शख्शियत

*डॉ शिवकुमार जी की पुण्य स्मृति पर विशेष*

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स्मृति शेष डॉ. शिव कुमार शर्मा

सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा पंजाब (पंजीकृत) के प्रधान आदरणीय डॉ. शिवकुमार शर्मा जी एक लंबी बीमारी के उपरांत 29 नवंबर 2021 को अपना पंच भौतिक शरीर त्याग कर प्रभु के श्रीचरणों में विलीन हो गए थे । उनके अपने शहर पालमपुर के हजारों निवासियों ने अपने पूर्व विधायक और प्रसिद्ध समाजसेवी डॉक्टर शिव कुमार शर्मा की अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी विदाई दी थी। उनके देहावसान के दुःखद समाचार को सुनकर समूचे सनातन परिवार में शोक की लहर फैल गई थी। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू, उत्तराखण्ड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और चण्डीगढ़ तक फैली विस्तृत कार्यक्षेत्र वाली सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के हजारों सनातन धर्मी कार्यकर्ता अपने प्रधान आदरणीय डॉक्टर शिव कुमार शर्मा जी की मृत्यु के हृदयद्रावक समाचार के असहय शोक से आहत हो हतप्रभ रह गए थे। सनातन संवर्धिनी ने  विशेष अंक में इस पत्रिका के संरक्षक और सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा तथा सनातन धर्म शिक्षा समिति के प्रधान पद पर दो दशक से अधिक समय तक विराजमान रहे डॉ. शिव कुमार शर्मा जी को श्रद्धा सुमन समर्पित किये थे।

सनातन संवर्धिनी के इस अंक को स्मृति शेष डॉ. शिव कुमार शर्मा जी को समर्पित किया।

डॉ शिवकुमार जो बहुत ही मृदुभाषी, विनम्र स्वभाव और सौम्य स्वरूप के व्यक्ति थे। उनका भुक्त था मानवसेवा और धर्मसेवा उनके जीवन का मूल ध्येय रहा है। महान स्वतन्त्रता सेनानी, निष्ठावान सनातन धर्मी, निष्काम सेवाधर्मी, समर्पित समाज सुधारक और उच्च कोटि के शिक्षाविद पूज्यपाद पिताश्री पण्डित अमरनाथ शर्मा जी के सहज सतत सांनिध्य में रहते हुए शैशवावस्था में ही डॉक्टर शिव कुमार जी के व्यक्तित्व में मानवसेवा के संवाहक सनातनी संस्कारों और मूल्यों का संचरण हुआ जो समय के साथ बाल्यकाल तक और अधिक पल्लवित और पुष्पित होते चले गए। उनका बाल्यकाल, यौवनावस्था और वानप्रस्थ तक का समस्त जीवन समाज सेवा और धर्म सेवा के प्रति समर्पित रहा है। उनकी दृष्टि में मानवता की सच्ची सेवा ही धर्म का सच्चा स्वरूप है। उनके जीवन भर के समस्त कार्यकलापों में धर्म और मानवता का यह समन्वित रूप देखा जा सकता है।

भारतीय संस्कृति में परोपकारी जीवन जीने वाले गौरवशाली व्यक्तियों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। उस व्यक्ति का जीवन ही वास्तविक जीवन है जिसके जीवन से उसके कुल गोत्र के साथ-साथ धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज और राष्ट्र का उत्थान होता है। अन्यथा संसार में करोड़ों व्यक्ति जन्म लेते हैं और अपने कर्मों का अच्छा-बुरा फल भीग कर कराल काल का ग्रास बन जाते हैं। एक तपस्वी की भाँति त्याग तपोमय और सेवापरायण जीवन जीने वाले, अपने वंश की समृद्ध परम्पराओं को और अधिक समृद्ध और परिपक्व करने वाले व्यक्ति का जीवन ही धन्य है, सफल और सार्थक है। अन्यथा तो कौवा भी जीता है, चिरकाल तक जीता है पर जीवन भर बलि के अन्त पर ही आश्रित रहता है। शास्त्र का स्पष्ट कथन है-

सः जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम्। काकोऽपि जीवति चिरं च बलिं च भुंक्ते ।

वह शक्ति स्वरूपा माता श्रीमती इन्द्रावती धन्य हैं जिन्होंने डॉक्टर शिवकुमार जैसे तपस्वी व देवतुल्य पुत्र को जन्म दिया। वास्तव में नारी का नारीत्व और मातृत्व सच्चे अर्थों में तभी सफल व पूर्ण होता है जब वह डॉ शिवकुमार जैसे कर्मवीर धर्मवीर और दानवीर भक्त जन को जन्म देती है। लोक में कहावत प्रचलित है कि

