Editorial:- *हिमाचल_के_6_संसदीय_सचिवो_की_नियुक्तियां_निरस्त :महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री*
14 नवम्बर 2024– (#हिमाचल_के_6_संसदीय_सचिवो_की_नियुक्तियां_निरस्त)–
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 6 संसदीय सचिवो की नियुक्तियो को असंवैधानिक घोषित करते हुए निरस्त कर दिया है। स्मरण रहे हिमाचल की कांग्रेस सरकार मे सुन्दर सिह, संजय अवस्थी, चौधरी राम कुमार, मोहन लाल ब्राकटा, आशीष बुटेल और किशोरी लाल को संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था। इन पदों को असंवैधानिक बताते हुए और यह आरोप लगाते हुए कि यह पद लाभप्रद पद के दायरे मे आते है भाजपा के वरिष्ठ विधायक सतपाल सत्ती ने अन्य सहयोगी विधायको के साथ हाईकोर्ट मे याचिका दायर कर चुनौती देते हुए मांग की थी कि इन संसदीय सचिवो को दी गई नियुक्ति को निरस्त किया जाए और इन विधायको को गैर कानूनी तौर पर लाभ के पद पर रहने के चलते इनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त की जाए, जबकि सरकार का तर्क था कि संसदीय सचिवो की नियुक्तियाँ कानून सम्मत है और इसके लिए विशेष रूप से 2006 मे विधान सभा मे एक्ट पारित कर संसदीय सचिवो के वेतन ,भत्ते और सुविधाओ को परिभाषित किया गया है। हालांकि मै कानून का जानकार नही हूँ, फिर भी मेरी समझ के अनुसार इसी तर्क मे इस तर्क का भी समावेश था कि संसदीय सचिवो के पद लाभ की श्रेणी मे नही आते है। यह बात भी दर्ज करने काबिल है कि लगभग दो वर्ष तक कानूनी लड़ाई दोनो तरफ से जबरदस्त तरीके से लड़ी गई और बड़े-बड़े पेशेवर वकीलो की सेवाएं ली गई। अगर याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व मनिंदर सिंह जैसे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ने किया तो प्रतिवादीयो की तरफ से जाने-माने वकील दुष्यंत दवे पेश हुए और अपनी दलीले दी।
कोर्ट ने न्यायिक विवेचना करते हुए हिमाचल विधानसभा द्वारा पारित 2006 के एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए ख़ारिज कर दिया है और टिप्पणी की कि विधानसभा ऐसा एक्ट पास करने मे सक्ष्म नही है। इसके साथ ही कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से संसदीय सचिवो की नियुक्तियों को निरस्त करते हुए उन्हे उनके पदों से हटा दिया है। इस अदालत के आदेश के साथ ही हिमाचल सरकार एक बड़ी कानूनी लड़ाई हार गई है। मुझे लगता है कि अभी यह कानूनी लड़ाई समाप्त नही हुई है क्योंकि आदेश मे कहा गया है कि विधायको को लाभप्रद के पद के दायरे से बाहर करने वाली और विधायको को संरक्षण देने वाले सेक्शन 3 की धारा D भी समाप्त हो गई है। इसके फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियो का निपटान कानून के अनुसार होगा और कानून अपना काम करेंगा। मुझे लगता है कि इसका अर्थ है कि इन पूर्व संसदीय सचिवो की विधानसभा सदस्यता पर खतरा बरक़रार है। इसके लिए याचिकाकर्ताओ के पास राज्यपाल के पास याचिका दायर करने का विकल्प उपलब्ध है। खैर यह फैसला अति महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार ने संसदीय सचिवो की नियुक्तियां कर संसद द्वारा पारित उस कानून को निष्प्रभावी करने का प्रयास किया था जिसके द्वारा मंत्रीमंडल के आकार को नियंत्रित किया गया था ताकि फिजूल खर्ची को रोका जा सके। हालांकि सरकार के पास सर्वोच्च न्यायालय मे अपील का अवसर है, लेकिन वह इस फैसले के चलते बड़ी राजनैतिक लड़ाई हार चुकी है। आज मैने इस फैसले की अपने विवेक के अनुसार कानूनी समीक्षा की है। आगे चल कर इसकी राजनैतिक समीक्षा भी करेंगे।
#आज_इतना_ही।