पाठकों के लेख एवं विचार

*कलम बेचता हूँ इलम बेचता हूँ। लेखक विनोद वत्स*

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। लेखक।।।
कलम बेचता हूँ ईलम बेचता हूँ।
हुनर बेचता हूँ भरम बेचता हूँ।
ज़माने के देखो चलन बेचता हूँ।
यही मुझको आता यही बेचता हूँ।

हुनर गीत गज़ले नज़्में लिखा लो।
कहानी फिल्में भजन लिखा लो।
मैं लफज़ो को दिल में सेंकता हूँ।
कलम बेचता हूँ ईलम बेचता हूँ।

सभी लिख रहे सभी आज लेखक।
जिन्हें क ख आता वो भी है लेखक।
ये सच है मगर मैं यूँ ही फेंकता हूँ।
कलम बेचता हूँ ईलम बेचता हूँ।

कलम चोर दुनिया मे इतने भरे है।
कलम का सिपाही भी इनसे डरे है।
ये है नाग फैले चारो तरफ देखता हूँ।
कलम बेचता हूँ ईलम बेचता हूँ।

है कीमत कलम की यहाँ चार पैसा।
वो मिल जाये पूरा नही होता ऐसा।
यहाँ नर बने नारी हर शो में देखता हूँ।
कलम बेचता हूँ इलम बेचता हूँ।

विनोद शर्मा वत्स

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