने ही लोगों को रोजगार दिलवाया वैसे भी आज उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
जब कोई भी व्यक्ति किसी बड़े इंस्टिट्यूट में होता है तो उसके मतभेद भी लोगों से रहते हैं, तथा विचारों में भिन्नता भी होती है, आज उनके विचारों से इत्तेफाक ना रखने वाले लोग भी उनके चले जाने से उनकी कमी महसूस कर रहे हैं, जिसका सीधा सा मतलब है कि वह जब भी कोई बात कहते हैं या कोई उनके मतानुसार निर्णय नहीं होता था तो वह सब इंस्टीट्यूट के भले के लिए कहते थे ना कि स्वयं के हित के लिए!
डॉ शिवकुमार एक ऐसी हस्ती थी जो कि उस समय के पालमपुर क्षेत्र के सबसे बड़े डॉक्टर कहलाते थे तथा उनकी श्रीमती डॉ विजय शर्मा भी एकमात्र प्राइवेट डॉक्टर थी ।
अपने 55 साल के लंबे चिकित्सीय जीवन में अगर वह चाहते तो 55 सालों में एक बहुत बड़ा मेडिकल इंस्टीट्यूट जो शायद फॉर्टिस के लेवल का भी हो सकता था खड़ा कर लेते। और बड़े-बड़े सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर उनके मातहत होते।लेकिन उन्होंने कभी भी पैसों को तरजीह नहीं दी बिजनेस को अपने जीवन में नहीं अपनाया, व्यापार की जगह व्यवहार और और दौलत की जगह दया संपन्नता की जगह सेवा और ख्याति के जगह ख्यालात को तरजीह दी ,और यह बात इसलिए कही जा रही है कि अगर वे केवल इमानदारी से ही अपनी मेडिकल प्रोफेशन को करते और लोगों की सेवा में न पड़ते, तो आज वे करोड़ों नहीं आज वह अरबों के मालिक होते , और बहुत बड़ा हॉस्पिटल या कोई मेडिकल कॉलेज भी चला सकते थे ,परंतु वह डॉक्टर जो कभी किसी की मजबूरी समझ कर दवाई के पैसे ना लेता हो, जो डॉक्टर कंसल्टेशन फीस माफ कर दे ,जो डॉक्टर किसी मरीज को उसे घर जाने के लिए अपनी जेब से किराया दे दे ,बारिश लग जाए तो उसे छाता खरीद कर दे दे ,वह तरक्की कैसे करेगा? उसका तो वही 40 -50 साल वाला पुराना मकान ही रहेगा ना?
आज से 40 साल पहले जो डॉक्टर शिव कुमार ने मकान बनाया था उसमें एक भी इंट का इजाफा नहीं कर सके! उनकी सफलता कहीं या असफलता? जबकि उन्होंने अरबों रुपए की संपत्ति लोगों के हित के लिए बनवाई और वह अपने घर में वह 1 ईंट तक ना लगवा सके तो इसे आप क्या कहेंगे डॉक्टर साहब की सफलता या असफलता ?
