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*महिलाओं के लिए कोई छुट्टी वाला इतवार तो होना चाहिए लेखिका :रेणु रेणु*

 

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*महिलाओं के लिए कोई छुट्टी वाला इतवार तो होना चाहिए लेखिका :रेणु रेणु*

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पता हैं औरतें कभी कभी रोज की भागम भाग और काम काज में इतनी थक जाती हैं कि उन्हें लगता है कि काश उनके लिए कोई छुट्टी कोई इतवार तो होना चाहिए न। वो चाहकर भी अपने कामों से हाथ पीछे नहीं ले सकती, वो चाहे बीमार हो, या मन से अस्वस्थ हो, उसे काम तो करना ही है। एक जैसे रूटीन से थक जाती हैं बोझिल सी हो जाती हैं, मानो सारे उल्लास ही खत्म हो गए हों मन के ऐसा नहीं है कि उन्हें अपनो के लिए कुछ करने में दिक्कत है, बल्कि उन्हें बस थोड़ा विराम चाहिए होता है अपनी रोजमर्रा की इस दिनचर्या से वो थक भी जाती हैं पर कुछ कह नही पाती, ये सोचकर कि ये उनका ही काम है, वो नही करेंगी तो फिर कौन करेगा, सबकी पसंद न पसंद को याद करते करते खुद की कोई पसंद उसे याद ही नही रहती, जो मिला बस सही है यार अब क्या मीन मेख निकालना है, क्या अच्छा क्या बुरा ये सब तो कहीं पीछे ही छोड़ती चली जाती हैं। मगर फिर भी कभी न कभी मन में कुछ तो उथल पुथल होती ही है कि मुझे भी थकान होती है, कभी कभार थोड़ा सा अल्पविराम चाहिए मुझको भी। रोज अपने ही हाथो से बना भोजन खाना कभी कभी मन को नही भाता, उचाट सा हो जाता है मन अपने ही बनाए भोजन से, कि काश कोई कभी कभी हमारे लिए भी बना दिया करे भोजन, दूसरे के हाथों का बना खाना भी स्वाद को बदल देता है बस इसलिए देह चाहे थके न थके मन जरूर थक जाता है अक्सर, कभी तो मन करता है कि कहीं दूर किसी अनजान शांत जगह जा कर बैठ जाऊं, जहां न कोई नाम पुकारे, न कोई किसी काम का जिक्र करे, कुछ वक्त बस मेरा हो मेरे लिए हो।

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