Tourism village Palampur editorial : *सही का विरोध करना हम कांगड़ा वालों की आदत मे शुमार*


Tourism village Palampur : *सही का विरोध करना हम कांगड़ा वालों की आदत मे शुमार*

सही का विरोध करना हम कांगड़ा वालों की आदत मे शुमार.
सरकार कोई भी हो जिला कांगड़ा में सरकार कोई भी ऐसा प्रोजेक्ट लेकर आए जिससे लोगों का फायदा होता हो लोगों को रोजगार के साधन मिलते हो विकास की संभावनाएं बढ़ती हों और और लोगों की आर्थिक में सुधार होता हो, तो हम उस बात का अवश्य विरोध करेंगे,यह हमारी आदत में शुमार है
हर इंसान में हर कुछ ना कुछ कमजोरी होती है इन कमजोरी और खूबियों में सही कार्य का विरोध करना हमारी खूबी है.
मसला चाहे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का हो या पीटी सी का हो, जिला बनाने का हो या नगर निगम बनाने का हमको अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारनी ही है.
सबसे बड़ा प्रोजेक्ट सेंट्रल यूनिवर्सिटी का था यदि हम उसे देहरा धर्मशाला या शाहपुर मे नहीं बाँटते तो आज सेंट्रल यूनिवर्सिटी कभी की स्थापित हो चुकी होती और वहाँ चहूँमुखी विकास हो रहा होता.
बात जिला बनाने की करें तो यह एक तथ्य है कि छोटे जिलों से अधिक विकास होता है और लोगों को सुविधाएं मिलती हैं तथा स्वरोजगार तथा सरकारी रोजगार के साधन बढ़ते हैं. परंतु हमे उसका भी विरोध करना ही है.
हमारे सामने उदाहरण है कि आज से पहले बिलासपुर हमीरपुर सोलन जैसे छोटे जिले बने थे आज विकास की दृष्टि से ये जिले काफी आगे निकल चुके हैं क्योंकि छोटे जिलों पर एडमिनिस्ट्रेशन की अधिक पकड़ होती है और विकास की गति बढ़ जाती है.
इसी तरह से एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर का भी शुरू में दबे हुए शब्दों में राजनैतिक विरोध था परन्तु शांता जी की दृढ़निश्चिता से यह प्रोजेक्ट सिरे चढ़ गया. शांताजी ने जब बस स्टैंड को नई जगह शिफ्ट किया था तो लोगों ने डटकर विरोध किया था लेकिन सोचिए अगर बस स्टैंड पालमपुर की उसी पुरानी जगह पर होता तो आज क्या हालात होते.
CSIR का कैंपस हो या IVRI सेंटर हो सभी चीजों का किसी न किसी रूप में विरोध हुआ ही है.
अब वर्तमान सुक्खू सरकार ने एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर की बेकार पड़ी 100 हेक्टेयर जमीन पर इको टूरिज्म विलेज बनाने का निर्णय लिया है जिस पर सरकार आगे बढ़ रही है परंतु राजनीति के चलते इस प्रोजेक्ट का भी विरोध किया जा रहा है जो समझ से परे हैं.क्योंकि एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पास जिस जमीन पर ही है प्रोजेक्ट बनाया जाना है वह बिल्कुल बेकार पड़ी है और पिछले 40 सालों मे इस जमीन पर एक भी रिसर्च वर्क किया नही किया या कोई ऐसा कार्य नहीं हुआ जिसकी वजह से यूनिवर्सिटी का नुकसान होता हो, उल्टा यह यूनिवर्सिटी के इकोनॉमी पर बोझ ही है क्योंकि यहां पर फेंसिंग करके इसकी देखरेख और इसका बचाव करना पड़ता है ताकि यहां पर कोई अपना कब्जा न कर ले.
अगर सरकार इस तरह से बेकार पड़ी हुई जमीन को सही ढंग से उपयोग करें और उसे पर रोजगार के अवसर उत्पन्न हो लोगों को रोजगार मिले स्वरोजगार मिले तो उसमें बुराई ही क्या है? इससे पालमपुर की लोकल मार्केट तथा आसपास के लोगों को भी रोजगार के अवसर मिलेंगे.