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*एक दौर था मेरा नाम फिएट था ओर इतनी हसीं थी*

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यह ट्राई सिटी टाइम्स के प्रबुद्ध लेखक उमेश बाली के  उदगार हैं

मेरे खंडहर हो गए , बदन को न देख ,
एक दौर था मेरा नाम फिएट था ओर इतनी हसीं थी ,
कभी घरों के प्रांगण में मै सजी थी ,
मेरी चमचमाती रंगत पर लोग , हाथ से छूने की तमन्ना करते थे ,
मेरी सवारी की लोग ख्वाइश किया करते थे ,
कभी मुझ में बैठने वाले भी सजे थे ,
जिस प्रांगण में मै खड़ी होती ,
उस घर की एक अलग शान थी ,
मैं और निखरी, नए श्रृंगार में मेरा नाम पद्मनी हो गया था ,
जब सड़क पर थम से मैं निकली ,
मुझे पाने में जमाना दीवाना हो गया था ,
मेरे आज खंडहर हो गए बदन को न देख ,
मैं अपने समय में अज़ीम थी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Umesh Bali Tct उबाली ”                                                                                                            यह ट्राइसिटी टाइम्स की प्रबुद्ध लेखिका   निवेदिता परमार के उदगार है फीयट के बारे में।।                        ,,यादो की पटरी पर ।यादो की पटरी खुलती हैं अब,कभी मैं हसीन जवां थी ,खो जाती थी चाहने वालों पर,मर मिटने वालो पर,धूल ना देते थे जमने कभी, अब तो धूल के परतों पर यादो की तह पर तह हैं,मेरे अंदर सिमटी हैं यादे अतीत के हर लम्हे की ,टूटे काँच चुभते हैं दिल को,कभी में हसीन थी,किसी की प्रिय थी,हे मानव गुमान मत कर जवानी का,तेरी मेरे से बहतर होगी हालत❤️❤️❤️
निवेदिता परमार
Prof.Nevedita Parmar

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