Editorial *रविंदर सूद — निर्भीक पत्रकारिता का जीवंत प्रतीक*


संपादकीय: रविंदर सूद — निर्भीक पत्रकारिता का जीवंत प्रतीक

जब लोकतंत्र लड़खड़ाता है, जब सत्ता बेपरवाह हो जाती है, और जब प्रशासन मौन साध लेता है—तब एक कलम का उठना, एक सच का बोलना पूरे समाज के लिए उम्मीद बन जाता है। पालमपुर के वरिष्ठ पत्रकार और इनकम टैक्स अधिवक्ता श्री रविंदर सूद ऐसे ही एक नाम हैं, जिन्होंने पिछले पचास वर्षों से पत्रकारिता को उसके मूल धर्म की याद दिलाई है। उनकी आवाज़ न तो ऊँची है, न आक्रामक—पर उनकी कलम वह सब कुछ कह जाती है जिसे बोलने से बड़े-बड़े डरते हैं।
वे कभी लाडले नहीं बनते, न ही किसी नेता या अफसर की जेब में रहते हैं। वे खुले दिल से बोलते हैं, जो जैसा है, वैसा लिखते हैं। वह ‘मीठा मीठा गप’ और ‘कड़वा कड़वा थू’ वाले पत्रकार नहीं हैं। बड़े-बड़े अफसरों, नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करना उनकी पत्रकारिता की विशेषता है।
रविंदर सूद का मानना है कि पत्रकारिता केवल समाचार छापने या सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों को आगे बढ़ाने का काम नहीं है। सच्ची पत्रकारिता का धर्म है—जनता की समस्या को सामने लाना, सत्ताधारी वर्ग से जवाब मांगना, और सामाजिक न्याय के लिए लड़ना।
आज जब पत्रकारिता में पक्षपात, झूठी सनसनी और पीत पत्रकारिता का बोलबाला है, रविंदर सूद ने कभी अपनी कलम को बेचा नहीं। उन्होंने न पत्रकारिता से पैसा कमाने का जरिया बनाया, न संबंधों की सीढ़ी। वे आज भी उस पुराने जमाने के प्रतिनिधि हैं जब पत्रकार सच्चे अर्थों में समाज के प्रहरी होते थे।
उन्होंने The Tribune को इस क्षेत्र में ,ऐसा मान-सम्मान दिलाया है कि अगर एक तरफ बाकी सभी अखबार रखे जाएं और दूसरी तरफ Tribune में छपी रविंदर सूद की रिपोर्टें, तो लोग Tribune को अधिक वजनदार मानेंगे। क्योंकि वहाँ खबर नहीं, सच्चाई छपती है।
उनका मानना कि पत्रकार केवल ‘रिपोर्टर’ नहीं होता, वह समाज का विवेक होता है।
“अपनी आवाज मत बेचो, दूसरों की आवाज बनो।”
आज जबकि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता और कॉर्पोरेट के दबाव में काम कर रहा है, रविंदर सूद उन गिने-चुने पत्रकारों में हैं जो लोकतंत्र का असली चौथा स्तंभ हैं। वो मशाल हैं जो अंधेरे में भी रास्ता दिखाती है, और वो चेतना हैं जो हमें बार-बार याद दिलाती है कि कलम झुके नहीं, बिके नहीं, डरे नहीं।
वे यह भी याद दिलाते हैं कि पत्रकार का काम पब्लिक रिलेशन बनना नहीं है। पत्रकार का कर्तव्य है—सवाल पूछना, सच बोलना, और व्यवस्था को आईना दिखाना।
रविंदर सूद कोई साधारण नाम नहीं। वे एक विचार हैं, , और उस मूल्य-आधारित पत्रकारिता के प्रतीक हैं जिसकी आज सबसे ज्यादा ज़रूरत है।
क्योंकि जब व्यवस्था विफल हो, तब रविंदर सूद जैसे लोग ही सच्चे लोकतंत्र की उम्मीद होते हैं।