*क्या पालमपुर और नौणी विश्वविद्यालय में हो पाएगी स्थाई कुलपतियों की नियुक्ति*?
कृषि-बागवानी विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति प्रक्रिया में अब सरकार की होगी अहम भूमिका , विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस बिल को मंजूरी मिल जाती है तो लंबे समय से रुकी नियुक्तियों पर विराम लगेगा और विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक एवं शोध कार्यों को नई गति मिलेगी।


पालमपुर से ट्राई सिटी टाइम्स की रिपोर्ट
Bksood chief editor tct

हिमाचल प्रदेश विधानसभा में मंगलवार को एक बार फिर से “हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटीज ऑफ एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री (अमेंडमेंट) बिल, 2023” को बिना किसी संशोधन के पारित किया गया। इस बिल का उद्देश्य कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर और बागवानी विश्वविद्यालय नौणी (सोलन) में कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया में राज्य सरकार की भूमिका सुनिश्चित करना है।
यह फैसला उस समय आया है जब प्रदेश सरकार और राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला के बीच कुलपति नियुक्तियों को लेकर लगातार टकराव चल रहा है। विधानसभा ने राज्यपाल की उस सिफारिश पर ध्यान नहीं दिया जिसमें केंद्र सरकार के मॉडल एक्ट (2023) के अनुरूप संशोधन करने की बात कही गई थी। मॉडल एक्ट के मुताबिक गवर्नर बतौर चांसलर खोज समिति (सर्च कमेटी) की सिफारिश पर ही कुलपति नियुक्त करते हैं।
कृषि मंत्री चंदर कुमार द्वारा प्रस्तुत इस बिल में प्रावधान है कि अब गवर्नर (चांसलर) कुलपति की नियुक्ति राज्य सरकार की सलाह और अनुशंसा के आधार पर करेंगे, क्योंकि इन विश्वविद्यालयों को अनुदान राज्य सरकार ही प्रदान करती है। अभी तक कुलपति की नियुक्ति चांसलर द्वारा एक चयन समिति की सिफारिशों पर होती थी, जिसमें चांसलर का नामित सदस्य, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के महानिदेशक और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि शामिल होते थे।
गौरतलब है कि यह अमेंडमेंट बिल 2023 पहले ही विधानसभा में पारित होकर राज्यपाल के पास अनुमोदन के लिए भेजा गया था, लेकिन यह लंबे समय तक लंबित रहा। इसके बाद सितंबर 2024 में विधानसभा ने लगभग उसी स्वरूप में 2024 का अमेंडमेंट बिल भी पारित कर दिया। हालांकि, राज्यपाल ने यह कहते हुए कार्रवाई टाल दी कि 2023 वाला बिल राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजा जा चुका है। बाद में उन्होंने 2023 वाले बिल को भी राज्य सरकार को वापस भेज दिया और सुझाव दिया कि इसे केंद्र सरकार के मॉडल एक्ट की धारा 4.3 के अनुरूप संशोधित किया जाए।
इस बीच, विधानसभा में जब मंगलवार को यह बिल फिर से बिना किसी बदलाव के पास किया गया, तब विपक्षी भाजपा के विधायक सदन से वॉकआउट कर चुके थे। उनका आरोप था कि सरकार लोकतांत्रिक परंपराओं की अनदेखी कर रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस बिल को मंजूरी मिलती है तो कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया पर राज्य सरकार का सीधा नियंत्रण होगा और विश्वविद्यालयों में लंबे समय से चली आ रही अनिश्चितता खत्म हो सकेगी।