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चौ.स.कु. हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में आज राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला व किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा आयोजित की गई

BKSood chief editor

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पालमपुर 28 दिसम्बर। चौ.स.कु. हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में आज राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला व किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें मुख्य अतिथि श्री वीरेंद्र कंवर, माननीय कृषि, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मन्त्री हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने उद्घाटन भाषण में कृषि वैज्ञानिकों को पूर्ण आर्थिकी के साथ एकीकुत कृषि मॉडल विकसित करने के लिए कहा ताकि किसान अपनी आवश्यकताओं के अनुसार इस तरह के मॉडलों को अपना सकें। उन्होंने कहा कि चूंकि अस्सी प्रतिशत बीज बाहर से खरीदा जाता है, इसलिए राज्य के भीतर प्रगतिशील किसानों की भागीदारी के साथ प्रमुख फसलों के बीज पैदा करने की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ‘मुख्यमंत्री बीज संरक्षण योजना‘ के तहत पारंपरिक फसलों के बीजों के संरक्षण के प्रयास चल रहे हैं। क्योंकि हिमाचल प्रदेश में कीटनाशक अवशेष सबसे अधिक हैं इसलिए उन्होंने कृषि अधिकारियों को किसानों को रसायनों और उर्वरकों के उचित उपयोग के बारे में शिक्षित करने की भी सलाह दी। उन्होंने कहा कि कृषि रसायन केवल पंजीकृत दुकानों पर ही उपलब्ध हों और किसानों के खेतों में रसायनों के अत्यधिक उपयोग को रोकने के लिए उन्हें सही रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने जानकारी दी कि प्राकृतिक खेती के लिए 25 साल का रोडमैप तैयार किया गया है। मंत्री ने वैज्ञानिकों से राज्य के मध्य पहाड़ी क्षेत्रों के लिए फसलों का सुझाव देने को कहा। उन्होंने जंगली जानवरों द्वारा फसल को हुए नुकसान पहुचाने का समाधान पर चर्चा की और बताया कि मार्च तक आवारा पशुओं की समस्या कम हो जाएगी क्योंकि कुछ गौ अभयारण्य जल्द ही चालू हो जाएंगे। श्री वीरेंद्र कंवर ने लैंटाना जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की और विश्वविद्यालय से इसके पूर्ण उन्मूलन के लिए एक परियोजना प्रस्तुत भेजने को कहा। मंत्री जी ने जिला स्तर पर किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए कृषि विज्ञान केन्द्रों को और अधिक जीवन्त बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया और विश्वविद्यालय से अपने शोध कार्यों को खेतों तक ले जाने के लिए कहा।
राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला व किसान वैज्ञानिक परिचर्चा में कुलपति प्रो. हरीन्द्र कुमार चौधरी ने विश्वविद्यालय की प्रमुख अनुसंधान और प्रसार उपलब्धियों का विवरण दिया, जिससे हाल ही में कई किसान राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं। प्रो. चौधरी ने कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्रों ने गेहूँ तथा माश (उड़द) के बीज पैदा करने का काम शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि पारंपरिक बीजों के संरक्षण और इनका पंजीकरण कराने के लिए बड़े पैमाने पर काम प्रारम्भ हो गया है। प्रो. चौधरी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश राज्य की स्वर्ण जयंती मनाने के लिए 51 कार्यक्रमों की परिकल्पना की गई थी और 51 कृषि दूतों का भी चयन किया गया है, जिनकी तस्वीरें ‘कृषक दीर्घा‘ में प्रदर्शित की गई हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान को फिर से जीवन्त करने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निबटने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में उच्च स्तरीय अनुसंधान सुविधाओं जैसे फोटोट्रॉन, शिटाके मशरूम इत्यादि पर भी कार्य शुरू कर दिया गया है।
कृषि निदेशक डा. एन.के. धीमान ने कहा कि उत्पादन लागत को कम करने पर शोध कार्य किया जाना चाहिए और प्राकृतिक खेती इसका एक अच्छा विकल्प है। चूंकि केवल एक प्रतिशत तापमान की वृद्धि फसल की पैदावार को पांच से दस प्रतिशत तक कम कर सकती है, इसलिए कम पानी की आवश्यकता वाले फसल पैटर्न और तापमान तनाव सहनशील किस्मों पर काम तेज किया जाना चाहिए। उन्होंने प्रमुख फसलों में कीटों की समस्याओं, क्षेत्रवार उर्वरक आवश्यकताओं आदि के लिए पैकेज ऑफ प्रैक्टिस तैयार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
प्रसार शिक्षा निदेशक डा. सतीश पाल ने विश्वविद्यालय की प्रमुख प्रसार गतिविधियों जैसे कि सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा प्रायोजित किसानों को 79 लाख रुपये की राशि से व्यावसायिक प्रशिक्षण, किसान प्रथम कार्यक्रम के तहत सात गांवों को गोद लेने आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
इस अवसर पर शोध निदेशक ने जानकारी दी कि 7982 लाख रु. के बजट परिव्यय के साथ 136 अनुसंधान परियोजनाएं इस समय कार्य कर रही हैं और किसानों के लिए सफेद तिनपतिया घास के साथ लंबी घास के संयोजन के बारे में नई कृषि तकनीकों की सिफारिशें भी जारी की गई हैं।
इससे मुख्य अतिथि श्री वीरेंद्र कंवर ने विश्वविद्यालय संग्रहालय में कृषि दीर्घा-2 का उद्घाटन किया और उन्नीस कृषि दूतों और पांच राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं को भी सम्मानित किया जिनमें लाल चावल किस्म संरक्षण के पुरस्कार विजेता भी शामिल थे जिनमें बिचित्र सिंह, सुनील कुमार, मंगल सिंह, अमीश, गोविंद सिंह, अवनीत कुमार, नंदू राम, निशांत गाज्टा, प्रदीप नेगी सुदर्शना देवी, मधु कुमारी, अनीता नेगी, विविध शर्मा, विशाल पाठक, तरण सिंह, भवानी दत्त, प्रमोद सिंह, निम्मो देवी, कुंदन लाल, माया देवी, वर्षा शर्मा, देना मेहता, लीलावती, सुनिता देवी शामिल थे। इस अवसर पर मंत्री जी ने कुछ फार्म प्रकाशन व वर्ष भर के कृषि कैलेंडरों पर एक सीडी भी जारी की। प्रमुख सिफारिशों और फीडबैक पर भी एक तकनीकी सत्र आयोजित किया गया जहां सभी जिलों के प्रगतिशील किसानों और उपनिदेशकों ने किसानों के फीडबैक पर परिचर्चा की। इस अवसर पर डा. सुरेश गौतम, डा. देश राज चौधरी तथा प्रसार शिक्षा सह निदेशक डा. डेजी बसन्दराय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
गौ सेवा आयोग के उपाध्यक्ष श्री अशोक शर्मा, विश्वविद्यालय के संविधिक अधिकारियों, विभागाध्यक्षों व वैज्ञानिकों के अतिरिक्त लगभग 150 कृषि अधिकारियों एवं प्रगतिशील किसानों ने कार्यशाला में भाग लिया।

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