यह बात सत्य है कि वह अपने घर में 1 ईंट तक नहीं लगवा पाये एक छोटा सा क्लीनिक नहीं बना पाए ।आज भी वह किराए के क्लीनिक में ही गुजारा कर रहे हैं सांसारिक संपत्तियों की उन्हें कभी इच्छा नहीं हुई ,इच्छा हुई तो केवल जनसेवा लोकसेवा लोगों के दुख दर्द बांटने की और लोगों को सुविधाएं प्रदान करने की, मैं बहुत बड़ा हॉस्पिटल या बहुत बड़ी इमारत या बंगला नहीं बना पाए परंतु लोगों के दिलों में जो उन्होंने जगह बनाई वह शायद हमेशा बनी रहेगी और उसे कोई खाली भी नहीं करवा पाएगा।
कल शोक सभा में श्री K K SHARMA जी ने बहुत अच्छी बात कही कि, यह बात शत प्रतिशत मान लीजिए कि डॉक्टर साहब का अब इस इस संसार में पुनर्जन्म कभी नहीं होगा, क्योंकि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो चुका है और वह 84 के फेर से छूट चुके हैं, अब वह हमेशा स्वर्ग में वास करेंगे कितनी बड़ी बात कही किसी प्रशंसक ने। जिसे स्वर्ग में स्थान मिल जाता है वह कभी संसार में लौटकर नहीं आता और स्वर्ग में स्थान कैसे मिलता है यह हम सभी जानते हैं।
जो डॉ शिव कर कर गए उसी का परिणाम है कि पारिवारिक संस्कारों के चलते उनके पुत्र राघव ने अपनी तथा अपनी पत्नी की अच्छी खासी लाखों रुपए महीने की नौकरी को त्याग कर अपने छोटे से शहर पालमपुर में अपने साधन संपन्न माता पिता के पास उनकी सेवा करने को तरजीह दी ।
अगर राघव शर्मा को आज का श्रवण कुमार कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ,क्योंकि इनके माता-पिता दोनों डॉक्टर थे दोनों की समाज में बहुत बड़ी इज्जत और पैठ थी, अपना घर पर था, नौकर चाकर थे ,पैसों की कमी नहीं थी ,वह चाहते तो कह देते कि आपके पास सब कुछ है आपके लिए मैं दो सेवादार या नौकर और रख देता हूं, परंतु मैं अपनी लाखों की नौकरी छोड़कर आपके पास नहीं आ सकता, और अपनी पत्नी को भी बड़े शहर से छोटे शहर में नहीं ला सकता ,जो कि आजकल अक्सर देखने में मिलता है कि बच्चे पढ़ लिखकर बड़े शहरों में स्थापित हो जाते हैं तथा अगर उनके माता-पिता उनसे कुछ उम्मीद करें तो वह कह देते हैं कि हम आपके लिए यह सुविधा वहीं घर पर ही मुहैया करवा देते हैं ,सभी शहरों वाली सुविधा आपको वहां पर घर बैठे ही दिलवा देते हैं, आप आराम से घर पर रहिए, परंतु राघव ने ऐसा नहीं सोचा उसने अपने करियर के बारे में नहीं बल्कि अपने पिता श्री और माता श्री के प्रति अपने फर्ज को समझा। लाखों की नौकरी को ठोकर मार कर पालमपुर आ गए, वरना आज वह किसी कंट्री में हेड होते!
उन्होंने गुड़गांव में जो फ्लैट लिया था वह आज 3BHK से बढ़कर 4 बीएचके या 5 bhk हो गया होता या वह यह कह सकते थे कि मम्मी डैडी आप गुडगांव चले आइए यहां पर बहुत बड़े-बड़े हॉस्पिटल अच्छी सुविधाएं हैं आपकी सेहत ठीक नहीं रहती आप मेरे साथ रहिए और अपनी रिटायर्ड लाइफ आराम से जी लीजिए ।
परंतु जैसा बाप वैसा बेटा वाली कहावत राघव शर्मा ने सही चरितार्थ की है जिन परिस्थितियों में वह अपनी अच्छी खासी नौकरी को लात मारकर यहां पर अपने माता-पिता के साथ पालमपुर में रहने आए हैं तथा उनकी सेवा तथा उनके द्वारा किए गए कार्य से प्रेरित होकर वह भी भविष्य में उसी राह पर चलेंगे जिस पर उनके पिता श्री डॉक्टर शिवकुमार चलते आए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी! क्योंकि राघव शर्मा ने भी पैसों जगह अपने फर्ज को अधिक समझा, अपने माता पिता की इच्छाओं को ज्यादा महत्व दिया, अपने करियर की बजाए अपने फर्ज को अधिक समझा, उम्मीद है कि वह अपने पिता श्री के दर्शाए मार्ग पर और उनके सिद्धांतों पर अमल करते रहेंगे।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि डॉ शिवकुमार को प्रभु अपने चरणों में स्थान दे उन्हें मोक्ष प्राप्त हो तथा उनके सुपुत्र उनका अनुसरण करते हुए इसी तरह लोकहित तथा जन सेवा में जुट जाएं ।
अंत में यही कहेंगे कि डॉ शिवकुमार हमेशा स्वर्ग में रहे तथा अपने अनुयायियों को अपना आशीर्वाद और मार्गदर्शन देते रहें।
अंतिम अरदास ॐ शांति ॐ