*पालमपुर नगर निगम के लोगों की जिंदगी कूड़े तक ही सिमट कर रह गई :लेखक संजीव थापर पूर्व इलेक्शन ऑफिसर*



सुबह उठते ही पहली आवाज़ जो कानो में पड़ी है :-
” ध्यान रखना आज कूड़े की गाड़ी भी आनी है , दो दिन से नहीं आई किचिन में गीले कूड़े की बास आ रही है ” ।
दोस्तो आवाज़ सुन मेरे चेहरे ने बुरा सा चेहरा बनाया है , सुबह उठने का सारा उत्साह ” मर” सा गया है । कहाँ मैं मन ही मन न्यूगल नदी के किनारे की ठंडी हवा का आनन्द लेने हेतु जाने की सोच रहा था और कहां अब कूड़े के ढेर पर बैठा महसूस कर रहा हूँ । कहाँ मुझे अब न्यूगल किनारे स्थित हनुमान जी के छोटे से मंदिर के पास रखे बैंच की याद आ रही है जहां हर रोज़ सुबह बैठ कर मैं पूरे देश विदेश का ताना बाना देखता और सुनता था और कहां आज कूड़े से भरे दो बड़े कनस्तर हाथ में लिये गेट पर खड़ा कूड़ा गाड़ी का इंतज़ार कर रहा हूँ । दोस्तो लगता है जिंदगी पूरी तरह से झंड हो गई है या यूं कहूँ कूड़े तक ही सिमट आई है । कूड़े वाला भी ना जाने कौन से जन्म का बदला ले रहा है , गेट पर घण्टों खड़े हो जाओ तो भी दर्शन नही देता , यहां गेट की तरफ पीठ हुई नहीं कि आस पड़ोस से आवाज़ें आनी शुरू हो जाती हैं
” आ गई आ गई , कूड़े वाली गाड़ी आ गई ” दोस्तो इस भागमभाग में मैं इतना तेज दौड़ने लगा हूँ कि 18 साल के धावक की दौड़ भी शरमा जाये । कल तो किसी ने पूछ ही लिया ” आज कल कौन सी चक्की का आटा खा रहे हो मुझे भी बताओ , मेरे तो घुटने जवाब दे गए हैं , बाबा रामदेव भी मेरा कुछ नहीं कर पा रहे “। पास खड़ी पत्नी ने उन महानुभाव को ऐसे घूरा है कि वे जल्दी जल्दी मुझ से कन्नी काट कर खिसक लिये हैं । मुझे समझ आ गया है कि मेरी भी क्लास लगने वाली है । और वही हुआ दोस्तो जो मैं सोच रहा था । पत्नी ने फरमान जारी कर दिया है , कूड़ा जाये भाड़ में यदि कल से मैंने कूड़ा गाड़ी आने पर भागमभाग की और कहीं गिरने की घटना हुई तो हस्पताल के चक्कर काटने के लिये किसी का इंतज़ाम कर लेना ।
इस हसीन ज़िंदगी नें मुझे चक्कर पे चक्कर खिला कर घनचक्कर बना दिया है । क्या कहा वे , ज़िंदगी ने नहीं तुम्हारी बीबी ने तुम्हे घनचक्कर बनाया है । लो वो आ गई , भाग लो वे….. ।

सही फरमाया
सूद साहब ! थापर साहब ने बिलकुल तपते लोहे पर हथौड़ा मारा है , निगम के दायरे में आए सभी इलाकावासीयों का यही हाल है , कूड़े की गाड़ी किस दिन और किस समय आनी है कुछ नहीं कहा जा सकता है और मजे की बात ये है कि कूड़ा उठाने का शुल्क अग्रिम में ही ले लिया जाता है आपके क्षेत्र का तो मैं कुछ नहीं कह सकता मगर हमारे क्षेत्र यानी कि पंचायत का केवल नाम बदला है और हम नगर निगम आठ में आ गए बाकी हालात तो जस के तस, वो बड़े बड़े वायदे पार्क के , रेन शेल्टर के सब हवा हवाई अगर कुछ बना है तो केवल एक शौचालय जिसकी न जरूरत थी न मांग जब से बना है ताले लटके हैं, निगम की फुर्ती और कार्यप्रणाली केवल सोलर लाईटों में ही दिखती है बाकी तो पता नहीं, एक बात में लिखना भूल गया कूड़ा उठाने और
निष्पादन संयत्र हमारी प्रधान श्रीमती हेमा ठाकुर ने बड़ी पहले ही लगा दिया था जिसकी वजह से हमारी पंचायत के चर्चे प्रदेश भर में रहे , हमें तो हमारी मर्जी के बगैर ही निगम में डाल दिया हमें तो पंचायत लाख दर्जे ठीक थी
Dr lekh raj maranda
थापर साहब आप की बात में दम है।इस से पंचायते हज़ार गुना अच्छी थी,नगर निगम में कोइ काम नहीं हो रहा है।बिल्ली के गले में घंटी को बांधे?
Sanjiv Soni
सोनी भाई जी उंस समय यह लड़ाई मेने लड़ी थी आप सब ने नगर निगम का समर्थन किया था मुझे पता था जो काम पंचयात मैं होता था बह नगरनिगम मैं नही पर अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खैत..
Vijay bhatt bundla
बिल्कुल सही कहा सोनी जी अपने आंगन में साथ लगती बिल्डिंग से गंदा पानी आने की नगर निगम में बाकायदा फोटो विडियोज सहित मैने शिकायत की निगम के कर्मचारी भी मौका देखने आए मगर हुआ क्या बाबा जी का ठुल्लू😭 बाद में मुझे ये शिकायत एसडीएम महोदय के समक्ष रखनी पड़ी तब जा कर ये समस्या हल हुई यही नहीं बिल्डिंग का कर्ता धर्ता इतना बेशर्म था कि एसडीएम कार्यालय से ये गंदा पानी बंद करवाने पटवारी और कानूनगो को मौके पर आना पड़ा कुल मिला कर ये प्रक्रिया डेढ़ साल में पूरी हुई।पंचायत होती तो इतने धक्के न खाने पड़ते।
गोपाल सूद पत्रकार मारांडा