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*पालमपुर नगर निगम के लिए यह गर्व की बात है या शर्म की*.

पालमपुर नगर निगम के लिए यह गर्व की बात है  या शर्म की..

Tct chief editor

पहले भी कई बार लिखा जा चुका है कि वार्ड नंबर 2 में कृपाराम मस्तराम के साथ लगती गली जिसको पहले मस्जिद गली कहा जाता था ,की शुरुआत में ही एक सार्वजनिक शौचालय है जो किसी भी सभ्य समाज के लिए एक शर्म की बात है ।यह शौचालय संभ्रांत मोहल्ले के शुरुआत में ही है ।इस मोहल्ले के मुहाने पर यह शौचालय किसी भी संभ्रांत नागरिक को अपना सिर शर्म से झुक आने के लिए मजबूर कर देता है।
ऐसा नहीं कि इसके विषय में पहले नहीं लिखा गया है मैंने पहले भी तीन चार बार जब नगर निगम नहीं होता था नगर परिषद होती थी तब इसके बारे में लिखा था परंतु किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ।हैरानी की बात तो यह है कि यह शौचालय एकदम ओपन है तथा यहां से अपने घरों की ओर गुजरते हुए मर्द लोगों की आंखें भी शर्म से झुक जाते हैं तो आप महिलाओं के बारे में क्या कहेंगे? महिलाएं तो यहां से गुजरने में अक्सर गुरेज करती हैं लेकिन भूले भटके से भी अगर कोई महिला यहां से निकल जाए तो उसके लिए उससे बड़ी शर्म की बात कोई नहीं होती।

क्योंकि यह शौचालय रास्ते के एकदम साथ में सटा हुआ है और फ्रंट से एकदम ओपन है ।
पता नहीं क्यों हम लोग संभ्रांत होने का नाटक करते हैं। क्या यहां पर सोच कर रहे लोगों को नहीं पता कि यह आम रास्ते में एक खुला शौचालय है और हमें इसे कवर करने के लिए नगर निगम को बाध्य करना चाहिए ।
इसको इस्तेमाल करने वाले लोगों के पास कोई और विकल्प न होने के कारण वह इसे इस्तेमाल करते हैं परंतु क्या नगर निगम इतना लाचार और बेबस या असभ्य हो चुका है कि उसे महिलाओं की इज्जत का भी बिल्कुल ख्याल नहीं ?
यह शौचालय क्या एक दरवाजा लगाने के काबिल भी नहीं है ?ताकि वहां पर शौच कर रहे आदमियों पर आते जाते लोगों की नजर ना पड़े, अगर मर्द लोग ही उस तरफ नहीं देख पाते तो यह सोचिए महिलाओं को क्या हालत होती है?
परंतु किसी को इससे कोई सरोकार नहीं हैरानी की बात तो यह है कि ऐसा नहीं है की नगर निगम के संज्ञान में यह बात नहीं है ,पहले भी इस बारे में मेरे द्वारा लिखा जा चुका है, परंतु किसी ने कोई कार्यवाही नहीं की ।
ना जाने यहां पर एक दरवाजा लगाने में यह एक छोटा सा पर्दा करने में कितने लाखों रुपए का बजट चाहिए होगा ?जिसकी मंजूरी शायद अभी तक सरकार से नहीं मिली होगी ,जहां तक मुझे याद है पिछली बार एनजीओ परिवर्तन ने कहा था कि अगर नगर निगम कहे तो वह यहां पर एक अच्छा सा दरवाजा या इसमें प्राइवेसी का इंतजाम किया जा सकता है ।
शायद सभ्य भाषा में इसके लिए जिम्मेवार लोगों समझ नहीं आ रहा है, और असभ्य भाषा का प्रयोग हम यहां कर नहीं सकते।
अरे अगर थोड़ी बहुत भी महिलाओं की इज्जत करते हो या प्राइवेसी का थोड़ा भी ख्याल है तो इसे कवर करके यहां पर दरवाजा लगा दीजिए।

इसके अंदर की जो हालत है वह तो बयां करने लायक ही नहीं है ।अंदर चाहे जितनी मर्जी गंदगी हो लेकिन बाहर तो प्राइवेसी का ध्यान रखना चाहिए। हैरानी की बात तो यह है कि इसके एकदम साथ में ही सब्जी की दुकान है और खुले रुप से वहां पर सब्जियां बिकती हैं। और इस टॉयलेट में इतनी अधिक बदबू और गंदगी है की शब्दों में बयान नहीं की जा सकती ।
कहां है हमारा हेल्थ डिपार्टमेंट ?कहां है हमारा जन स्वास्थ्य विभाग ?कहां है हमारे सेनेटरी इंस्पेक्टर ?और कहां है हमारा नगर निगम? सब नदारद यह कोई इतना बड़ा प्रोजेक्ट नहीं कि जिसे समझने या सुधारने में सालों साल लग जाएं चंद घंटों का ही काम है परंतु शुरुआत करे तो करे कौन?

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