*मीठे मीठे बेर* नवल किशोर शर्मा*
*मीठे मीठे बेर*
शबरी पिछले जन्म में रानी थी वह प्रयाग कुंभ में आई थी उनके लिए बहुत सारी बंदिशें थीं जिसके कारण वे साधु संतो के दर्शन नहीं कर सकीं तो उन्होंने कुंभ में छलांग लगा दी और मरते समय यह वरदान मांगा कि अगला जन्म निम्न जाति में मिले जिससे वे साधु संतों के दर्शन और सेवा कर सकें ॥
अगले जन्म में शबरी बनवासी जाति में भिलनी बनी उनके विवाह के समय सैकड़ों बकरियां खाने में काटने के लिए लाई गईं थीं, जिनसे उन्हें काफी दुख हुआ उन्होंने मां बाप से प्रार्थना की परंतु वे नहीं माने तो रात में शबरी ने रही सही बकरियों को भगा दिया और खुद भी भाग गईं!
वह पंपा सरोवर गईं जहां छुपकर साधु संतों की सेवा करने लगीं,
साधुओं को भिलनी की जानकारी होने पर उनको वहां से भगा दिया गया ! मतंग ऋषि ने उन्हें तरस खा कर अपने आश्रम में रख लिया और दीक्षा भी प्रदान की !
मतंग ऋषि ने संसार से विदा लेते समय शबरी से कहा कि हे शबरी
श्वास और ग्रास पूरे हो जाने के कारण मैं तो साक्षात नारायण स्वरुपी प्रभु श्री राम के दर्शन नहीं कर सका और मेरे जाने का समय आ गया !
किन्तु तुम अवश्य इंतजार करना, रामावतार के समय एक दिन प्रभु श्रीराम मेरी कुटिया में अवश्य आएंगे और तुम्हें दर्शन होंगे !
इसलिए शबरी प्रतिदिन फल फूल लाकर प्रभु का इंतजार करती और शाम होने पर उन फलों को फैंक दिया करती !
सुबह होने पर दोबारा मीठे बेर चुन चुन कर लाती !
आखिर प्रभु श्री राम शबरी की कुटिया में पधारे और शबरी प्रेमातुर हो कर मीठे बेर खिलाने के लिए चख चख कर देखने लगी!
पदम पुराण कहता है कि शबरी सभी बेर जूठे नहीं कर रही थी वह तो एक पेड़ का एक ही बेर चख कर देखती थी कि किस पेड़ के बेर मीठे हैं किसके नहीं !
प्रभु श्री राम भक्ति भावना देखकर बड़े चाव से बेर खा रहे थे और लक्ष्मण भैया को भी दे रहे थे परंतु लक्ष्मण भैया को यह अच्छा नहीं लगा और वह बेरों को पीछे पर्वत पर फेंक देते थे वही बेर संजीवनी बूटी बने और लक्ष्मण को शक्ति लगने के समय उन्हें वही बेर खाने पड़े 🌹🌹 ।। धन्य है भक्त और भगवान ।।
साभार : स्कन्द पुराण