Mandi /Chamba /Kangra

Editorial : समलैंगिक_विवाह_को_कानूनी_मान्यता_का_मामला_संविधान_पीठ_के_हवाले:- महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*

1 Tct

Editorial : समलैंगिक_विवाह_को_कानूनी_मान्यता_का_मामला_संविधान_पीठ_के_हवाले:- महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*

Mohinder Nath Sofat Ex.Minister HP Govt.

15 मार्च 2023- (#समलैंगिक_विवाह_को_कानूनी_मान्यता_का_मामला_संविधान_पीठ_के_हवाले)-

भारतीय समाज के एक वर्ग की सोच मे जबरदस्त परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इसी नई सोच और सामाजिक परम्पराओं को लेकर अलग दृष्टिकोण के चलते समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के अनुरोध वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट मे विचाराधीन है। हालांकि भारत सरकार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के पक्ष मे नहीं है। सरकार का स्पष्ट मानना है कि सरकार किसी के व्यक्तिगत जीवन मे दखल नहीं दे रही है, लेकिन यह वैवाहिक संस्था से जुड़ा नीतिगत फैसला है। यदि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलती है तो यह भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के खिलाफ होगा। इससे पहले कोर्ट के आदेश पर समान ही लिंग के बीच यौन संबंध को अपराध मानने वाली धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर निकाल दिया गया है। इसके बावजूद समान लिंग मे विवाह करने का कानूनी अधिकार नहीं है। हालांकि पहले ऐसे संबंधो को अप्राकृतिक माना जाता था लेकिन अब इस दृष्टिकोण मे भी परिवर्तन हो गया है।

खैर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ ने कहा कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों का है और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों का एक-दूसरे पर प्रभाव का है। इसलिए इन याचिकाओं को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया है। भारतीय समाज की दृष्टि से यह अति संवेदनशील मामला है। मेरी समझ मे कोर्ट को इसका निर्णय करते हुए सिर्फ व्यक्तिगत अधिकारों और पाश्चात्य सोच से आगे निकल भारतीय समाज की सोच और भारतीय संस्कृति का भी चिन्तन करना होगा। यह बात काबिले गौर है की आधुनिकता की आंधी के बावजूद भारतीय समाज का बहुमत परम्परावादी है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट का इस मामले मे दृष्टिकोण पहले से अलग- अलग है। सुप्रीम कोर्ट एक समलैंगिक वकील को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाने की लगातार तीन बार सिफारिश कर चुका है। सरकार दो बार उस नाम को स्वीकृत किए बगैर वापिस लौटा चुकी है। तीसरी बार भेजा गया वही नाम फिर सरकार के विचाराधीन चल रहा है। उच्चतम न्यायालय और सरकार के बीच समलैंगिक व्यक्ति को जज बनाने के लिए चल रहा शीत युद्ध दोनों के इस विषय पर मतभेद बताता है। अब मामला संविधान पीठ के हवाले कर दिया गया है। उम्मीद है कोर्ट फैसला करते हुए सभी पहलुओं की समीक्षा कर समाज हित और देश हित को ध्यान मे रखेगा।

#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button