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*मै एक किताब हूँ*

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मै एक किताब हूँ

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मेरी भी अपनी एक कहानी है दासता है
जो बहुत दर्दनाक हैं
मैं आजकल
लकडी की दीमक लगी अल्मारी के शीशे से झांकती रह्ती हूँ 
ताकती रह्ती हूं सिसकती रह्ती हूँ
की कोई मुझे यहाँ से बाहर निकाले,
झाडे, फुहारे,
मेरी जिल्द पर लगी धूल हटाये
मेरे पन्नो को धीरे से खोले
क्योकिं 
अब मेरे पन्ने दीमक की वजह से कमजोर हो गये हैं
मगर किसी को कहा फुर्सत मेरी तरफ झाकने की
क्या दौर था
जब हाथो में थामा जाता था मुझे
सीने से चिपका के रखा जाता था मुझे
जब उंगलियो से मेरे पन्नो को सहलाया जाता था
मेरे लफ्ज हमेशा माशूक के दिये फूलो से लबरेज रहते थे
वो दिगर बात है 
वो फूल अपना वजुद छोड कर
पसर जाते थे मेरे सीने पर
और मेरे शब्द
उनकी महक से
सालो साल जिन्दा रहते थे
मेरी जिल्द को
अच्छे कपडे पहनाए जाते थे
जिससे मेरा बदन ना दिखे
आजकल तो
सब कपडे उतारने मे लगे है।
एक दूर का रिश्तेदार बता कर
पहले मेरे घर में
फिर मेरे दिमाग में एसे घुस गया
और मुझे पीछे धकेल कर
मेरी खुबसूर जिन्दगी पर कब्जा कर लिया
पता कौन है वो ?
अरे वही मोबाईल, कम्पुटर, लैपटॉप, अलग अलग नाम है उसके।
लेकिन काम सबका एक
मेरी जिन्दगी को तबाह करना
मुझे भी अपनी तरह मशीन बना दिया हैं उसने
सच वो  क्या वक़्त था
गुलाबी ,लाल रंग के कलर से
चमकती उंगलियो का स्पर्श
सीने का आलिंगन
सच
मेरा हर शब्द हमेशा तरोताजा रह्ता था मुस्कुराता था
आज तो एक बटन दबाओ
ना चाहकर भी मुझे मशीन की तरह
जेसे तेसे कपडो में उसकी स्क्रीन पर आना पड्ता है
अपने दुखी जीवन का हाल
मशीनी कम्पुटर को बताना पडता हैं
सच
कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन।
बीते हुये दिन वो मेरे प्यारे पल छिन

Vinod (vsv)

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