stray animal dogs in Palampur : *पालमपुर में आवारा कुत्तों और मवेशियों की बढ़ती समस्या: कल सुबह ITI के पास का हादसा*
आवारा पशुओं ने शहर में दुकानदारों तथा ग्राहकों का जीना भी मुहाल किया हुआ है कोई भी व्यक्ति हाथ में सब्जी लेकर नहीं चल सकता स्कूटर पर समान नहीं रख सकता दुकानदार की नजर हटी और दुर्घटना घटी
*पालमपुर में आवारा कुत्तों और मवेशियों की बढ़ती समस्या: कल सुबह ITI के पास का हादसा*
पालमपुर में आवारा कुत्तों और मवेशियों की समस्या ने आज सुबह एक और खतरनाक रूप ले लिया। यह घटना पालमपुर के आईटीआई के नजदीक घटित हुई, जब सुबह की सैर पर निकले लोग आवारा कुत्तों और एक बैल के हमले से बाल-बाल बचे।
आईटीआई के पास देखा गया कि कुछ आवारा कुत्तों ने एक बैल को घेर लिया है बैल अपने बचाव के लिए नीचे की तरफ दौड़ा, और यह दृश्य काफी डरावना था। बैल की तेजी और उसकी हड़बड़ाहट को देखकर तुरंत अपनी जान बचाने के लिए एक अधिकारी जो सैर कर रहे थे दूसरी तरफ तरफ भागे।
बैल के दौड़ने की दिशा में एक महिला भी मौजूद थी, जो उस समय सैर पर थी। बैल के अचानक उसके नजदीक से गुजरने के कारण वह भी डर गई और बाल-बाल बची। यह पूरा दृश्य कुछ ही पलों में घटित हो गया, लेकिन इसके प्रभाव ने सभी को हिलाकर रख दिया।
यदि वह महिला थोड़ी कमजोर सुस्त या बीमार होती तो वह बैल उस पर अटैक करके उसकी जान ले लेता। इस विषय में कुछ पॉइंट विस्तार पूर्वक ऐसे हैं
1.आवारा कुत्तों का आतंक:
– शहर में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो लोगों और मवेशियों दोनों के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
– ये कुत्ते अचानक हमले कर सकते हैं, जिससे लोगों का जीवन संकट में पड़ सकता है।
2. मवेशियों की बढ़ती संख्या:
– सड़कों पर आवारा मवेशियों की उपस्थिति भी एक गंभीर समस्या है। ये मवेशी यातायात को बाधित करते हैं और हादसों का कारण बन सकते हैं।
– इन मवेशियों का सही प्रबंधन न होने के कारण वे आवारा कुत्तों का शिकार बन जाते हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए नगर निगम प्रशासन को क्या प्रयास करने चाहिए
– नगर परिषद को इन समस्याओं से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। आवारा कुत्तों और मवेशियों को पकड़ने और उनके लिए उचित आश्रय स्थलों का प्रबंध करना चाहिए। आईटीआई चर्च to चौपाटी upto छिड़ और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में विशेष निगरानी और सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।
अक्सर देखा गया है कि आसपास के लोग अपने आवारा पशुओं को पालमपुर बाजार के आसपास छोड़कर चले जाते हैं जिसकी सख्ती से निगरानी होनी चाहिए तथा दोषी लोगों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि पालमपुर क्षेत्र में ना तो किसी के पास इतनी जमीन है और ना ही किसी के पास इतने पशु है कि वह अपने पशुओं को बाहर छोड़ दें यह सब आसपास के गांव के लोग या दूसरे शहरों के लोग अपने शहर से और गांव से पशुओं को निकाल कर पालमपुर में छोड़ देते हैं ताकि पालमपुर वासी इस समस्या से जूझे और उनकी जान बचे और यह नतीजा है हमारी सुस्ती और लापरवाही का।
पालमपुर में कुछ घटनाएं ऐसी हो चुकी है जो जिसमें पशुओं द्वारा सुबह या शाम को शेयर करते हुए लोगों को घायल किया उनकी हड्डियां टूट गई और किसी को अस्पताल जाना पड़ा और स्थाई विकलांगता को उन्होंने प्राप्त किया ।
पालमपुर में ना तो कोई वाकिंग ट्रेक है और ना ही घूमने के लिए कोई खुली जगह जहां पर ट्रैफिक ना हो और बड़े बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे आराम से घूम सके चर्च से लेकर छिड़ तक और न्यूगल चौक से SSB चौक तक वाकिंग ट्रेक बनाने की योजना पर कार्य करना चाहिए। नगर निगम के पार्षदों तथा अधिकारियों को आपस में ना उलझकर अपने हितों को दरकिनार करके लोगों के हितों के बारे में सोचना चाहिए रानी तो इस बात की है कि पालमपुर एक ऐसा शहर है जिसमें हिमाचल के किसी भी शहर की तुलना में सबसे अधिक नेता रहते हैं जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्य के कैबिनेट मंत्री विभिन्न निगम बोर्डों के अध्यक्ष विधानसभा अध्यक्ष दोनों ही पार्टियों के अन्य दिग्गज नेता रहते हैं। इन सभी नेताओं के आपस में सौहार्दपूर्ण संबंध है तथा किसी भी समस्या के समाधान के लिए है बहुत ही आसान तरीके से समाधान खोज सकते हैं।
