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*बृहस्पतिवार_का_दिन_देश_के_संसदीय_इतिहास_मे_बतौर_काला_दिन_दर्ज_होगा* लेखक; महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री मंत्री

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21 दिसंबर 2024–(#बृहस्पतिवार_का_दिन_देश_के_संसदीय_इतिहास_मे_बतौर_काला_दिन_दर्ज_होगा)-

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यह तो होना ही था और देश को शर्मसार भी होना था। संसद परिसर मे धक्का- मुक्की, 2 भाजपा सांसद घायल और विपक्ष के नेता के खिलाफ एफआईआर, यह अखबारों की हैड लाइन है। प्रतिष्ठित दैनिक की रिपोर्ट के अनुसार बाबा आंबेडकर मुद्दे पर संसद परिसर मे आज बवाल हो गया। अमित शाह की टिप्पणी को लेकर विरोध जताते हुए विपक्षी दलों ने मार्च निकाला तो भाजपा सांसदो ने कांग्रेस पर बाबा साहेब के अपमान का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया। संसद भवन के मकर द्वार के निकट सत्तापक्ष और विपक्ष मे कथित तौर पर धक्का मुक्की हुई और जिसके परिणामस्वरूप भाजपा के दो सांसद कथित तौर पर घायल हो गए। भाजपा का आरोप है कि लोकसभा मे नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने धक्का- मुक्की की जिस वजह से उनके बुजुर्ग सांसद 69 वर्षीय प्रताप सारंगी और उत्तर प्रदेश के मुकेश राजपूत घायल हो गए। हालांकि मैने अपने पिछले ब्लॉग मे सत्तारूढ दल और विपक्ष मे बढ़ती कटुता को लेकर चिंता व्यक्त की थी, लेकिन बात यहां तक इतनी जल्दी पहुंच जाएगी उसकी कल्पना भी नही की थी। संसद मे सबसे महत्वपूर्ण पद होता है सदन के नेता का और दूसरा पद होता विपक्ष के नेता का। राहुल गांधी मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता है और उन्हे कैबिनेट रैंक प्राप्त है। ऐसे सवैधांनिक पद पर विराजमान नेता का नाम धक्का- मुक्की मे आना और फिर प्राथमिकी दर्ज हो जाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। मेरा ब्लॉग राहुल के खिलाफ लगे आरोपों की पुष्टी नही कर सकता है, लेकिन इतना सही है कि राहुल गांधी मौके पर उपस्थित थे। मेरी समझ मे विपक्ष का विरोध प्रदर्शन राहुल गांधी के नेतृत्व मे हो रहा था इसलिए वहां खराब हुए हालात को संभालने की जिम्मेदारी उनकी ही बनती थी। उनकी धक्का मुक्की मे कितनी भागीदारी थी वह जांच का विषय है।

असल मे वर्तमान मे संसद मे पक्ष और प्रतिपक्ष का रिश्ता दुश्मनी मे बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। मैने पिछले कल भी लिखा था आज फिर दोहरा रहा हूं कि आज दलों की सरहदो से ऊपर उठकर सभी सांसदो को अनौपचारिक संवाद बढ़ाने की जरूरत है। आज के प्रतिनिधियों को अपने इस संसद की उच्च परम्पराओं से प्रेरणा लेने की जरूरत है। इस सन्दर्भ मे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते है लेकिन कांग्रेस के नेता और देश के प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव का विपक्ष के नेता एवम भाजपा सांसद अटल बिहारी बाजपेई के प्रति प्रदर्शित भरोसा सत्तापक्ष और विपक्ष के लिए अनुकरणीय हो सकता है। स्मरण रहे नरसिम्हाराव ने बतौर प्रधानमंत्री देश का जनेवा मे प्रतिनिधित्व करने अपने किसी नेता को न भेज कर अटल बिहारी बाजपेई को भेजा था। उन दोनो के व्यक्तिगत संबंध और दोस्ती सर्वविदित है। आज जो कुछ संसद मे हो रहा है वह सीधे प्रसारण के चलते आमजन के संज्ञान मे है और सांसदो के अपरिपक्व व्यवहार के चलते सांसदो की छवि लगातार धूमिल हो रही है। यदि संसद की गरिमा इसी प्रकार गिरती रही तो निश्चित तौर पर संसदीय प्रणाली पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लग सकता है।

#आज_इतना_ही।

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