Mandi/ Palampur/ Dharamshala

*पालमपुर का ‘आरा चौक’ अब जाना जाएगा ‘मेजर सुधीर वालिया चौक’ के नाम से*।

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पालमपुर का आरा चौक अब जाना जाएगा मेजर सुधीर वालिया चौक के नाम से।

आज पालमपुर में एक सादे समारोह में मेजर सुधीर वालिया की जयंती पर उन्हें माल्यार्पण किया गया उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई इस अवसर पर मेजर सुधीर वालिया के पिता श्री रुलिया राम वालिया जी उनकी बहन  स्थानीय विधायक आशीष बुटेल डिप्टी मेयर अनीश नाग  अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहै।

मेजर सुधीर वालिया का जन्म 24 मई 1969 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के एक गाँव बनुरी में एक कलाल परिवार में हुआ था , एक सेना के अनुभवी सूबेदार मेजर रूलिया राम वालिया और श्रीमती राजेश्वरी देवी। उन्होंने सुजानपुर टीहरा में सैनिक स्कूल में पढ़ाई की । इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी , खडकवासला में प्रवेश प्राप्त किया

उन्हें 11 जून 1990 को लेफ्टिनेंट के रूप में पदोन्नत किया गया था। वालिया को 11 जून 1993 को कप्तान के रूप में पदोन्नत किया गया था, और 1994 में जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद का मुकाबला करते हुए उनकी वीरता के लिए 1994 में सेना पदक से सम्मानित किया गया था। 1997 में, उन्हें एक विशेष पाठ्यक्रम के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका भेजा गया और प्रथम स्थान प्राप्त किया।
बाद में उन्हें तत्कालीन सेना प्रमुख (COAS ), जनरल वेद प्रकाश मलिक के सहयोगी-डे-कैंप (ADC) के रूप में प्रतिनियुक्त किया गया था। जब कारगिल युद्ध छिड़ गया, तो उन्होंने युद्ध के मैदान में जाने के लिए सीओएएस से विशेष अनुमति ली।

उन्होंने मुशकोह घाटी क्षेत्र में 5200 मीटर की दूरी पर ज़ुलु टॉप पर कब्जा करने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया। बिना अनुकूलन की आवश्यकता के जुलु टॉप पर उनके हमले के बारे में पूछे जाने पर, मेजर सुधीर ने कहा: “सर, आप जानते हैं कि मैं एक पहाड़ी (पहाड़ों से) हूँ। मुझे अनुकूलन की आवश्यकता नहीं है।”

कारगिल युद्ध समाप्त होने के बाद, उनकी टीम को जम्मू- कश्मीर में आतंकवाद से लड़ने का काम सौंपा गया था।

29 अगस्त 1999 को, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में कुपवाड़ा जिले के हफरुदा जंगलों में एक आतंकवादी ठिकाने पर हमले का नेतृत्व किया। उन्होंने उपस्थित 20 आतंकवादियों में से 9 को मार गिराया, और इस प्रक्रिया में कई बंदूक की गोली से घायल हुए। यद्यपि वह हिलने- डुलने में असमर्थ थे, फिर भी वह अपने दल को तब तक आदेश देता रहे जब तक कि वे सफल नहीं हो गए। ऑपरेशन खत्म होने के 35 मिनट बाद ही उन्होंने खुद को फ्री होने दिया। उन्हें हवाई जहाज से सेना के एक अस्पताल ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी बहादुरी के लिए, उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत में सर्वोच्च शांतिकालीन सैन्य अलंकरण है।

29 अगस्त 1999 (30 वर्ष की आयु) हाफरुदा, कुपवाड़ा , जम्मू और कश्मीर में
कार्रवाई में शहीद हुए।

आज पालमपुर में एक सादे समारोह में मेजर सुधीर वालिया की जयंती पर उन्हें माल्यार्पण किया गया उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई इस अवसर पर मेजर सुधीर वालिया के पिता श्री रुलिया राम वालिया जी उनकी बहन आशा वालिया स्थानीय विधायक आशीष बुटेल डिप्टी मेयर अनीश नाग  अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे। यहां यह उल्लेखनीय है कि मेजर सुधीर वालिया की बहन आशा वालिया इस चौक का नाम बदलने के लिए काफी समय से मांग कर रही थी जिसे पूरा कर दिया गया।

सुधीर वालिया के सैनिक स्कूल स्कूल के सहपाठी राजकुमार शर्मा तथा श्रीमती राज सुनीता नैंसी शर्मा ने विशेष रूप से उपस्थिति दर्ज कराई

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