जननी जने तो भक्तजन के दाता के सूर। कै नहीं तो जननी बाँझ रहे काहै गँवावत नूर।

डॉक्टर शिवकुमार शर्मा जी का समग्र जीवन एक निष्काम सेवाव्रती का जीवन रहा । समाज का कोई भी वर्ग उनकी सेवाओं से अछूता नहीं रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में उन्होंने एक समर्पित डॉक्टर के रूप में अनगिनत गरीब और असहाय बीमार लोगों की भरपूर सेवा की । उन्होंने रोटरी को मानव सेवा का सर्वोत्तम साधन माना। वे पालमपुर में रोटरी क्लब के संस्थापक अध्यक्ष रहे। उन्होंने रोटरी आई हॉस्पिटल की स्थापना कर पालमपुर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्रदान की। नेत्र चिकित्सा के इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अस्पताल में लाखों गरीब, असहाय और विवश लोगों को नेत्र ज्योति प्रदान करने वाले प्रकाश-पुंज के रूप में वे सदा स्मरण किए जाते रहेंगे।

सामाजिक सेवा के क्षेत्र में डॉक्टर शिवकुमार शर्मा जी का अतुलनीय योगदान रहा है। उन्होंने वृद्धों और अनाथों के आवास के लिए आश्रम का निर्माण किया। विधवाओं और समाज द्वारा परित्यक्त महिलाओं के उद्धार के लिए नारी उत्थान केंद्र की स्थापना की। विकलांग एवं मंदबुद्धि बालकों के विकास के लिए अनेक प्रकार की कल्याणकारी योजनाएं प्रारंभ की। इतना ही नहीं, अपने क्षेत्र के युवाओं को रोजगार का प्रशिक्षण देने के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र की भी स्थापना की।

शिक्षा – प्रसार के क्षेत्र में भी डॉ शिवकुमार जी का महनीय योगदान रहा है। वह सनातन धर्म शिक्षा समिति के प्रधान पद पर विराजमान रहे। उनके मार्गदर्शन में सनातन धर्म शिक्षा समिति से संबद्ध लगभग 52 स्कूलों और 20 के लगभग महाविद्यालयों में शिक्षा का चौमुखी विकास हुआ। अनेक नई शिक्षा संस्थाओं को खोला गया जिसमें गरीब परिवार के बच्चों को पब्लिक स्कूलों में पढ़ने की सुविधा प्रदान की गई। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए उनमें अति उत्साह था क्योंकि वे मानते थे कि यदि सनातन धर्म और वैदिक संस्कृति को सुरक्षित रखना है तो इसके लिए संस्कृत भाषा का संरक्षण होना और उसे निरंतर विकसित करते रहना जरूरी है। तभी हमारे ऋषि-मुनियों की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित रह सकती है। भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी की भाँति वे धर्म को वैचारिक और सैद्धांतिक स्तर की अपेक्षा व्यावहारिक रूप अधिक देना चाहते थे। उनकी दृष्टि में धर्म केवल प्रभु सेवा या नामस्मरण नहीं है। धर्म नारायण सेवा के साथ-साथ नर की सेवा भी है। क्योंकि नर में भी नारायण का रूप विद्यमान है। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए डॉक्टर शिवकुमार शर्मा जी के कुशल नेतृत्व में सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा प्रत्येक दो वर्ष बाद अपने कार्यक्षेत्र में आने वाले किसी प्रदेश में विशाल स्तर पर सनातन धर्म महासम्मेलन का आयोजन करती रही है जिसमें राष्ट्र के मूर्धन्य संत, शंकराचार्यो, महामंडलेश्वरों और संस्कृत के श्रेष्ठ मनीषी विद्वानों को सनातन धर्म के लोककल्याणकारी स्वरूप पर गहन चर्चा के लिए आमंत्रित किया जाता रहा । डॉक्टर शिवकुमार जी के कार्यकाल में चंडीगढ़ के 19 सेक्टर में पंचमुखी हनुमान मंदिर का निर्माण हुआ। दिल्ली के ओखला क्षेत्र में आद्या शक्ति भगवती जगदम्बा के भव्य एवं दिव्य मंदिर का निर्माण किया गया। हरिद्वार में गोस्वामी गणेश दत्त चित्रशाला का निर्माण कार्य संपन्न हो चुका है। सनातन संवर्धिनी नामक अर्धवार्षिक पत्रिका का निरंतर प्रकाशन हो रहा है। उनकी इन बहुमुखी सेवाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि डॉ शिवकुमार शर्मा जी केवल एक व्यक्ति नहीं थे बल्कि स्वयं में एक संस्था थे।

