*हिमालय के जर्मप्लाज्म संसाधनों से फसलों की नई किस्में विकसित करेगा कृषि विश्वविद्यालय: कुलपति प्रो.एच.के.चौधरी*
हिमालय के जर्मप्लाज्म संसाधनों से फसलों की नई किस्में विकसित करेगा कृषि विश्वविद्यालय: कुलपति प्रो.एच.के.चौधरी
अढ़ाई करोड़ से शोध कोष स्थापित, मंडी जंजहैली के हेतराम नए कृषि दूत
पालमपुर, 28 सिंतबर। चैसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में बुधवार को रबी फसलों पर राज्य स्तरीय कृषि अधिकारियों की कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि कुलपति प्रो एच.के.चौधरी ने उनके अनुरोध पर विश्वविद्यालय के लिए अढ़ाई करोड़ रुपये के शोध कोष स्थापित करने पर राज्य सरकार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि यह राशि विशेष रूप से हिमालय के अमूल्य जर्मप्लाज्म संसाधनों के संरक्षण पर खर्च की जाएगी ताकि नई फसल किस्मों को विकसित किया जा सके। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को विभिन्न जिलों के किसानों से सीधे संबंधित विशिष्ट अनुसंधान मुद्दों को संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत और अधिक बड़ी शोध परियोजनाओं की आवश्यकता है।
कुलपति ने कहा कि प्रकृति ने प्रत्येक जिले को विशिष्टता प्रदान की है और विश्वविद्यालय सभी जिलों, घाटियों और निचे स्थलों की विशेष फसलों के लिए भौगोलिक संकेतक प्राप्त करने के लिए गंभीर प्रयास कर रहा है। इसके लिए एक विशेष जीआई टास्क फोर्स का गठन किया गया है। उन्होंने बताया कि 56 प्रगतिशील किसानों को विश्वविद्यालय कृषि दूत के रूप में नामित और सम्मानित किया गया है और वे पूरे राज्य में अपने-अपने क्षेत्रों में मुख्य परिसर में उत्पन्न उपयोगी जानकारी को फैलाने में मदद करते हैं। जिला मंडी के जंजहैली से किसान हेतराम को नया कृषि दूत बनाया गया है।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित फसल किस्मों से सभी प्रमुख फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई है। इससे किसानों को अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने में मदद मिली है। उन्होंने विपणन नेटवर्क को मजबूत करने की आवश्यकता को रेखांकित किया ताकि सभी फसलों, विशेष रूप से प्राकृतिक कृषि प्रणाली के तहत उगाई जाने वाली फसलों को लाभकारी मूल्य मिले।
कुलपति ने विश्वविद्यालय और राज्य के कृषि विभाग के बीच सही समन्वय और संचार की भी सराहना की। उन्होंने कृषि विभाग के सभी कृषि उप निदेशकों से कहा कि वे अपने-अपने जिलों के प्रमुख मुद्दों पर कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श से समाधान करने के लिए चर्चा करें।
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डा. रघुवीर सिंह रबी फसलों के लिए बीज जैसे कृषि आदानों की व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं का भी विवरण दिया। उन्होंने बताया कि रु. कृषि यंत्रीकरण पर 23 करोड़ खर्च किए जाएंगे। उन्होंने अधिकारियों और वैज्ञानिकों से बाजरे को पोषक-अनाज के रूप में लोकप्रिय बनाने के लिए कहा।
अनुसंधान निदेशक डा. एस.पी. दीक्षित ने बताया कि विश्वविद्यालय में 85 करोड़ रुपये की 130 शोध परियोजनाएं चल रही हैं। विश्वविद्यालय ने फसल सुधार, उत्पादन और संरक्षण पर अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी, सब्जी फसलों, जैविक और प्राकृतिक खेती में उपलब्धियों पर भी बात की।
विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. वी.के.शर्मा ने विस्तार शिक्षा में प्रमुख उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि बारह हजार से अधिक किसानों की भागीदारी से 350 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए। कृषि विज्ञान केन्द्र कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना, सिरमौर एवं विस्तार शिक्षा निदेशालय द्वारा 11 किसान वैज्ञानिक परिचर्चाओं का आयोजन किया गया। ‘मेरा गांव मेरा गौरव’ कार्यक्रम के अन्तर्गत सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा गोद लिए गांवों का चयन कर उन में कृषि विकास सम्बन्धी कार्य किया जा रहा है।
डॉ. डी.के.वत्स, डीन, कृषि महाविद्यालय और डॉ. लव भूषण ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सब्जियों की फसलों की संरक्षित खेती और हाइड्रोपोनिक्स, प्राकृतिक खेती की संभावनाएं, पोषक तत्वों के उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिए नैनो उर्वरकों के उपयोग आदि जैसे मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। विभिन्न जिलों के कृषि अधिकारियों, कार्यक्रम समन्वयकों और किसानों ने अपने-अपने क्षेत्रों का फीडबैक दिया।
कार्यशाला में अतिरिक्त कृषि निदेशक डा. जीत सिंह ठाकुर, उप निदेशक, विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और विभिन्न जिलों के लगभग एक दर्जन प्रगतिशील किसानों जैसे बलजीत संधू, संगीता देवी, विनोद कुमार, वेद राम, सुरेश, मोहिंदर कुमार आदि ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया।