

*श्री देसराज बंटा: जनसेवा और स्वाभिमानी पत्रकारिता के प्रतीक*

पत्रकारिता के उस स्वर्णिम दौर के अमर स्तंभ, श्री देसराज बंटा, न केवल एक समर्पित पत्रकार, बल्कि समाज के सच्चे मसीहा थे। उनका सम्पूर्ण जीवन गरीबों, वंचितों और जनहित के कार्यों को समर्पित रहा। उनकी कलम सत्ता के निरंकुश स्वरूप पर प्रहार करने के साथ-साथ आमजन की आवाज बनी, जिसमें सत्यनिष्ठा और मानवीय संवेदना का अद्भुत सामंजस्य था।
राजनीतिक संबंधों को जनसेवा का माध्यम बनाया
श्री बंटा के राजनीतिक और प्रशासनिक संबंध व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि जनकल्याण के लिए थे। मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों से उनके निजी सम्बन्धों का उपयोग उन्होंने गरीबों को न्याय दिलाने, नौकरियाँ प्राप्त कराने और बुनियादी सुविधाएँ पहुँचाने में किया। उनकी पहल से दर्जनों परिवारों को पेयजल कनेक्शन मिले, बिजली की सुविधा सुलभ हुई और सुदूर इलाकों में सड़कों का निर्माण हुआ। टेलीफोन एडवाइजरी कमेटी में रहते हुए उन्होंने असंख्य टेलीफोन लाइनों के माध्यम से ग्रामीणों को संचार क्रांति से जोड़ा।
उस युग में पत्रकारिता केवल समाचार लिखने का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रहरी थी। श्री बंटा की मौजूदगी ही अधिकारियों को अनैतिक कार्यों से रोकती थी। उनकी लेखनी का डर ऐसा कि सत्ता में बैठे लोग गलत कदम उठाने से पहले दस बार सोचते थे। स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक, उन्होंने हर मुद्दे को जमीनी स्तर पर उठाया और नीति निर्माताओं को जनसमस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाया।
निःस्वार्थ समाजसेवा और सादगी का जीवन
उनकी प्राथमिकता हमेशा लोकहित रही। राजनीतिक पहुँच होने के बावजूद उन्होंने कभी अपने लिए कोई सुविधा नहीं माँगी। उनके लिए प्रभाव का अर्थ था — भूखे को रोटी, बेघर को छत और बेरोजगार को काम दिलाना। उनके प्रयासों से कई युवाओं को रोजगार मिला, परिवारों का पुनर्वास हुआ और समाज के गुमनाम लोगों को पहचान मिली। उनकी सादगी और ईमानदारी ने पत्रकारिता के पेशे की गरिमा को नए शिखर पर पहुँचाया।
विरासत: नैतिकता और साहस की मिसाल
श्री बंटा ने सिद्ध किया कि पत्रकारिता सत्ता की चाटुकारिता नहीं, बल्कि निर्बलों का सहारा है। उनका जीवन पत्रकारों के लिए यह सीख छोड़ गया कि कलम की ताकत जनता के हित में होनी चाहिए। आज भी उनके लिखे लेख, लगवाए गये नल और बिजली पानी व टेलीफोन के कनेक्शन गवाह हैं कि एक पत्रकार कैसे समाज को बदल सकता है कैसे लोगों की समस्याओं को दूर कर सकता है इतना ही नहीं उन्होंने कुछ लोगों को रोजगार के साधन भी दिलवाय और कुछ लोगों की नौकरियां भी लगवाई जो उनको आज श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
श्री देसराज बंटा ने पत्रकारिता को “सेवा” और “सत्य” का पर्याय बनाया। उनका व्यक्तित्व याद दिलाता है कि असली पत्रकार वही है, जो सत्ता के गलियारों में खड़े होकर भी जनता के दिल की धड़कन बना रहता है। उनकी विरासत हमें सिखाती है —
“पत्रकारिता जनसेवा है, और सेवा ही सच्चा संस्कार है।”
श्री देसराज बंटा: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ और जनसेवा के प्रतीक बने रहे।
श्री देसराज बंटा के निधन पर -प्रदेश के गणमान्य व्यक्तियों, संस्थाओं और पत्रकारिता जगत ने जिस एकसुरीय श्रद्धांजलि से उन्हें नमन किया, वह उनके व्यक्तित्व की विराटता को दर्शाता है। पालमपुर के विधायक आशीष बुटेल ने उन्हें “लोकतंत्र का चौथा मजबूत स्तंभ” बताते हुए कहा कि बंटा जी ने पत्रकारिता को सामाजिक न्याय और जनहित का मंच बनाया। उनकी कलम ने सदैव सत्ता को जनता के प्रति जवाबदेह बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री ब्रिज बिहारी लाल बुटेल ने उनकी स्मृति को नमन करते हुए कहा कि “पत्रकारिता में जो शून्य उत्पन्न हुआ है, वह अमिट है।” उन्होंने बंटा जी को एक ऐसा पत्रकार बताया, जिसने अपनी लेखनी से समाज के हर वर्ग को आवाज दी और शासन-प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित की।
