*Editorial: इंजीनियर दिवस पर विशेष*
Editorial: इंजीनियर दिवस पर विशेष
एक जमाना था जब इंजीनियर कहलाना एक शान की बात होती थी लेकिन आज इंजीनियरिंग का सरकार ने और इन शिक्षा संस्थानों ने इतना बेड़ागर्क कर दिया कि बेचारे बच्चे लोग जो इंजीनियर बन जाते हैं वह सोचते हैं कि ना जाने हमने कौन सा गुनाह कर लिया कि इंजीनियर बन गए इंजीनियरिंग करके खुद को गुनाहगार समझ रहे हैं😢😢😢
प्लंबर इलेक्ट्रीशियन फिटर की वैल्यू ज्यादा है वह ₹500, 1000 रोज कमा रहे हैं और इंजीनियर बेचारा आठ 10,000 में काम कर रहा है वह भी पूरा महीना । हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि लोग दुकानों में सेल्स मैन में लगे हैं वह भी ₹8000 -9000 प्रति महीना यानी 270 या 300 रुपये per day😪😪😪
इतनी बुरी हालत तो शायद B.Ed की भी नहीं हुई थी। बहुत हैरानी होती है जब MSc और पीएचडी किए हुए लोग 5000- 6000 पर पूरा महीना भर नौकरी करने को मजबूर हैं और सुबह-शाम ऑटो तक चलाने को मजबूर है ।इंजीनियरिंग की डिग्री किए हुए ओला कैब चला रहे हैं चंडीगढ़ में ओला कैब का सफर करते हुए एक ड्राइवर से पूछा था कि भाई कहां से हो कितनी की है पढ़ाई ,उसने कहा इंजीनियरिंग का लास्ट सेमेस्टर चल रहा है। खाली समय में ओला चलाकर कुछ पैसे कमा लेता हूं।
क्या हमारी सरकार ,भारत देश को केवल मजदूरों का देश बनाना चाहती हैं क्यों कोई ऐसी पॉलिसी नहीं बनाई जाती है जिसमें पढ़े-लिखे लोग सम्मान पूर्वक अपना जीवन यापन कर सकें? क्यों सरकार आबादी विस्फोट को नहीं रोक पा रही ?क्योंकि देश में संसाधनों की कमी नहीं है और ना ही यहां के लोग कामचोर हैं, मेहनती हैं ,,फिर हम क्यों तरक्की क्यों नहीं कर पा रहे? क्यों रोजगार नहीं दे पा रहे?
यह एक सोचनीय विषय है