पाठकों के लेख एवं विचार

*’भोर_का_तारा ‘:-लेखक हेमांशु मिश्रा*

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#भोर_का_तारा

#हेमांशु_मिश्रा

भोर का तारा
दूर क्षितिज में
टिमटिमाता
तिमिर हटाता
उजाले में चमकता
उत्साह स्फूर्ति लाता है

सूर्योदय से पहले
प्रकाशपुंज दिखलाता
इतर शर्माता
इठलाता
आकर्षित करता
अलग सा दिखता है

चाँद से कहता
मैं ही
सांझ का तारा हूँ
गोधूलि में
दमकता
रातभर टिकता
तारामंडल में
अनूठा दिखता
सुबह सवेरे
एक छोर में
ठहर सा जाता है

पहचान बनाता
भोर का तारा बन
कुछ क्षण में
दूर गगन में
छिप कर
कहीं अनन्त में समाता है

हाँ शुक्र ही
पृथ्वी का जुड़वा
विलक्षण तारा
जुगनुओं से अलग
वैभव समृद्धि का सहारा है
शुक्र ही
कभी भोर और कभी सांझ का तारा है।

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