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*वकालत की विरासत:  पंचकूला के सुरेश सूद परिवार का न्याय के प्रति समर्पण*

सूद सभा पालमपुर में सुरेश सूद परिवार के समर्पण और त्याग की सराहना की

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वकालत की विरासत:  पंचकूला के सुरेश सूद परिवार का न्याय के प्रति समर्पण*

Tct ,bksood, chief editor

पंचकूला, जो कभी एक छोटा-सा शहर था, जहां न कोई बड़ा न्यायालय था और न ही प्रसिद्ध वकील, आज वहां के सूद परिवार की कहानी पूरे क्षेत्र में गूंजती है। यह कहानी है सुरेश कुमार सूद और उनके दोनों बेटों—नीतिन सूद और सचिन सूद—की, जिन्होंने न्याय के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ी है।

सुरेश कुमार सूद ने वकालत की दुनिया में कदम 1976 में रखा तथा अगले वर्ष वह इस क्षेत्र में अपने 50 वर्ष पूरे कर लेंगे। दिलचस्प बात यह है कि वह मूल रूप से मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन सीट न मिलने के कारण उन्होंने फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया अंबाला में नौकरी शुरू कर दी तथा शाम को पंजाब यूनिवर्सिटी के इवनिंग कॉलेज से कानून की पढ़ाई शुरू कर दी। उन दिनों पंचकूला में कोई अदालत नहीं थी तथा मूलतः कालका से होने के कारण उन्होंने अंबाला में प्रैक्टिस शुरू की तथा एक दिन कालका तहसील कोर्ट जाते थे। 1995 में जब पंचकूला को जिला घोषित किया गया, तब 1996 से यहां लोअर कोर्ट की शुरुआत हुई। सुरेश कुमार सूद दो दिन पंचकूला और बाकी दिन अंबाला में केस लड़ते थे तथा सन 2000 में पंचकूला शिफ्ट हो गए, अब वह दो दिन अंबाला कोर्ट जाते हैं।

दूसरी पीढ़ी का जुनून*
सुरेश कुमार सूद के दोनों बेटे—नीतिन और सचिन—बचपन से ही अपने पिता को कोर्टरूम में जज्बे के साथ केस लड़ते देखते आए थे। उनके मुवक्किलों की ज़िंदगी से जुड़े किस्से और पिता का न्याय के प्रति समर्पण देखकर दोनों ने भी वकालत को ही अपना करियर चुना। सुरेश कुमार सूद की विशेषज्ञता सिविल और रेवेन्यू केसों में रही है, और उनके बेटों ने भी इसी राह को आगे बढ़ाया। उन्होंने आगे बताया कि अपने करियर में उन्होंने कई गरीबों और जरूरतमंदों के कैसे फ्री में लड़े हैं।

पिता-पुत्र का साथ
जब नीतिन और सचिन ने वकालत शुरू की, तो उनके लिए पिता की प्रतिष्ठा एक प्रेरणा तो थी, लेकिन साथ ही एक चुनौती भी। हालांकि, उन्होंने इस विरासत को बोझ नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी के रूप में लिया। कई बार ऐसा भी हुआ जब पिता और बेटे एक ही केस में साथ-साथ खड़े हुए, न्याय की लड़ाई लड़ी।

तीसरी पीढ़ी की तैयारी
अब सूद परिवार की यह विरासत तीसरी पीढ़ी तक पहुंच चुकी है। नीतिन सूद की बेटी ने भी कानून की पढ़ाई शुरू कर दी है। यह सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि उनके लिए एक संस्कार बन चुका है—जहां हर पीढ़ी को सिखाया जाता है कि **”न्याय बिकता नहीं, कमाया जाता है।”

सूद परिवार की यह कहानी न केवल संघर्ष और सफलता की मिसाल है, बल्कि यह दिखाती है कि कैसे एक परिवार ने पीढ़ी दर पीढ़ी न्याय के मूल्यों को आगे बढ़ाया है।

पालमपुर सूद सभा ने अपने बयान में कहा: “सूद परिवार ने न्याय के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, वह हम सभी के लिए गर्व का विषय है।

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