पाठकों के लेख:- बलदेव शर्मा
क्या धर्म संसदों को सरकार का समर्थन हासिल है तंत्र की चुप्पी से उठे सवाल
ऊना की प्रस्तावित संसद पर मुख्यमंत्री और जिला प्रशासन को पत्र
राजनीतिक दलों की चुप्पी सवालों में
पूर्व सेना अधिकारियों ने भी सर्वाेच्च न्यायालय में दायर की याचिका
शिमला/शैल। दिसंबर में हरिद्वार और दिल्ली में हुई धर्म संसदों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। क्योंकि इनको संबोधित करने वाले कथित धर्म गुरुओं ने बड़े खुले शब्दों में देश के हिंदुओं से मुसलमानों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करने का आहवान किया है। इन धर्मगुरुओं और संतों ने हिंदुओं को मुसलमानों से खतरा बताकर यह संघर्ष करने को कहा है। इनके ब्यानों से निश्चित रूप से देश का सौहार्द बिगड़ेगा। लेकिन एक समुदाय के प्रति इतने नफरती ब्यानों का सरकार द्वारा कोई संज्ञान न लेना और भी गंभीर हो जाता है। सरकार द्वारा इस पर खामोशी बनाये रखने से आहत होकर कुछ लोगों ने सर्वाेच्च न्यायालय से इसका संज्ञान लेने का आग्रह किया है। बारह जनवरी को पत्रकार कुर्बान अली और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व जज अन्जना प्रकाश ने इस पर सर्वाेच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। इसके बाद सेवानिवृत्त मेजर जनरल प्रियदर्शी और दो पूर्व सेना अधिकारियों ने भी इस पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इनके अतिरिक्त 76 वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पांच पूर्व सेना प्रमुखों ने भी इस पर चिंता जताते हुये प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखे हैं। इस सक्रियता के बाद सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देशों पर इस मामले में एफ.आई.आर. दर्ज हुई है। और कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं। कुछ लोगों ने इन गिरफ्तारीयांे का विरोध भी किया है। और इस विरोध में मध्यप्रदेश के एक मंत्री भी शामिल रहे हैं।
यही नहीं इस सब के बाद भी यह लोग देश के अन्य भागों में भी ऐसी ही धर्म संसदें आयोजित करने जा रहे हैं। हिमाचल के ऊना में भी 4 से 6 मार्च को एक धर्म संसद आयोजित की जा रही है। जिसमें 100 से अधिक संगठनों के प्रतिनिधि और धर्मगुरु भाग लेंगे। यह जानकारी शिमला के प्रेस क्लब में एक पत्रकार वार्ता आयोजित करके पंचदशमाम अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानन्द गिरी और उनके शिष्य यति सत्यदेवानन्द सरस्वती ने दी है। इसके साथ इस अवसर पर प्रदेश के कई हिंदू संगठनों के नेता भी मौजूद थे। इन लोगों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि हिंदुओं का जनसंख्या अनुपात लगातार कम होता जा रहा है और मुसलमानों का बढ़ रहा है। आने वाले 20 वर्षों में हिंदू और भी खतरे में आ जायेंगे। देश का प्रधानमंत्री मुसलमान हो जायेगा। इसलिए अपना जनसंख्या अनुपात बढ़ाने के लिए हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिये और इस खतरे के खिलाफ अभी से संघर्ष करना होगा। जिस तरह की ब्यानबाजी इस पत्रकार सम्मेलन में हुई है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस प्रस्तावित धर्म संसद में भी वही सब कुछ दोहराया जायेगा जो कुछ हरिद्वार और दिल्ली की संसदों में हुआ है। लेकिन इस पर सरकार और प्रशासन की चुप्पी भी उसी तरह की है जैसी कि हरिद्वार और दिल्ली में रही है। जबकि इस प्रस्तावित संसद को लेकर उसी पत्रकार कुर्बान अली जिसने सर्वाेच्च न्यायालय में याचिका दायर की है ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और ऊना जिला प्रशासन को इसमें उचित कदम उठाने का आग्रह किया है।
सरकार की भूमिका
