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*नगर निगम का कमाल पहले कीमत पर थी रार ,अब क्वालिटी पर उठे सवाल?*

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*नगर निगम का कमाल पहले कीमत पर थी रार ,अब क्वालिटी पर उठे सवाल?*

Tct chief editor

कहते हैं दान के घोड़े के दांत नहीं गिने जाते परंतु घोड़ा दान का हो तो उसके दांत गिरने भी नहीं चाहिए परंतु जहां पर टैक्सपेयर्स का पैसा इस तरह से बेरहमी से बर्बाद होता वहां पर प्रश्न को उठाना बनता है। क्योंकि यहां जो पैसों का सत्यानाश हुआ है इसमें ना तो शासन का और न प्रशासन का की सैलरी से कुछ गया है ,गया है तो टैक्सपेयर्स का पैसा,जो कितनी निर्दयता से खर्च किया गया।

मीडिया में पहले बहुत सवाल उठाए गए की यह 12.50 लाख के शौचालय हो ही नहीं सकते परंतु जैसे तैसे निगम ने शायद इसे जस्टिफाई कर दिया होगा कि यह इतने के ही बनते हैं  और इनकी कीमत इतनी ही बनती है। परंतु इसमें जो इसकी कीमत के हिसाब से सामान लगाया गया है क्या वह सचमुच इसकी चुकाई गई कीमत के हिसाब से सही है ?अगर अभियंत्रिकी/ इंजीनियरिंग के हिसाब से देखा जाए तो हर चीज की एक स्पेसिफिकेशन होती है फिर वह छोटे सा पेंच  हो कील हो या बहुत बड़ी बड़ी कोई महंगी चीज  हो हर चीज को जस्टिफाई किया जाता है कि इसकी कीमत कितनी होगी और ठेकेदार को कितनी कीमत दे रहे हैं ।अगर किसी वस्तु की सरकार की कीमत ₹100 होती है तो हम उसमें 15 परसेंट ठेकेदार का मुनाफा जोड़कर उसे 115 ही  दे सकते हैं। कोई बहुत ही आंखें मूंद ले तो 120 दिया जा सकता है परंतु  किसी भी स्थिति में हम उसे वस्तु  का 140 या 150 नहीं दे सकते। यहां तक की नल का वजन कितना होगा वह किस कंपनी का होगा कौन से स्टैंडर्ड का होगा यह सब बातें देखी जाती हैं जस्टिफाई की जाती है उसके पश्चात ही ठेकेदार को पैसे दिए जाते हैं ।और क्वालिटी कंट्रोल देखना ना तो शासन का काम है ना प्रशासन का। यह काम है यह इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट  इसमें ना तो काउंसलर्स की कोई जिम्मेवारी है और ना ही प्रशासन की परंतु नगर निगम के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की सचमुच दाद देनी पड़ेगी कि इन 12.50 लाख के टॉयलेट में जो नल लगाए गए हैं सीट्स लगाई गई हैं पाइप में लगाए गए हैं टाइलें लगाई गई है या पाइप्स लगाई गई है वह किस स्टैंडर्ड से और किस रेट की है और क्या जस्टिफाई करके दी गई हैं। जस्टिफिशन में कौन सी क्वालिटी डाली गई है ठेकेदार को किस-किस स्टैंडर्ड और क्वालिटी का ठेका दिया गया है यह सब बातें साइट पर एग्जीक्यूशन के टाइम में देखा जाना चाहिए और देखा ही जाता है ,परंतु अगर इसमें जो माल लगा है वही ठेकेदार को ठेके में दिया गया है तो सचमुच बहुत ही सोचनीय विषय है कि इतने महंगे महंगे शौचालय में इतना घटिया माल कैसे लगा जो साल डेढ़ साल के अंदर बिल्कुल खराब हो गया जंग लग गया टूट गया और जो काम ही नहीं करता है। पालमपुर में  नए बस अड्डे के पास बना यह शौचालय मार्केट के लोगों के लिए एक कौतुहल और उत्सुकता का कारण बना हुआ है उनका कहना है कि पुराने बस अड्डे पर सुलभ शौचालय है जिससे कई गुना बेहतर कार्य कर रहा है और उसका खर्चा मात्र कुछ लाख ही होगा और क्वालिटी तथा मेंटेनेंस बहुत अच्छी है स्वच्छता और सफाई भी खूब है मार्केट के लोगों ने कहा कि बस अड्डे के अंदर जो सुलभ शौचालय है वहां पर इस से 4 गुना लोग उसका इस्तेमाल करते हैं लेकिन वह भी इससे काफी अच्छा है।

 

 

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