डॉक्टर शिवकुमार शर्मा जी के निधन से सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के सनातन परिवार की अपूरणीय क्षति हुई । इनके परलोक गमन से रिक्तता का जो आभास हो रहा है उसकी भरपाई करना बहुत कठिन है। हमने एक दूरदर्शी अभिभावक और मार्गदर्शक खो दिया है। उनके दिवंगत होने पर जब एक साधारण सनातन धर्मी इतना आहत हैं तो ऐसी स्थिति में उस परिवार के सदस्यों पर क्या बीत रही होगी जिनके साथ डॉक्टर शर्मा जी का जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त भावात्मक स्तर पर नितांत आत्मीय सम्बन्ध रहा है। संपूर्ण परिवार इस महान वट वृक्ष की सघन शीतल छाया में आनंद से जीवन यापन कर रहा था। पग-पग पर सहधर्मिणी का दायित्व निभाने वाली उनकी जीवन संगिनी डॉक्टर श्रीमती विजय शर्मा, उनके सुपुत्र श्रीयुत राघव और पुत्रवधू सौभाग्यवती गरिमा, सुपुत्री सौभाग्यवती वैशाली, दामाद श्रीयुत अवनीश, उनके छोटे भाई डॉक्टर देशबंधु और भ्रातृपत्नी डॉ भारती बंधु, भतीजे डॉक्टर विवेक और विनीत और परिवार के अन्य सदस्य अपने परम पूज्य, श्रद्धास्पद और वरिष्ठतम प्रियजन के अजस्र स्नेह और वात्सल्य के अभिषेक से वंचित हो गए हैं। बार बार भावनाओं का ज्वार उमड़ता है। एक साथ जिए हुए जीवन के सहस्रों मनोहारी प्रसंगों की दृश्यावली बार-बार सजीव और साकार हो उठती है, पर यह प्रामाणिक सत्य है कि हम सब नियति के समक्ष विवश हैं।

वास्तव में मृत्यु अनश्वर आत्मा की अनन्त यात्रा का मात्र एक पड़ाव है और हमारी इस अनंत यात्रा में पूर्व में भी अनगिनत पड़ाव आ चुके हैं। सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल को अपने इस प्रकार के दस हजार पूर्व पड़ावों अर्थात् जन्मों का ज्ञान था। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को स्पष्ट कहा है कि मेरे और तुम्हारे न जाने पूर्व में कितने जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं तो जानता हूं पर अज्ञानता के कारण तुम्हें उन पूर्व जन्मों का ज्ञान नहीं है-

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन । तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप

मृत्यु इस सृष्टि का सबसे अधिक उलझा हुआ रहस्य है। मृत्यु के इस रहस्य को कठोपनिषद के यम- नचिकेता संवाद के माध्यम से समझने का प्रयास किया जा सकता है। नचिकेता ने मृत्यु के प्रत्यक्ष देवता यमराज से अपने तीसरे वर के रूप में मृत्यु के संबंध में प्रश्न पूछा कि मनुष्य के इस मर्त्य लोक से चले जाने के पश्चात नितान्त संशय की स्थिति बनी रहती है। कुछ विचारशील लोग कहते हैं कि मृत्यु के पश्चात भी मनुष्य अथवा आत्मा का अस्तित्व बना रहता है जबकि अन्य की दृष्टि में आत्मा नामक कोई तत्व नहीं है। अतः मृत्यु के पश्चात कुछ भी शेष नहीं रहता। मैं अपने तीसरे वरदान के रूप में आपसे मृत्यु के इस रहस्य को जानना चाहता हूँ-

