*कुरल_कुरलाणी कांगड़ा की कहानी! एक सटीक विश्लेषण:- Himanshu Mishra द्वारा*
*कुरल_कुरलाणी कांगड़ा की कहानी! एक सटीक विश्लेषण:- Himanshu Mishra द्वारा*
#कुरल_कुरलाणी
#हेमांशु_मिश्रा
कांगड़ा जनपद में सावन महीने के अंतिम 8 दिन और भादों (काला महीना) की संक्रांति के पहले 8 दिन को कहते हैं की कौवे के जैसा दिखने वाले पक्षी #कुरल_कुरलाणी व्यास तट पर सिम्बल के पेड़ों में एक एक कर बैठते हैं । इन दिनों को लोक ऋतु के हिसाब से इसी लिए #कुरल_कुरलाणी कहते हैं।
पालमपुर धर्मशाला में पिछले पांच दिन से मूसलाधार बारिश हो रही है । कांगड़ा के मूल निवासियों लिए ऐसी बारिश कोई नई बात नहीं है । यहाँ लगभग सबको मालूम है कि पिछले पांच दिन से कुरल बैठा है और 14 अगस्त तक बैठा रहेगा इस दौरान कुरल के भोजन की व्यवस्था सब कुरली करती है , व्यास तट से तिनके घास मछली सब ला कर कुरल को देती है ।
इस के बाद कुरली का समय बैठने के लिए आता है तब वही काम कुरल करता है , इन दोनों को अपनी बारी में पहली ही डुबकी में मछली पकड़कर लानी होती है, और पहले आठ दिन कुरली कुरल को खिलाती है और अगले आठ दिन कुरल कुरली को खिलाता है।
जिसे मैं बैठना कह रहा हूँ जनमानस में उसे साधना का नाम भी दिया गया है, लेकिन मैंने जो शब्द बुजर्गो से सुना वही इस्तेमाल कर रहा हूँ।
कुरल कुरलाणी के संबध में कहा जाता है कि यह नर और मादा पक्षी हैं ,जो हर वर्ष हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में ब्यास नदी के नरियाह्णा पत्तन जो कि पौंग डैम बनने के बाद जलमग्न हो गया है , के पास एवम व्यास तट पर ही कालेश्वर महादेव के किनारे सिम्बल के पेड़ों पर सोलह दिन के लिए आकर
बैठते हैं.। सोलह दिन इन पेड़ों पर बिताने के बाद दोनों न जाने कहां चले जाते वर्षा ऋतु के अगले आगमन तक ।
पारंपरिक तकनीकी ज्ञान Traditional technical knowledge या स्वदेशी तकनीकी ज्ञान (आईटीके) के आधार पर इन दिनों में भारी से बहुत भारी बारिश की चेतावनी कांगड़ा जनपद में स्वतः ही रहती है। यह पुराने समय मे EARLY WARNING SYSTEM जैसा ही था।
पारंपरिक तकनीकी ज्ञान, किसी भी क्षेत्र या समुदाय के लोगों ने समय के साथ अनुभव के आधार पर विकसित किया होता है। मूलतः यह वर्षों के अनुभव पर आधारित है. स्थानीय उपयोग और पर्यावरण के लिए इसे अपनाया जाना अत्यधिक कारगर है।
मूलतः भारत मे छः ऋतुएँ होती हैं जैसे बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, हेमंत ऋतु, शरद ऋतु, और शिशर ऋतु, लेकिन कांगड़ा जनपद में काल कालांतर से अपनी सटीक गणना हेतु लोकऋतुओं का वर्गीकरण कर रखा है ,हर ऋतु की अपनी उपऋतुएं हैं,हर ऋतु के संबंध में एक पूर्वानुमान है। 12 जून 2024 को फ़ेसबुक में ही मैंने आपको तीर के बारे में बताया था। वैसे ही ठाण , जल बिम्बियाँ और चम्बड़ चिसियां आदि कुल 12 लोक ऋतुएँ यहाँ कांगड़ा में मानी जाती है। सभी का अपना अपना महत्व है और सभी एक दूसरे के बारे में काफी कुछ भविष्यवाणी कर जाती हैं ।
वर्षा ऋतु के इस समय को (25 श्रावण से 8 भाद्रपद ) तक के समय को कुरल -कुरलाणी की ऋतु कहा जाता है, इन दिनों मूसलाधार बारिश होती है । यह वर्गीकरण मौसम विभाग की भविष्यवाणी से भी अधिक सटीक रहता है । कहते है की जब कुरल के बैठते समय ज्यादा बारिश हो जाये तो अगले आठ दिन थोड़ी कम बारिश होती है और अगर पहले आठ दिनों में कम बारिश हो तो कुरली के बैठते समय आठ दिनों में मूसलाधार बारिश होती है । इन सब को मिर्ग सनाइयों तीर के तपने यानी गर्म होने से भी जोड़ा गया है , अगर तीर के समय अधिक गर्मी पड़ गयी तो कुरल कुरलाणी में जम कर बारिश होनी ही है।
कुरल कुरलाणी के बाद अगली लोक ऋतुओं की चर्चा विस्तार से मैं अगली बार करूँगा।
आज के लेख के लिए मैं दुर्गेश नन्दन जी को धन्यवाद कहूंगा जिनका दो वर्ष पहले लिखा लेख मानस पटल पर आज भी विद्यमान था,
वही आज सुबह बाल कटवाने कोतवाली बाजार धर्मशाला गया था, तो बाल काटते हुए हमारे नाई भाई साहिब ने जो बातें बताई वो भी आपके साथ सांझा की है। मैं उनका भी धन्यवादी हूं कि सब बातें आप से सांझा कर पाया ।
यही बाते बचपन से हम बुजुर्गों से सुनते आ रहे है। इसलिए पारंपरिक देशी तकनीकी ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए बुजुर्गों का भी धन्यवाद।
अंत में, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि लोक ऋतुओं का वैज्ञानिक अध्ययन कर मौसम विभाग के अधिकारियों को इससे पारंगत करवाना चाहिए ताकि मौसम का सटीक पूर्वानुमान सभी माध्यमों से हो सके।