*जैविक और प्राकृतिक खेती भारत की प्राचीन कृषि पद्धति : प्रोफेसर चन्द्र कुमार* *कहा…….शोध प्रयोगशाला से खेत तक पहुंचाये*
*जैविक और प्राकृतिक खेती भारत की प्राचीन कृषि पद्धति : प्रोफेसर चन्द्र कुमार*
*कहा…….शोध प्रयोगशाला से खेत तक पहुंचाये*
*कृषि, बागवानी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में*
पालमपुर, 9 जून :- कृषि एवं पशुपालन मंत्री प्रोफेसर चंद्र कुमार ने चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में प्राकृतिक एवं जैविक खेती पर तीन दिवसीय सम्मेलन के समापन समारोह में मुख्यातिथि के रूप में शिरकत की। सम्मेलन में देश भर से अढ़ाई सौ कृषि विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने भाग लिया।
चन्द्र कुमार ने “पारिस्थितिक, आर्थिक और पोषण सुरक्षा के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती” जैसे महत्वपूर्ण विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के लिये बधाई दी। उन्होंने कहा कि देशभर से जैविक खेती के क्षेत्र में विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और चिकित्सकों के ज्ञान और अनुभव के आदान-प्रदान होने से कृषि और किसानों को बहुत अधिक लाभ प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में तीन दिनों के मंथन के बाद कृषि वैज्ञानिकों की संतुतिओं का लाभ सरकार और किसानों को प्रत्यक्ष रुप में होगा।
कृषि मंत्री ने कहा कि भारत में खेतीबाड़ी बहुत प्राचीन पद्धति है और हमारे पूर्वज बिना रासायनों, कीटनाशकों तथा पशुधन के साथ
जैविक और प्राकृतिक खेती करते थे। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक और जैविक खेती कोई नई अवधारणा नहीं है, बल्कि भारत में हजारों वर्षों से इसी अवधारणा से खेतीबाड़ी होती रही हैं।
उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय और कृषि अनुसंधान केंद्र हमारे लिए कृषि वैज्ञानिकों की नर्सरी है। उन्होंने कहा कि इन संस्थानों ने देश की कृषि की दिशा और दशा बदलने में सराहनीय प्रयास किये हैं। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से अनुसंधान को प्रयोगशाला से खेत पर लाने का आह्वान किया ताकि किसानों को आर्थिक रूप में सुदृढ़ किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या में खाद्यानों की उपलब्धता कृषि वैज्ञानिकों के समुख बड़ी चुनौती है और प्राकृतिक तथा जैविक खेती के माध्यम से खाद्यानों की मांग को पूरा करने की दिशा में कृषि वैज्ञानिकों को विशेष प्रयास करने की जरूरत है।
कृषि मंत्री ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाये है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार कृषि तथा किसानों के उत्थान और उन्हें सुदृढ़ करने के लिये वचनबद्ध है। उन्होंने कहा कि कृषि, बागवानी और पशुपालन विकास सरकार की विशेष प्राथमिकता है और इन क्षेत्रों के विकास के लिये कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार, किसानों, बागवानों को उन्नत बीज, उर्वरकों और कृषि मशीनीकरण के लिए उपदान दिया जा रहा है। उन्होंने वैज्ञानिकों से मृदा परीक्षण पर विशेष ध्यान देने की बात करते हुए कहा कि जलवायु एवं वातावरण के अनुरूप किसानों और बागवानों को प्रोत्साहित किया जाए।
इससे पहले चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एच के चौधरी ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया। उन्होंने मृदा के सेहत पर ध्यान देने को आवश्यकता पर बल देने की बात कही। उन्होंने कहा कि सभी फसलों का प्रयोग को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि जैविक और प्राकृतिक खेती में भी काम करते हुए उन फसलों का चयन करना होगा, जिस विधि से खेती सुगमता से कर सकें ताकि वैरायटी पर ध्यान देते हुए उन्हें सामने लाया जा सके।
उन्होंने पानी के मोल को समझते हुए पानी के उपयोग के लिए काम करना नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मांग के अनुरूप काम किया जाना समय की आवश्यकता है ताकि उसके मुताबिक किसान काम करे। ऐसा होने से ही किसानों को सही रूप में लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि जैविक खेती हिमाचल से आरम्भ हुई है और अब उसमें जो भी संस्तुतियों को रखा गया है उस पर काम किया जाएगा। इस अवसर पर विभिन्न सत्रों में आयीं संतुतिओं को प्रस्तुत किया गया।
समापन समारोह में विशेष अतिथि के रूप में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय उत्तराखंड के कुलपति डॉ. परमिंदर कौशल उपस्थित रहे। उन्होंने आयोजकों को जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय सम्मेलन की बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन की सीधा लाभ किसानों को प्राप्त होगा। इस अवसर पोस्टर प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।
सम्मेलन में कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. डी के वत्स, सम्मेलन के संयोजक व अनुसंधान निदेशक डॉ. एस पी दीक्षित, आयोजन सचिव डाक्टर जनार्दन सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर रणवीर राणा,
डॉ. गोपाल कतना सहित कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक, छात्र, प्रध्यापक और गणमान्य लोग उपस्थित रहे।