*कांगड़ा लोक साहित्य परिषद द्वारा स्वर्ण जयंती एवं बसन्तोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया*
*कांगड़ा लोक साहित्य परिषद द्वारा स्वर्ण जयंती एवं बसन्तोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया*
बीत कल रविवार को प्रातः 11:00 बजे से सायं चार बजे के बीच एतिहासिक स्थल राजमंदिर नेरटी के प्रांगण में हिमाचल प्रदेश कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के तत्वावधान में कांगड़ा लोक साहित्य परिषद द्वारा स्वर्ण जयंती एवं बसन्तोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके प्रथम सत्र में पुस्तकों जिनमें श्री रवि मल्होत्रा द्वारा लिखित जोंन्डा उपन्यास पर सन्तोष पटियाल द्वारा परिचर्चा प्रस्तुत की ।इसके अतिरिक्त रमेश मस्ताना द्वारा निबन्ध लेखन को लेकर एक शोध पत्र द्वारा विस्तार से प्रकाश डाला गया। इसके अतिरिक्त शक्ति चन्द राणा “शक्ति ” द्वारा अपने हिन्दी गीतों के संग्रह” वेदना के स्वर ” पर अपने संक्षिप्त विचार रखे। अपनी अपनी पुस्तकों पर कुछ अन्य साहित्यकारों प्रभात शर्मा पूर्व प्रशासनिक अधिकारी द्वारा शीषम का पेड़ राजस्व समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती अपनी पुस्तक पर , कमलेश सूद , सुरेश भारद्वाज, पवनेंद्र पवन आदि साहित्यकारों ने भी अपनी अपनी पुस्तकों पर अपने विचार सांंझा किए। श्री सुरेश भारद्वाज वरिष्ठ साहित्यकार ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की और डाॅ कंवर करतार पूर्व प्रिंसिपल ने इस कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि भाग लिया।
भोजनोपरान्त दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।इसकी अध्यक्षता मशहूर ग़ज़लकार द्विजेंद्र द्विज जी द्वारा की गई। पहाड़ी हिमाचली एवं हिन्दी गीतकार शक्ति चन्द राणा “शक्ति ” ने इस कार्यक्रम के संयोजक के रूप में भाग लिया। वास्तव में इस सारे कार्यक्रम के मूल में कांगड़ा लोक साहित्य परिषद के निदेशक एवं संस्थापक अध्यक्ष
डाॅ गौतम शर्मा “व्यथित ” जी का विशेष योगदान रहा। उनके मार्ग दर्शन में यह कार्यक्रम पूरी तरह सफल रहा ।
इसमें केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के हिन्दी विभाग से आईं श्री मती प्रिया शर्मा जी ने विशिष्ट अतिथि व पर्यवेक्षक के रूप में भाग लिया। शिमला सोलन कांगड़ा हमीरपुर से भी
आये साहित्यकारों ने शिरकत की। कवि सम्मेलन में डाॅ कुशल कटोच, प्रताप जरियाल , अश्वनी धीमान , सतपाल घृतवंशी, हरिकृष्ण मुरारी, दुर्गेश नन्दन, इत्यादि लगभग तीस साहित्यकारों ने भाग लिया। कमलेश सूद, शक्ति चन्द राणा, सुरेश भारद्वाज द्वारा इस अवसर पर अपनी अपनी पुस्तकों की प्रतियां डाॅ गौतम शर्मा व्यथित जी को भेंट कीं । सुरेश भारद्वाज द्वारा हिमाचली पहाड़ी भाषा को आठवीं सूची में दर्ज़ करने का मामला बड़े ज़ोरदार तरीके से रखा। उन्होंने कहा कि यदि हमारी मां बोली ज़िन्दा है तो हमारे रीति रिवाज संस्कृति सामाजिक मूल्य एवं मानबिंदु ज़िंदा रहेंगे यदि इस मां बोली को समय रहते संरक्षण न मिला तो सब कुछ इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे।
डॉ गौतम शर्मा व्यथित जी ने कहा कि हमें अपने अपने ढंग से अपनी पुस्तकों पर अपनी अनुभूतियों को भी व्यक्त करना चाहिए ताकि आलोचक एवं समीक्षक के इतर आप स्वयं अपनी कृति के बारे क्या सोचते हैं। क्योंकि लेखक, लिखते हुए जिन भावनाओं के वेगमयी प्रवाह एवं पीड़ा से गुज़रता है उस पीड़ा का एहसास केवल वही व्यक्त कर सकता है। ज़रूरी नहीं कि आलोचक और लेखक के विचार समान हों। हमें कविता से हट कर कथा कहानी निबंध तथा उपन्यासों की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
समीक्षात्मक रिपोर्ट:–
शक्ति चन्द राणा “शक्ति”
मलघोटा बैजनाथ
हिमाचल प्रदेश।