रोटरी आई फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री के. बुटेल ने उनके जीवन संघर्षों को याद करते हुए कहा कि “वे संकटों की आग में तपकर कुंदन बने।” उन्होंने बताया कि बंटा जी ने न केवल अनगिनत गरीबों की सहायता की, बल्कि सत्य और न्याय के लिए हर संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई। उनका जीवन सादगी, साहस और सेवा का अनूठा संगम था।
डॉ. रामकुमार सूद ने श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें निस्वार्थ मित्र , महान परोपकारी, निडर पत्रकार और सच्चे समाजसेवी के रूप में याद किया। कांगड़ा जिले के प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों में गिने जाने वाले वाले डॉ. रामकुमार सूद ने कहा कि
बंटा जी उनके परम् मित्रों में से एक थे उन्होंने भावुक होकर कहा कि वे उन्हें दशकों से जानते थे और उन्होंने बंटा जी को हमेशा सरलता और सादगी के प्रतीक के रूप में पाया। अपने राजनीतिक संबंधों का उन्होंने कभी घमंड नहीं किया, बल्कि उन्हें समाज के हित में उपयोग किया। वे अपने परिवार के प्रति बेहद स्नेहशील थे और रिश्तेदारों में भी अत्यधिक प्रिय थे। उनके मित्र मंडली में भी वे सबसे अधिक सम्मानित और प्रिय थे, क्योंकि वे सच्चे मित्रता के मायने समझते थे।
डॉ. रामकुमार सूद ने कहा कि, यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों से परे जाकर समाज के लिए योगदान दिया। उनकी यह विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।
शनि सेवा सदन के प्रमुख परमेंद्र भाटिया ने कहा कि देसराज बंटा जी शनि सेवा सदन की मार्गदर्शक के रूप में हमें अपनी अमूल्य सलाह देते रहते थे तथा वह नियमित रूप से शनि सेवा सदन में दान किया करते थे।
प्रेस क्लब पालमपुर के पूर्व अध्यक्ष श्री संजीव सोनी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि “बंटा जी पत्रकारिता के सच्चे स्तंभ थे, जिन्होंने लोकहित और जनकल्याण को ही अपना धर्म माना।” उन्होंने बंटा जी के उस पहलू को रेखांकित किया, जहाँ उन्होंने निजी जीवन की सुख-सुविधाओं को त्यागकर समाज के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए।
Palampur Union of journalist के वर्तमान अध्यक्ष संजीव बाघला जी ने उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वह हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत थे और भविष्य में भी हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे उनके साहस और निडर पत्रकारिता को प्रेस क्लब पालमपुर उन्हें सलाम करता है और उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
ट्रिब्यून के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र सूद ने कहा बंटा जी अपने जीवन काल में पत्रकारिता के प्रति समर्पित रहे जन हित के मामलों को बड़ी मुखरता से उठाते रहे उनका समाधान करवाते रहे वे निडर पत्रकारिता का प्रतीक थे और हमारे लिए प्रेरणा स्रोत रहे
इन श्रद्धांजलियों से स्पष्ट है कि श्री देसराज बंटा का व्यक्तित्व किसी एक पहचान तक सीमित नहीं था। वे पत्रकार, समाजसेवी, मार्गदर्शक और नैतिकता के प्रतीक थे। उन्होंने अपने राजनीतिक और प्रशासनिक संबंधों को कभी व्यक्तिगत लाभ का साधन नहीं बनाया, बल्कि उन्हें जनसेवा का माध्यम बनाकर सच्चे लोकतंत्र की मिसाल पेश की। उनकी विरासत हमें यही सिखाती है कि “सत्ता और समाज के बीच सेतु बनकर ही पत्रकारिता अपना वास्तविक उद्देश्य पूरा करती है।”
श्री देसराज बंटा ने पत्रकारिता को जनता की आवाज और सामाजिक परिवर्तन का हथियार बनाया। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि निष्ठा, नैतिकता और निस्वार्थ सेवा से ही मनुष्य युगों-युगों तक अमर हो जाता है।