मुख्य विपक्ष कांग्रेस का महाधिवेशन 24 फरवरी से रायपुर छत्तीसगढ़ मे शुरू होने जा रहा है। 2024 मे होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए पद-यात्रा के बाद कांग्रेस की यह दूसरी बड़ी राजनैतिक कवायद है। कांग्रेस और भाजपा मे एक मौलिक अन्तर है। भाजपा उस छात्र की तरह है जो सारा साल पढ़ाई करता है और कांग्रेस परीक्षा के नजदीक पढ़ाई करने वाले छात्र के समान चुनावी वर्ष मे ही सक्रीय होती है। खैर इस महाधिवेशन मे 15000 प्रतिनिधि भाग लेने जा रहे है। इस अधिवेशन के ऐजंडे मे सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा विपक्षी एकजुटता है। इस मुद्दे के संदर्भ मे चर्चा की जाएगी और आगे का रुख तय किया जाएगा। कांग्रेस का मानना है कि उसकी मौजूदगी के बिना देश मे विपक्षी एकता की कोई भी कवायद सफल नहीं हो सकती। हालांकि सारे विपक्ष को एकजुट करना अगर असम्भव नहीं तो अति कठिन अवश्य है। सर्वविदित है कि 1967 मे डाॅ राममनोहर लोहिया और 1977 मे लोकनायक जयप्रकाश के प्रयासों से यह कठिन कार्य संम्भव हो गया था। मेरी समझ मे आज कोई लोहिया और जयप्रकाश के स्तर का सक्ष्म नेता दिखाई नहीं देता जो इस कार्य को अंजाम दे सके।
कांग्रेस का यह दावा सही है कि उसके बिना कोई भी विपक्षी गठबंधन सफल नहीं हो पाएगा, क्योंकि आज भी देश के हर शहर और हर गांव मे कांग्रेसी कार्यकर्ता सक्रीय है। नीतीश को यह भ्रम जरूर है कि वह विपक्षी एकता करवाने मे सार्थक भूमिका अदा कर सकते है, लेकिन कांग्रेस अपने सामने किसी को क्यों टिकने देगी। उनके लिए तो राहुल गांधी ही सबसे बड़े नेता है, लेकिन देश की कोई भी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय या प्रांतीय पार्टी राहुल को नेता मानने को तैयार नहीं है। हर छोटी बड़ी पार्टी महत्वाकांक्षी है और अधिक से अधिक सीटें गठबंधन मे लेना चाहती है। यदि किसी नेता पर सहमति बन भी जाए तो सीट आबंटन भी एकता मे बड़ी बाधा है। मेरे विचार मे यदि विपक्ष इस सिध्दांत को मान लेता है कि जो विपक्षी पार्टी 2019 के चुनाव मे नम्बर एक या नम्बर दो रही है गठबंधन मे उस सीट पर उसी पार्टी का अधिकार होगा तो बात बन सकती है और विपक्षी एकता के लिए आगे बढ़ा जा सकता है।बिना विपक्ष एकता के भाजपा अगले चुनाव मे सुरक्षित है। भले कांग्रेस पदयात्रा करे या महाधिवेशन।