पाठकों के लेख एवं विचार
*पाठकों के लेख* *ग़ज़ल*
नई ग़ज़ल के चंद शेर आप सभी के लिये
चेहरा उठा के चेहरे से घूँघट उठाइये।
हम भी तो जलवा देखे नज़र तो मिलाइए
हमको नही पता था घूंघट में चांद है।
होठों की सुर्ख लाली से दिल जगमगाइये
बेचैनी बढ़ रही है दिल हो रहा बेकाबू।
हौले से दिल पे हाथ रख हमको बचाइये
हम मानते नही थे तक़दीर भी होती है।
सोये हुये इस ग्रह को छू कर जगाइये।
विनोद वत्स