*हाँ.. हमें स्मार्ट सीटी चाहिये…. मौत का समान नहीं..*
हाँ हमें स्मार्ट सीटी चाहिये….
मौत का समान नहीं….
कि ऊंचाइयों पर जाते- जाते पैरों तले की जमीं खिसक जाये… विकास विनाश बन जाये,.. उम्र की कमाई जिस मकां में लगाई हो वहाँ दिन में बेचैनी, रात को खौफ लगने लगे… जहाँ वेदर एप में देखते ही बारिश डरावनी लगे… जहाँ महल ताश के पत्तों की तरह बिखरें… हमें फसलें और नस्लें नहीं उजाड़नी हैं..
भाई हम सब चाहते हैं बने पर ऐसा बने
एक ऐसा शहर तो चाहिए कि जहाँ छोटी-बड़ी बीमारी का एक अस्पताल हो जिसमें सब इलाज़ करवा सकें। लोगों की मानसिक बीमारी का, कुछ लोगों की तानाशाही का इलाज मुफ्त हो और बेरोजगारों के डिप्रेशन का।
स्मार्ट सिटी में सबको अपने काम से काम हों, रोज़ नारे रैलियां धरने प्रदर्शन न हों, न किसी पर लाठी चार्ज हो, न नाके पर कोई रिश्वत मांगे, न कोई रेड लाइट जम्प करे, न कोई हिट रन हो, न कोई बोल पाये तू जनता नहीं मैं कौन हूँ या तुझे पता नहीं मेरे पापा कौन हैं।
ऐसा स्मार्ट सिटी हो कि निगाहों से शर्मिंदा होने वाली लड़कियां भी लापरवाह हों और चांद की रोशनी में भी सड़क पर खुले दिल से टहल सके और जेंडर ईकुऐलिटी हो।
खुले से मैदान हों, बहुत सारी साईकल हों और वो बहुत सारे पेड़ों की छाया में खड़ी की जा सकें। ऐसे सिनेमा हॉल हों जहाँ मूवी के साथ पॉपकॉर्न खाने पर सोचना न पड़े की कितने के होंगे।
धूल और खड्डे मुक्त सड़कें हों जिस पर कम आवाजाही हो
वहाँ कोने में काफी छोटा तिकोना पार्क हो जहाँ घण्टों बैठा जा सके पर कोई पार्टी अध्यक्ष अपनी किसी सभा के लिए बुक न करवा सके।
जहां सब सोच से भी स्मार्ट हों ऐसा स्मार्ट सिटी हो।
तृप्ता भाटिया ✍️