Editorial :सरकारी संस्थानों में अस्थायी कर्मचारियों का शोषण न्यायालय ने लिया कड़ा संज्ञान


**संपादकीय: सरकारी संस्थानों में अस्थायी कर्मचारियों का शोषण — न्यायालय की चेतावनी और सुधार की ज़रूरत**

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में सरकारी संस्थानों में अस्थायी कर्मचारियों के शोषण पर एक गंभीर टिप्पणी करते हुए इस प्रथा को “गिग इकोनॉमी की हानिकारक प्रवृत्ति” बताया है। गाजियाबाद नगर निगम के मामले में दिए गए आदेश और “जग्गो बनाम केंद्र सरकार” के पूर्व निर्णय को उद्धृत करते हुए, न्यायालय ने अस्थायी कर्मचारियों के प्रति हो रहे अन्याय के पाँच प्रमुख तरीकों को रेखांकित किया है। यह केवल कानूनी मसला नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा से जुड़ा प्रश्न है।
### शोषण के तरीके: व्यवस्था की विडंबना
1. **अस्थायी लेबल का दुरुपयोग**: सरकारी संस्थान नियमित कार्य करवाने के बावजूद कर्मचारियों को “अस्थायी” बनाए रखते हैं, ताकि उन्हें स्थायी लाभ न देना पड़े। यह न केवल श्रम कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि नैतिकता के विरुद्ध भी है।
2. **मनमानी बर्खास्तगी**: बिना किसी प्रक्रिया या कारण के कर्मचारियों को हटाना उन्हें असुरक्षा की ज़िंदगी देता है। यह शक्ति का दुरुपयोग है।
3. **कैरियर प्रगति में बाधा**: अस्थायी कर्मचारी वेतन वृद्धि, पदोन्नति, या प्रशिक्षण से वंचित रहते हैं। इससे उनकी योग्यता और समर्पण का भी अपमान होता है।
4. **आउटसोर्सिंग का चक्रव्यूह**: पुराने कर्मचारियों की जगह नए अस्थायी लाए जाते हैं। इससे श्रमिकों के बीच एकता टूटती है और शोषण स्थायी बन जाता है।
5. **बुनियादी अधिकारों से वंचित करना**: पेंशन, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य बीमा जैसे लाभों का अभाव कर्मचारियों को भविष्य के प्रति अनिश्चितता में धकेलता है।
### न्यायालय का हस्तक्षेप: एक आशा की किरण
न्यायालय ने गाजियाबाद नगर निगम को चार सप्ताह में बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने का आदेश दिया है। यह फैसला केवल एक संस्थान तक सीमित नहीं, बल्कि देशभर में फैले इस अमानवीय चलन के खिलाफ एक चेतावनी है। “जग्गो मामले” के हवाले से न्यायालय ने स्पष्ट किया कि श्रमिकों के साथ यह व्यवहार संवैधानिक मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के विपरीत है।
### आगे की राह: सुधार और जवाबदेही
न्यायालय के आदेश का स्वागत है, परंतु यह पर्याप्त नहीं। इस समस्या के समाधान के लिए तीन स्तरों पर कार्य करना होगा:
1. **कानूनी सुधार**: “अस्थायी” श्रेणी को स्पष्ट परिभाषित करना और उनके अधिकारों को मज़बूत करना।
2. **प्रशासनिक जवाबदेही**: सरकारी विभागों में श्रमिकों के रिकॉर्ड और अनुबंधों की नियमित ऑडिट होनी चाहिए।
3. **सामाजिक जागरूकता**: