“वर्ग संघर्ष और कानून* ” *लेखक उमेश बाली*
“वर्ग संघर्ष और कानून “
बहुत बार सोचता हू कि भारत की समस्या क्या विभिन्न जातियों में बंटे और विभिन्न धर्मों में बंटी सामाजिक व्यवस्था है । हालांकि यह विभिन्न वर्ग संघर्ष तो है और हर कोई सत्ता और संसाधनों पर अपनी हिस्सेदारी चाहता है यहां तक तो मांग जायज है । लेकिन सवाल तब उठता है जब कोइ वर्ग या जाति देश या पूरे समाज को ही अपनी अपनी रूढ़ियों से चलाना चाहती है और किसी न किसी रुप में कानून और न्याय की अवहेलना कर देती है और संविधान पर भी सवाल उठाने लगती है । इसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो हमारा राजनितिक ढांचा है जो विभिन्न राजनितिक दलों में इस सोच को पनपने देता है कि किसी भी प्रकार से सत्ता हासिल की जाए पहले , देश और समाज के बारे में बाद में सोचेंगे ।राजनीतिक ढांचे के मूल में यही भावना काम करती है और सुविधाजनक स्थिति को हवा देती है । उस सुविधाजनिक स्थिति में कानून दर किनारे हो जाता है और न्याय कराहने लगता है । जो व्यक्ती पिस जाता है वो बेगुनाह हो कर भी बरसो जेल की चारदीवारी से बाहर नही आ पाता दूसरी तरफ यही राजनीति अपनी सुविधा के लिए हत्यारों और ब्लातकारियो को शरण देती भी दिखाई देती है । अतीत में भी ऐसा होता रहा और आज भी यही चलन है । वर्ग संघर्ष और धर्म की भिन्नता को ढाल बना कर हर राजनितिक दल केवल अपना उल्लू साधता है। कोई भी अछूता नहीं सभी नंगे है । एक सबसे बडा और आसान तरीका समरसता का कानून और न्याय व्यवस्था से आता है । राज्य और सरकार अगर दोनो ही निष्पक्ष कानून व्यवस्था और न्याय प्रदान करें तो देश की आधी से अधिक समस्याएं हल हो जाएं । प्रभावी और निष्पक्ष कानून व्यवस्था , हिंसा को रोकती है , यातायात के नियमो का पालन करवाती है , हर देश को चलाने वाली व्यवस्था के सुगम बना देती है और वर्ग संघर्ष पर रोक लगाती है । क्योंकि निष्पक्षता हर इंसान या समाज को समान अवसर उपलब्ध करवाती है और सत्ता संसाधनों में बराबर की हिस्सेदारी प्रदान करती है ताकि हर कोई अपने वर्ग और देश के हित साधने में समर्थ हो । अफसोस है यहां उल्ट हो रहा है न तो किसी वर्ग के अपने हित साध रहे है न ही देश के। केंद्र की बात राज्य नही मानते हर राज्य का मुखिया अपने राज्य को ही देश मान बैठा है । उसे कोई मतलब ही नहीं की लम्बे समय में राज्य या देश उसकी सुविधा से बहुत अधिक मुश्किल में फंस जायेगा बस अपना उल्लू सीधा करना है बाकि सब जाए भाड़ में ।। तकनीकी तौर पर आम आदमी को जितनी सुविधा प्राप्त हुई है उससे कहीं अधिक जटिल व्यवस्था की तरफ देश की राजनीती चल निकली है , जिसका भुगतान शायद रक्तरंजित होगा औरआने वाली नस्लों को करना होगा। जो लोग और नेता एक हेलमेट के चलान पर राजनितिक सुविधा देखते है उनसे आप बडी उम्मीद क्या पाल सकते है । सुविधा की नीति को छोड़िए और देश को प्रभावी कानून और न्याय व्यवस्था की तरफ ले कर चलिए इसी में अंत में भला होगा ।