

EDITORIAL
हिमाचल की बदहाल स्वास्थ्य सेवाएँ : जनता कब तक कुर्बानी देगी?

✍️ बी.के. सूद, चीफ़ एडिटर – ट्राई सिटी टाइम्स
हिमाचल प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएँ बार-बार सवालों के कटघरे में खड़ी हो रही हैं। हाल की एम्बुलेंस दुर्घटना ने यह कड़वा सच सामने रख दिया कि घटिया और त्रुटिपूर्ण स्वास्थ्य ढांचा सीधे जनता की जान ले रहा है। मृतकों के परिवार सरकारों और नेताओं को माफ़ कर पाएँगे या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन यह सवाल अब पूरे समाज के सामने है – क्या हम यूँ ही चुप रहेंगे?
समाज को भी आत्ममंथन करना होगा। एम्बुलेंस दान करने की परंपरा सराहनीय है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? अस्पतालों में उपकरणों की कमी और पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर की जर्जर हालत कहीं ज्यादा खतरनाक है। गुजरात और पंजाब से सबक लेने की ज़रूरत है, जहाँ एनआरआई समुदाय ने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर फंड बनाया। वे हर महीने डॉलर जमा करके आधुनिक उपकरण और अस्पताल भवन खड़े कर रहे हैं। जालंधर और अहमदाबाद जैसे शहरों के सरकारी अस्पताल इस पहल से मजबूत हुए। हिमाचल में क्यों नहीं ऐसा कोई पारदर्शी फंड बनाया गया? यहाँ समाज अब भी एम्बुलेंस दान से आगे नहीं सोच पाया।
सबसे बड़ी समस्या सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की है। पाँच मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद कैंसर, न्यूरो और हृदय रोग जैसे गंभीर विभागों में विशेषज्ञ डॉक्टर नाममात्र के हैं। NITI आयोग की 2024 की रिपोर्ट कहती है कि हिमाचल में प्रति लाख आबादी पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या राष्ट्रीय औसत से भी कम है। अपने ही प्रदेश के सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सक यहाँ सेवा देने से कतराते हैं और बाहर से कोई डॉक्टर हिमाचल आना नहीं चाहता। आखिर क्यों? क्या सरकार इस सवाल से बच सकती है? क्या बेहतर वेतन, सुरक्षित माहौल और आधुनिक सुविधाएँ देना इसकी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए?
राजनीति ने स्वास्थ्य सेवाओं की कमर तोड़ दी है। अस्पतालों में भर्ती और तबादले योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव से होते हैं। उपकरण खरीद में ठेकेदार और कमीशनखोरी हावी रहती है। जिला अस्पतालों में महीनों तक CT स्कैन और MRI मशीनें खराब पड़ी रहती हैं, लेकिन नेताओं का ध्यान टूरिज्म-टूरिज्म की टर्र-टर्र पर ज्यादा है। हर दूसरे तीसरे दिन पर्यटन विकास के दावे सुनाई देते हैं, लेकिन जनता की जान बचाने के लिए कोई ठोस योजना क्यों नहीं? क्या सरकार की प्राथमिकता जनता की सुरक्षा से ज्यादा पर्यटक संख्या है?
अगर सुधार करना है तो रास्ता साफ़ है। एनआरआई फंड की तर्ज पर पारदर्शी हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर फंड तुरंत बनाया जाए। सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के लिए आकर्षक पैकेज तैयार हों। अस्पतालों को राजनीति से मुक्त किया जाए और भर्ती व उपकरण खरीद में पारदर्शिता लाई जाए। केवल एम्बुलेंस दान की बजाय आधुनिक उपकरण और टेक्नोलॉजी पर निवेश किया जाए। और सबसे अहम – हर हादसे, हर लापरवाही पर जिम्मेदार अफसरों और नेताओं को जवाबदेह ठहराया जाए।
हिमाचल की जनता को अब यह प्रश्न उठाना होगा – क्या हमें पर्यटन और भाषण चाहिए या सुरक्षित और आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएँ? यदि यह प्रश्न अब भी अनसुना रह गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ भी इन्हीं जर्जर अस्पतालों और झूठे वादों की कीमत अपनी जान देकर चुकाएँगी।
बी.के. सूद
चीफ़ एडिटर, ट्राई सिटी टाइम्स