*पाठकों के लेख:- महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश ……..हिमाचल के वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री पण्डित सुखराम के निधन से राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया*
12 मई 2021– (हिमाचल के वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री पण्डित सुखराम के निधन से राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया) –
पण्डित सुखराम जी हिमाचल की राजनीति मे एक लम्बी पारी खेल कर अगली यात्रा पर चले गए है। वह अपने क्षेत्र की राजनीति के बेताज बादशाह थे। एक अपवाद को छोड़कर उन्हे कभी भी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा था। उनके विरोधी भी हिमाचल मे उनके विकास के योगदान को मानते है। वह 1962 से लेकर 1984 तक कांग्रेस के विधायक के तौर पर मंडी सदर विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे। 1998 मे उन्होने अपनी क्षेत्रीय पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन कर मंडी सदर से हिमाचल विकास कांग्रेस के विधायक बने। वह तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे। केन्द्रीय संचार मंत्री के तौर पर उनका नाम देश की संचार क्रांति के साथ जोड़ा जाता है। सारे देश मे विशेषकर हिमाचल के हर घर मे टेलीफोन उन्ही की देन माना जाता है। मोबाइल फोन आने से पहले सारे देश मे एस टी डी बूथ के नेटवर्क का श्रेय उन्हे ही देना होगा। हिमाचल मे जो भी विभाग उनके पास रहा उन्होने उसका सफलता के साथ संचालन किया। ऐसा नहीं कि पण्डित जी के राजनैतिक जीवन मे उतार चढ़ाव नहीं आए, लेकिन बुरे समय मे वह निरुत्साहित नहीं हुए।
पण्डित सुखराम जी ने अपने कांग्रेस के निष्कासन के बाद क्षेत्रीय दल का गठन कर अपने दल के 5 विधायक जीता लिए और सत्ता सन्तुलन हथया लिया था। 1998 मे उनके सहयोग से ही हिमाचल मे भाजपा सरकार बन सकी थी। वह सार्वजनिक और लोगो के व्यक्तिगत काम करने मे विश्वास रखते थे। काम करते समय वह यह नहीं सोचते थे कि यह मेरा विरोधी है। हालांकि मेरा उनसे कोई अधिक परिचय नहीं था, लेकिन उनके साथ अपने दो अनुभव आज भी स्मरण है। मैने अपने एक परिचित की एस टी डी बूथ के आबंटन की सिफारिश की जो उन्होने तुरंत स्वीकार कर आदेश जारी करवा दिए। दूसरे 2000 मे सोलन मे हुए उपचुनाव मे उन्होने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को भाजपा का मुझे प्रत्याशी बनाने के लिए अपने स्तर पर सिफारिश की। उन्होने इस सन्दर्भ मे समाचार पत्रों मे ब्यान भी जारी किया था कि टिकट का सही हकदार मै ही हूँ क्योंकि उपचुनाव मेरे अनथक प्रयासों और मेरी याचिका से ही संभव हुआ था। पण्डित जी से मै जीवन मे दो या तीन बार मिला था। उनके पास राजनैतिक अनुभव का भण्डार था। यह ठीक है कि उनकी हिमाचल के मुख्यमंत्री बनने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी लेकिन जो राजनीतिक लम्बी और सफलतम पारी वह खेल कर गए है वह रिकॉर्ड भी है और इतिहास भी है। जो आया है उसे एक न एक दिन जाना है। अमर तो व्यक्ति के कर्म होते है। जब भी देश की संचार क्रांति का जिक्र आएगा पण्डित सुखराम को स्मरण किया जाएगा।
मै पण्डित सुखराम जी को भावभीनी श्रध्दांजलि अर्पित करता हूँ।