*पाठकों के लेख: ,✍️लेखक संजीव थापर,:✒️ मैं निर्वाचन हूँ मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ मैं कभी नहीं बदलूँगा* :
*पाठकों के लेख: ,✍️लेखक संजीव थापर,:✒️ मैं निर्वाचन हूँ मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ मैं कभी नहीं बदलूँगा* :
मैं निर्वाचन हूँ मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ मैं कभी नहीं बदलूँगा :-
चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है । राजनीतिक अखाड़ों के पहलवान पूरे दम खम के साथ भिड़ने की तैयारी में व्यस्त हैं । देर रात तक चलने वाली
बैठकों का दौर शुरू हो गया है । छोटे स्तर पर राजनीति करने वालों के चेहरों पर चिरपरिचित मुस्कान घर कर गई है क्योंकि उन्हें लगता है उनकी भरपाई का समय आ गया है । सभी अपनी अपनी गोटियां फिट करने में मशगूल हैं । कोई भी इलैक्शन हो , पंचायत से ले कर लोकसभा तक का , लगभग सभी का परिदृश्य कुछ इसी प्रकार का होता है । मतदाताओं को लुभाने के लिये लम्बे चौड़े वायदों की लिस्टें तैयार करना , मतदान क्षेत्र के एक एक घर का “जातिवार ” अवलोकन करना , मतदाताओं को लुभाने के लिये नये नये हथकंडे अपनाना , कई स्थानों पर अपने विरोधी प्रत्याशी के वोट कटवाने के लिये उसी की “जाति” का अन्य प्रत्याशी खड़ा करवा देना , मतदाताओं को लुभाने के लिये शराब , धन आदि का वितरण करना तथा उन्हें लुभाने के लिये अनगिनत उल्टे सीधे वायदे करने जो उनके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आते । तो इस एक झूठ या अनगिनत झूठे वायदों की बुनियाद पर आज के दौर के इलैक्शन लड़े जाते हैं दोस्तो । यह सब कुछ हमारी आंखों के सामने और कुछ पीठ पीछे होता है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता । अब कुछ प्रश्न उठते हैं जो जानने आवश्यक हैं :-
(1) छोटे से छोटे इलैक्शन में यह पानी की तरह पैसा कौन बहा रहा है और इतना धन कहाँ से आ रहा है ?
(2) क्या कोई भी प्रत्याशी इलैक्शन जीतने के बाद अपनी धन की भरपाई करने के लिये उल्टे सीधे रास्तों से धन संचय नहीं करेगा ?
(3) निर्वाचन के दौरान जो उल्टे सीधे वायदे उसने जनता से किये हैं और जो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते उन्हें कैसे पूरा करेगा ?
(4) और इन सबसे ऊपर अपने गौण और निम्न स्तर के विचारों को छोड़ “देशहित” की बात कब और कौन करेगा ?