भारत एक बहु धर्मी, बहुभाषी और बहु जातीय देश है और इसी बहु विवधता के कारण संविधान में देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया है। लेकिन 2014 के बाद आयी सरकार में इस धर्मनिरपेक्षता पर यदा-कदा जिस तरह से सवाल उठने शुरू हुये थे वह अब धर्म संसदों तक पहुंच गये हैं। इन संसदों में मुस्लिम समाज से हिंदुओं को खतरा बताकर इनके खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का आमंत्रण देना और सरकार का इस पर चुप रहना यह संकेत करता है कि यह सब प्रायोजित तो नहीं है? इसको सरकार का सरंक्षण तो प्राप्त नहीं है? यह आशंकाएं इसलिए उठ खड़ी होती है क्योंकि 1993 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अधिवेशन में संविधान को लेकर एक प्रस्ताव आया था जिसमें त्रिस्तरीय संसद की परिकल्पना रखी गई थी। जिसमें साधुओं-संतों को पहले स्तर पर रखा गया है। इस प्रस्ताव पर सबसे पहले भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने फ्रन्टलाइन में एक विस्तृत लेख लिखकर सवाल उठाये थे। अब सरकार बनने के बाद मेघालय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस आर सेन ने अपने एक फैसले में देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के निर्देश 2018 में दिये। इस फैसले के खिलाफ कुछ लोग सर्वाेच्च न्यायालय भी गये और जस्टिस गोगोई की पीठ ने इस पर नोटिस भी जारी किये लेकिन अन्त में कुछ नहीं हुआ और अब मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मोहम्मद याकूब मीर और जस्टिस एच एस थानक्यू की पीठ ने इस फैसले को पलट दिया है। लेकिन इसी फैसले के बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम पर आंदोलन उठा। इसी आंदोलन में पहली बार कपिल मिश्रा जैसे नेता के नफरती ब्यान सामने आये। जब इन ब्यानों को लेकर मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंचा और अदालत ने पुलिस को इसकी जांच के आदेश दिये तब पुलिस ने अदालत में यह कहा कि उसे ऐसे ब्यानों के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। तब अदालत ने मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस डॉ. एस मुरलीधर ने कोर्ट में कपिल मिश्रा के ब्यान की टेप पुलिस को सुना दी। लेकिन इसके बाद भी दिल्ली पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। मामला सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने इसे तीन माह में निपटाने के निर्देश उच्च न्यायालय को दिये हैं।
इसी बीच संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के नाम से भारत का नया संविधान वायरल हुआ जोकि मनुस्मृति पर आधारित है। इसमें महिलाओं को शूद्र की संज्ञा देते हुये उन्हें शिक्षा और रोजगार के अधिकारों से वंचित रखा गया है। इस कथित संविधान का प्रारूप वायरल होने के बाद भी इस पर न तो सरकार और न ही संघ की ओर से कोई खंडन आया है। अब जब धर्म संसदों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है तब कालांतर में उसका प्रभाव सेना, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिस तक पड़ेगा। यह चिंता पांच पूर्व सेना प्रमुखों ने एक पत्र लिखकर व्यक्त की है। सेनानिवृत्त मेजर जनरल प्रियदर्शी चौधरी ने अपनी याचिका में इसी आशंका पर विस्तार से बात की है। इसी दौरान तबलीगी जमात को कोरोना बम्ब कहा गया और सुदर्शन टीवी ने मुसलमानों के सिविल सर्विस में जाने के खिलाफ मुहिम छेड़ी। लेकिन सरकार ने किसी भी मुद्दे पर प्रतिक्रिया तक नहीं दी। केवल सर्वाेच्च न्यायालय ने ही संज्ञान लिया। इस परिदृश्य में आज इन सवालों पर विधिवत रूप से चर्चा की आवश्यकता है। क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के स्पेशल सलाहकार अदमादिंग इस विषय पर यह कहकर चिन्ता व्यक्त कर चुके हैं कि गैस चैम्बर एक दिन में ही नहीं बन गये थे। उसकी शुरुआत भी नफरती ब्यानों से ही हुई थी।
