*पाठकों के लेखक एवं विचार रचनाकार: संजीव गांधी IPS*
 
						

ये सर्द हवा
हल्की सी मद्धम- मद्धम 
जब 
बह-बह कर जाती 
जैसे कोई माता 
बालक अपने को
वैसे पत्तों को तुम सहलाती
तृप्त जीवन हुए जाता 
विचित्र सी उहापोह मे
निष्ठुर निर्मम 
पत्थर से ह्रदय 
कोमल करूणार्द्र हुए 
स्पर्श तुम्हारे से
मन कवित्त 
हुआ 
चिड़िया बुलबुल 
तोता मैना सब दिखे 
गीत गाते
जब
मदं मदं
पूर्व से तुम बह कर जाती
हरे भरे बागों संग
अमराईयां मीठी हो जाती।।।
विचार दुविधाग्रस्त 
हुए 
जिस पथ पर अग्रसर 
क्योंकि
उस पर एकाकीपन 
और उलझन 
तब देख 
नभ मे हवांए 
उड़ाएं 
बादल अकेले
टकरांए 
सृजन करे
बूंद-बूंद 
जैसे कोई कविवर 
रचनाकार 
छंद रचे
आँखे मूंद- मूंद
नभ से निर्भय अनभिज्ञ 
गिर कर बूंद-बूंद दृढ प्रतिज्ञ
अकेले
कठिन राह पर 
अपना अस्तित्व बचाती
सूखी धरा 
पत्थरीले धरातल से
टकराती
तब 
अचेतन बीज लाखों-लाख 
अंकुर बन बन
हुए जीवंत 
एकांत एक
के हौंसले 
भीड़ कब करती है फैसले
अकेली हवा, अकेला बूंद-बूंद जल
अकेला विचार 
अकेली धरा
सब अपने पथ पर चले दृढ 
तब संभव 
हुआ प्राण सृजन 
जीवंत संसार ।।।।।
 
				
 
						