इस विषय में कुछ सुझाव है शायद यह सुझाव ही रहेंगे इस पर कोई अमल तो करेगा नहीं। परन्तु हमारा कर्तव्य समस्या को उजागर करना और हो सके तो उसे पर कुछ सुझाव देना बनता है बाकी तो शासन प्रशासन को ही करना होता है
लोगों को जानवरों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि कचरा सड़कों पर न फेंके, जिससे आवारा जानवर आकर्षित होते हैं।
– बच्चों और बुजुर्गों को आवारा कुत्तों और मवेशियों से बचने के उपाय सिखाए जाने चाहिए।
3.स्वास्थ्य सेवाएं
– कुत्तों के काटने के मामलों में तुरंत चिकित्सा सहायता उपलब्ध होनी चाहिए। रैबीज के इंजेक्शन और अन्य चिकित्सा सुविधाएं आसानी से प्राप्त होनी चाहिए।
– स्थानीय क्लीनिक और अस्पतालों को ऐसे मामलों के लिए तैयार रहना चाहिए।
उपरोक्त घटना पालमपुर में आवारा कुत्तों और मवेशियों की समस्या की गंभीरता को दर्शाती है। इसे रोकने के लिए नगर परिषद, स्थानीय समुदाय और स्वास्थ्य सेवाओं को मिलकर काम करना होगा। केवल सामूहिक प्रयासों से ही इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है, ताकि पालमपुर के लोग सुरक्षित और सुकून भरी जिंदगी जी सकें।
सूद साहब! आपने बिलकुल सही लिखा मगर जब तक सरकार सख्त नहीं होगी तब तक आवारा कुत्तों और बेसहारा मवेशियों से छुटकारा पाना मुश्किल है , जैसे बेसहारा मवेशी सड़कों पर बढ़ रहे हैं वैसे ही इन कुत्तों की संख्या भी बढ़ रही है और ये समस्या केवल बाजारों की ही नहीं है अब ये समस्या गांव और सभी जगह सड़कों पर बराबर ही है और शहरों में संख्या के अनुपात से कहीं ज्यादा बढ़ रही है ,अब सवाल ये उठता है कि ये दोनों ही बाजारों में गलियों में और गांव में आए कहां से ? ये दोनों ही कोई जंगली नहीं हैं जंगली मैं इस लिए लिख रहा हूं कि अगर ये जंगली होते जैसे नील गाय या बंदर तब तो बात मान लेते ये एक समस्या है लेकिन ऐसी समस्या जो हमारे अपनो ने ही हमें खड़ी कर दी उसका समाधान कैसे हो ये एक गहन चिंतन का विषय है और सूद साहब जैसा कि आप आपने लिखा है पालमपुर में बहुत बड़े बड़े नेता और वी आई पीज रहते हैं तो साहब बड़े लोगों को तो कभी कोई समस्या आती तो हमने आज तक नहीं सुनी और दुर्भाग्यवश अगर किसी को आए तो ये आम जनता के लिए भाग्य की बात होगी क्यों ? क्योंकि शासन और प्रशासन उसी वक्त उसका संज्ञान लेगा जिसमें भला आम आदमी का भी होगा , हर रोज पढ़ने में आता है कि कई संस्थाओं द्वारा गौ सदन बनाए जा रहे हैं , कुछ संस्थाएं इन बेसहारा के गले में लाल रिवन यानी कि रेडियम टेप लगाने का काम कर रही हैं ताकि सड़क पर इनकी संख्या भी घटे और जो सड़क पर हैं उनसे किसी भी प्रकार की दुर्घटना भी न हो क्योंकि अंधेरे में ड्राइवर को इनके होने का पता चमकती टेप से चल जायेगा , अब सवाल उठता है सरकार ने चाहे कोई भी सरकार है या सरकारें रहीं हों केवल चुनाव के वक्त इस मुद्दे का चुनाव जीतने के लिए सहारा जरूर लिया मगर कुर्सी मिलते ही बात आई गई हो गई , टैग लगे मवेशी भी सड़कों पर कभी कभार दिख जाते हैं तो ढील तो सरकार की तरफ से है तो पहला काम तो सरकार ये करे कि पालतू कुत्ते या मवेशी को सड़क पर छोड़ने वाले को सख्त सजा का प्रावधान हो और ये तभी होगा एक बार फिर घर घर जाकर ये पता हो कि किसके पास क्या है और कितनी संख्या में है और अगर कई घरों में ये दोनो भी होंगे , और एक ऐसी भी योजना थी कि A I ऐसी प्रकार से होगा जहां केवल बछड़ियां ही बछड़ियां पैदा होंगी ये योजना भी फेल रही , कऊ सेंकच्चरी बनाने की योजना भी कम ही सिरे चढ़ीं , कुत्तों के नशवंदी वाले ऑपरेशन की योजना भी कोई सिरे नहीं चढ़ सकी , ये सारी नाकामियां सरकार की हैं , तो अंत में एक ही बात रहती है कि जो इस वक्त सड़क पर हैं उनका इंतजाम सरकार करे और जो लोगों के पास हैं वो बाहर न आएं , हां हॉस्पिटल में कुत्ते के काटने पर वैक्सीन तो उपलब्ध रहनी ही चाहिए जो बेसहारा मवेशी सड़कों पर बीमार जख्मी पड़े होते हैं उनके इलाज के लिए अकेली संस्थाएं ही आगे क्यों आएं पशुपालन विभाग अपने पशु चिकित्सालयों के स्टाफ की जिम्मेवारी भी सुनिश्चित करे
Dr लेखराज Maranda