*पाठकों के लेख एवं रचनाएं:- सुनील प्रेम*
मुझे नही मालूम
रोज मर रहे किसानों का धर्म क्या है
देश की सुरक्षा में लगे जवानों का धर्म क्या है
एक दुसरे को नोच खाते
जंगली हैवानों का धर्म क्या है
मुझे नही मालूम
धर्म के नाम पर
लड़ रहे इंसानों का धर्म क्या है
मुझे नही मालूम
की जिस धर्म के नाम पर
इंसान इंसान से लड़ रहा है
उस धर्म का मर्म क्या है
मैं तुमसे पूछता हूँ हाँ तुमसे
धर्म के रखवालों
मुझे बताओ
उन मासूम बच्चों का धर्म क्या है
जो कश्मीर से लेकर श्रीलंका तक
और सिंध से लेकर ढाका तक
भूखे मर रहे हैं
उन मासूम बच्चों का धर्म क्या है
जो कंधार से लेकर कोचीन तक
और रांची से लेकर करांची तक
भीख मांग रहे हैं
उन मासूम बच्चियों का धर्म कौन सा है
जो लाहौर से लेकर ल्हासा तक
और इलाहाबाद से लेकर इस्लामाबाद तक जिनके जिस्म की मंडियां लगती हैं
मुझे उन मासूम बच्चों का धर्म बताओ
जो हवस का शिकार हुए
दरिंदगी के शिकार
इन मासूमों में
कुछ मर गए कुछ मार दिए गए
कुछ रोज थोड़ा थोड़ा मर रहे हैं
ये किस धर्म को मानते थे
मुझे इनका धर्म जानना है
मुझे उन बेकसूर लोगों का धर्म बताओ
जो आतंक का शिकार हुए
जिन्हें आतंकवाद नक्सलवाद और जातिवाद के नाम पर
मार डाला गया
इन अलग अलग वादों के शिकार
और शिकारी किस धर्म से हैं
वो कौन सा धर्म है जो मानवता के विरुद्ध विचारों को जन्म देता है
वो कौन सा धर्म है जो
नीच और ऊंच की मानसिकता को पैदा करता है
वो कौन सा धर्म है जो
आतताइयों को पालता है
वो कौन सा धर्म है जो
घृणा को पोसता है
उन लोगों का धर्म क्या है
जो दंगो और बम धमाकों में
मर रहे हैं
जिंदगी को घसीट रहे है
कर्ज के बोझ में दबे हुए है
वो औरते जिनके लिए जिंदगी
किसी शर्मिंदगी से कम नही
वे लोग
जिनके लिए जिंदगी
किसी गंदगी से कम नही
मैं जानना चाहता हूं कि
क्या ये सब मुसलमान है
क्या ये सब हिन्दू है
क्या ये सब
ईसाई सिख या यहूदी है
इनका धर्म क्या है
मैं जानना चाहता हूं
हिटलर गोडसे
और कसाब का धर्म क्या था
मैं जानना चाहता हूँ
पुष्यमित्र तैमूर और क्लाइव
का धर्म क्या था
मजहब के ठेकेदारों
बताओ मुझे
47 में जो लाखों लोग मरे
वो किस धर्म के थे
गोधरा से लेकर गोहाना तक
और मिर्चपुर से लेकर शाबिरपुर तक
मरने वाले और मारने वाले किस धर्म से थे ?
तुम चिल्लाते हो कि
आतंकवाद का कोई धर्म नही होता
लेकिन मैं कहता हूँ
हर आतंकवादी का धर्म होता है
तुम कहते हो जातियां धर्म का अंग नही
मैं कहता हूँ
हर जातिवादी का धर्म होता है
मुझे बताओ वो धर्म कौन सा है
हर भूखे का धर्म होता है
हर वैश्या का धर्म होता है
मुझे बताओ वो धर्म कौन सा है
तुम नही बताओगे
कभी नही
क्योंकि
तुम धर्म के धंधेबाज हो
धर्म तुम्हारा बिजनेस है
तुम इसे बनाते हो
चलाते हो
और
इस धंधे से
इंसानियत को गुलाम बनाते हो
इस तरह
पीढ़ी दर पीढ़ी
खूब कमाते भी हो
तुम ही हो
जो नफरत की
खेती करते हो
घृणा के बीज बोते हो
फिर
सत्ता के हंसुए से
धर्म की घिनौनी फसल काटते हो
इसलिए
तुम कभी भी
नही बताओगे
की तुमने आज तक
अच्छा क्या किया
तुम्हारे धर्म ने
दुनिया को क्या दिया
बेबसी गम आंसू
झूठ मक्कारी और पाखंड
यही तुम्हारी अब तक कि
सबसे बड़ी उपलब्धि रही है
आज तुम चाहे कितना भी
कुतर्कों के सहारे
अपने अपने
धर्म का बचाव कर लो
लेकिन तुम मेरे सामने
एक्सपोज्ड हो चुके हो
तुम्हारा भांडा फुट चुका है
तुम नन्गे हो चुके हो
अब मैं जान गया हूँ
वो धर्म कौन सा है
जो लूटता है बांटता है
काटता है और गुलाम बनाता है
धर्म के ठेकेदारों
वो धर्म
जिसे तुमने निपट जनता के
गले मे पहनाया है
जिसे पशुओं की भांति
निरीह जनता ने
धर्म समझ लिया है
और
जिसका एक छोर
हमेशा तुम्हारे हाथ मे रहता है
वो धर्म नही
तुम्हारा बनाया हुआ
फंदा है
तुम ही लड़ाते हो
तुम ही भिड़ाते हो
और तुम ही घृणा के बीज
भी बोते हो
गरीबी कुपोषण दंगे फसाद
भूख अन्याय और अवसाद
सब तुम्हारी वजह से है
जब तक तुम्हारा
ये घिसा पीटा गुलामी का फंदा
जिसे तुम धर्म कहते हो
जिंदा रहेगा
तब तक
हर पल
इंसानियत मरती रहेगी
-शकील प्रेम