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Editorial*पालमपुर नगर निगम में चल रही मेयर की कुर्सी के लिए कशमकश*

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पालमपुर नगर निगम में चल रही मेयर की कुर्सी के लिए कशमकश!।

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नगर निगम पालमपुर को बने हुए अढ़ाई साल हो चुके हैं तथा नियमों के अनुसार मेयर तथा डिप्टी मेयर का चुनाव फिर से होना तय है ।अभी मेयर की कुर्सी को खाली हुए महज चार दिन हुए हैं परंतु पार्षदों में इस कुर्सी के लिए खींचतान शुरू हो चुकी हैं। हर कोई कुर्सी के लिए आस लगाए बैठा है ।
अगर हम पूर्व के परिवेश में जाएं तो मालूम पड़ेगा की नगर निगम के जितने भी चुने हुए पार्षद आए हैं उनमें उन्हें जिताने के लिए यहां के कांग्रेस के निर्विवाद नेता बृज बिहारी बुटेल तथा आशीष बुटेल ने कितनी भूमिका निभाई थी । यहां पर कांग्रेस समर्थित नगर निगम का बनना इस बात का द्योतक है कि इस क्षेत्र में कांग्रेस का और विशेष रूप से बृज बिहारी लाल बुटेल का कितना दबदबा है लोग उनकी कितनी इज्जत मान करते हैं।

सभी पार्षद थे यह भी भलीभांति जानते हैं कि इन दोनों नेताओं ने उन्हें जिताने में कितने प्रतिशत हिस्सेदारी निभाई है ।लोगों की माने तो उनका कहना है कि पार्षदों के कार्यकलापों को देखकर उनके एक्सपीरियंस को देखकर उन्होंने वोट नहीं किया था बल्कि बुटेल परिवार की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए इन पार्षदों को चुना था और वह भी तब जबकि प्रदेश में भाजपा की सरकार थी तथा भाजपा पालमपुर में बहुत अच्छी तरह से सक्रिय थी। भाजपा के नेता जयराम ठाकुर ने पालमपुर को नगर निगम का तोहफा देकर बहुत बड़ा कार्य किया था परंतु वोटरों ने उस वक्त के मुख्यमंत्री तथा प्रभावशाली नेताओं की ना सुनकर बुटेल परिवार के कहे अनुसार ऐसे पार्षदों को भी जीता दिया जो शायद कभी सोच भी नहीं सकते थे कि वह कभी पार्षद बन पाएंगे, हालांकि भाजपा ने उसे समय अच्छी खासी टक्कर दी थी परंतु बुटेल परिवार की मेहनत रंग लाई और यहां पर कांग्रेस समर्थित पार्षद चुनकर आए और निगम के में डिप्टी मेयर के पद पर भी कांग्रेस का ही कब्जा रहा ।

परंतु अब जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है यहां के एमएलए आशीष बुटेल सत्ता में है और शासन प्रशासन पर अपना प्रभाव रखते हैं फिर इन पार्षद लोगों को वह समय नहीं भूलना चाहिए जब उन्हें टिकट की दरकार थी वोटों की जरूरत थी तब उनके साथ कौन खड़ा रहा आप भविष्य में भी फिर से इन्हें इसी परिवार की सहायता की आवश्यकता रहेगी ।
अब यदि यह इस तरह से आपस में लॉबिंग करके एक दूसरे को पटकनी देने के सोचेंगे तो यह उनके हित में नहीं होगा, क्योंकि अंत तक अढ़ाई साल बाद फिर से निगम के चुनाव होने हैं । और चिंता इन्हें इनके द्वारा किए गए कार्य और ओवरऑल नगर निगम की तरक्की और खुशहाली के मद्दे नजर ही इन्हें वोट मिलेगा और निगम की तरक्की और छवि को कौन सुधार सकता है यह भी भली भांति से जानते हैं।

इन लोगों को इतना ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व में नगर परिषद द्वारा करवाए गए कार्य कितने कारगर और सही साबित हुए थे। नगर निगम या नगर पंचायत अथवा पंचायत का दायरा बहुत छोटा होता है और मतदाता और वहां के निवासी एक-एक पार्षद की कमियां और उसकी खूबियां को बाखूबी पहचानते हैं और परखते हैं।

पूर्व में किस व्यक्ति ने कितनी सक्रियता तथा क्षमता से काम किया है इस बात पर उनकी पैनी नजर रहती है। हर गली मोहल्ले की बहुत छोटी-छोटी समस्याएं होती हैं उस पर कौन कितना ध्यान देता है इसी बात को वोटर ध्यान में रखते हैं। यहां के जो पार्षद इस वक्त एक दूसरे को पटखनी देने की सोच रहे हैं उन्हें इतना समझ लेना चाहिए कि केवल 30 महीना का समय ही उनके पास बाकी है और उन्हें फिर से जनता का सामना करना पड़ेगा तथा जनता उन्हें उनके निजि या व्यक्तिगत पहचान गुण या अवगुण के को देखकर में वोट नहीं देगी बल्कि उनके काम को वोट देंगी।

अगर वह किसी ऐसे नेता को चुनते हैं जो सक्षम हो ईमानदार हो काम करने के लिए जुनून रखता हो जिसका शासन प्रशासन में कुछ अनुभव हो तो आने वाले अढ़ाई सालों में वहीं मेयर इनको जीताने की क्षमता रख पाएगा।

जनप्रतिनिधियों को एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि इन्हें उसी टैगलाइन पर कार्य करना चाहिए कि
‘ काम किया है काम करेंगे !
नगर निगम को नहीं बदनाम करेंगे !!
तो इन्हें ऐसे नेता को मेयर को चुनना चाहिए जो अनुभव रखता हो जिसमें कार्य करने की क्षमता हो जुनून हो। शहर को सुंदर स्वच्छ और समृद्ध बनाने की क्षमता रखता रखता हो तथा सबको साथ लेकर नेतृत्व करने की क्षमता रखता हो उसे ही अपना मेयर चुनना चाहिए ।इसी में शहर का, निगम का और यहां की जनता का भला होगा वरना 30 महीने बाद उनका क्या होने वाला है यह वह भी अच्छी तरह से जानते हैं।

 

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