येयं प्रेते विचिकित्सा मनुष्ये अस्तीत्येके नायमस्तीत्येके ।

एतद् विद्यामनुशिष्टस्त्वयाहं वराणामेषः वरस्तृतीयः ।

इस संवाद का सार यह है कि मृत्यु जीवन का अटल सत्य है। पर यह शाश्वत जीवन का अन्त नहीं है। जीवन की सनातनता अनश्वर आत्मा में अनुस्यूत है। हमारे पवित्र ग्रंथ वेदों, उपनिषदों, पुराणों और श्रीमद् भगवद्गीता आदि में स्पष्ट रूप से आत्मा के स्वरूप का सटीक चित्रण किया गया है और कहा गया है कि आत्मा
अजर है, अमर है, नित्य और शास्वत है। शरीर के मरने पर आत्मा नहीं मरती है। इसे अग्नि जला नहीं सकती, पानी गला नहीं सकता और वायु उड़ा नहीं सकता। पंच मूर्ती से बना हुआ मानव का शरीर अनित्य है, विनाशी है। पर इस अनित्य शरीर में रहने वाला आत्म तत्त्व अविनाशी और नित्य है- देहि नित्यमवयोज्यं देहे सर्वस्य भारत जैसे व्यक्ति पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्रों को धारण कर लेता है वैसे ही यह आत्म तत्व पुराने जीर्णो शीर्ण शरीरों को त्याग कर अपने-अपने कर्म-भोग के अनुसार नए-नए शरीरों को धारण कर लेता है। जैसे संसारी जीवन में आत्मा पंच भूतों से बने स्थूल शरीर से नाना प्रकार के भोग भोगता है उसी प्रकार यह आत्म तत्व मृत्यु के पश्चात अपने स्थूल शरीर को त्याग कर 18 तत्त्वों से बने हुए सूक्ष्म शरीर के आश्रय में रह कर अपने कर्मों का भोग करता है। सूक्ष्म शरीर का निर्माण करने वाले अठारह तत्त्व हैं : पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां, पांच प्राण अथवा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द नामक पांच तन्मात्राएं और मन, अहंकार, बुद्धि। यह सूक्ष्म शरीर ही चौरासी लाख योनियों के स्थूल देह को धारण करने की क्षमता रखता है। यह अणु से अणुतर और महान से महानतम रूप धारण कर सकता है। यह चींटी की देह में भी प्रवेश करता है और विशालकाय हाथी के शरीर में भी। सूक्ष्म शरीर जीव की अव्यक्त दशा कहलाती है। जैसे जीवन से मृत्यु तक की दशा व्यक्त या स्थूल दशा होती है वैसे ही मृत्यु से लेकर अगले जन्म तक की जीव की दशा अव्यक्त दशा होती है और जीवात्मा प्रत्येक मृत्यु के उपरांत इस अव्यक दशा में आता है। गीता में इन दोनों दशाओं का उल्लेख किया गया है। —

अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत। अव्यक्त निधनान्येव तत्र का परिवेदना । डॉक्टर शिवकुमार शर्मा के नाम से लोक व्यवहार में जीवनभर अभिहित की जाने वाली पुण्य आत्मा अपने ऐहि लौकिक कर्म-कलापों को सम्पूर्ण कर, अपने दृश्य स्थूल रूप को त्याग कर आज अपने अव्यक्त स्वरूप में विद्यमान है। यद्यपि उनका प्रत्यक्ष दर्शन संभव नहीं है पर अपने सत्संकल्पों, सद्विचारों और सद्व्यवहारों की मधुर स्मृतियों के रूप में आदरणीय डॉक्टर शिव कुमार शर्मा जी सदा हमारे मनोमस्तिष्क में छाए रहेंगे। अनादि-अनन्त ब्रह्म के ज्योतिर्मय स्वरूप से आविर्भूत हुई इस पुण्य जीवात्मा का पुनः उस परमज्योंति में ही विलय हो गया है। जीव और ब्रह्म की यह एकरूपता और एकलयता सत्य सनातन धर्म के सांस्कृतिक दर्शन की अद्भुत और अनुपम देन है जो दिवंगत आत्मा के शोकसंतप्त आत्मीय जनों का उद्बोधन करती हुई उन्हें शोक सागर से पार लगाती है। शास्त्र का उद्बोधन है-तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः ।

जीव और ब्रह्म की यह एकमयता ही सत्य लोक है, वैकुण्ठधाम है। महादेव शिव के उपासक इसे शिवलोक कहते हैं, नारायण के उपासक इसे गोधाम पुकारते हैं। हमारे पूज्य डॉक्टर शिव कुमार जी इसी लोक के वासी हो गए हैं। ऐसे दिव्य लोक में विराजमान रहते हुए वे अपनी मातृसंस्था सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा पंजाब के सनातन परिवार पर अपना आशीर्वाद बनाए रखेंगे और अपने अदृश्य रूप में हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। सनातन संवर्धिनी का सम्पादक मण्डल स्मृतिशेष डॉक्टर शिव कुमार शर्मा जी का पुण्य पावन स्मरण करते हुए उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता है और परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।

साभार सौजन्य,🙏द्वारा
डॉ. नन्द किशोर शर्मा
प्रधान सम्पादक सनातन समवर्धिनी।

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