*पाठकों के लेख: लेखक- तृप्ता भाटिया*
वो लड़कियां जो नहीं हैं खूबसूरत
उनको बचपन से ही काला मतलब संबला समझाया जाता है, वो बड़ी होकर लगने लगती हैं रंग रूप की बजह से ही अपने माता-पिता को बोझ, कितने लड़के देखने आये पर कोई राज़ी न हुआ! हंसी मजाक में उनकी तुलना हम कई बार ऐसी जगह कर जाते जो उनका दिल दुखा जाती हैं।
आईना उन्हें शक्ति दे उसकी जगह उन्हें क्रोध दे जाता है। वो हर संभव कोशिश करती हैं सवारने की पर सच है बाहरी खूबशुरती की ही सारी दुनिया दीवानी है। क्योंकि अच्छा होना महज़ बातों में अच्छा होना ही होता है। कई बार तो दुनिया उन्हें दोस्ती, मोहबत के लायक भी नहीं समझती।
वो कैसे सुकूं से सोती होंगी ??
वो लड़कियां जो नहीं रख पाईं सर अपने प्रेमियों के कांधो पर .. नहीं ढूढ़ पाती हैं अच्छी सीरत के साथ अच्छी शक्ला का प्रेमी भी।
वो किसके गले लगकर रोती होंगी ?? जिनको आम दुनिया अपना हिस्सा बनना ही नहीं चाहती है
किसके ख़्वाब देखे और किसके हिस्से होती होंगी
ये अनचाही सी लड़कियां खुद में कितने किस्से होती होंगी ये लड़कियां , सुनती हैं ये ताने शादी न होने के और बाद में बच्चा उसी जैसा न हो ये भी।
हमसे तो फिर भी लोग जात-पात और औकात का भेद करते हैं, सोच में हूँ कैसे ……???…वो लड़कियाँ✍️✍️✍️