A beautiful poem: *हे ईश कृपालु* ! written by Dr Subhash Sharma
हे ईश कृपालु !
सुना है भगवन, है इस धरती से परे भी तेरा एक अनजाना जहां’- कहते हैं जिसे परलोक
बतलाओ तो जरा हैं कैसे उसके गाँव-शहर, कैसी गलियाँ-कूचे, कैसा है तेरा वह इंद्र लोक?
है कैसी उसकी माटी, कैसा रंग-रूप, कैसी भोर, दुपहरी, धूप-छांव; कैसे दिन, कैसी शाम, रात?
है वहाँ भी क्या गगन विशाल दामन में लिए मुस्काता चाँद, निकले जहाँ झिलमिल तारों की बारात ?
और पर्वत ऊंचे गंभीर, कलकल नदियां, सुंदर वन, पुष्प, पंछी छैल-छबीले, हाथी, चीते, शेर, हिरण?
भगाने सारा तम उगता है सूरज भी क्या, कभी चांदी, कभी सोने में नहाई हो जिसकी हर दिव्य किरण?
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कैसा है तेरा स्वर्ग-नरक, कैसा है इंसान वहाँ का, कैसी भाषा-बोली, और कैसा उसका वेश?
मँडराते हैं क्या वहाँ भी बादल घनघोर बरसें जो दिन रात फैलाने जग में घृणा, बैर और द्वेष?
क्या होते हैं उधर भी विश्वयुद्ध, अत्याचार, बलात्कार; गिरते हैं बंब, होता है गाज़ा सा नित नरसंहार?
क्या हैं उधर भी अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, व हिटलर, पुतिन, ट्रम्प, और जनता सहमी सी लाचार?
उफनते सागर, तड़पती मछली, दहकते जंगल,आँधी-तूफाँ, दूषित जल-थल, जहर उगलते यान व कार ?
बिलखते ग्लेसियर, प्यासी धरती, पर क्या नेता, क्या साहूकार, पड़े न कान किसी, इनकी आह व हाहाकार?
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बतलाओ भगवन कि बिछुड़ गए जो हमसे मात-पिता, भाई-बहन, दोस्त-सखा, और कई आँखों के तारे,
और दे गए हैं हमें आँसू ताउम्र आए थे कभी जो जीवन में बन मुहब्बत के फरिश्ते, दिल-जिगर के प्यारे,
क्या हैं सभी वे विचरते, बतियाते, हँसते, गाते तेरे ही दूर बसे अनदेखे, अनोखे, अद्भुत उस परदेस-वतन,
बिताए थे सुहाने पल जिन संग और आते हैं अब अक्सर याद सपनों में, और कभी जब गम में डूबा हो मन?
मायावी आकाश, फैला काला आँचल, खोल पिटारी, जब है बिखराता हीरे, मोती, जवाहर- रिझाने धरती को,
ढूंढनें लगता हूँ उन हसीन सितारों में मैं भी – अनिद्र, आतुर नैनों से – अपने बिछुड़े हुए उन सब मन-प्यारों को I
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हे ईश कृपालु, गा मधुर राग, सुना लोरी माँ सी, दादी की कहानी, सुलाना हर रात, सहला के उन सबका तन व मन,
और देना मेरा भी प्यार उन्हें, न आने देना दुख-दर्द पास, रखना सबको खुशहाल सदा अपने उस अलौकिक उपवन I
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