

गाड़ियों पर मोबाइल नंबर: जीवनरक्षक सामाजिक दायित्व
– बी. के. सूद, मुख्य संपादक, ट्राई सिटी टाइम्स

कभी-कभी जीवन बचाने वाली सबसे बड़ी सुविधा किसी महंगे उपकरण या अत्याधुनिक तकनीक में नहीं, बल्कि एक छोटी सी जानकारी में छुपी होती है – जैसे एक वाहन पर लिखा मोबाइल नंबर।
आज भारत जैसे तेजी से शहरीकरण कर रहे देश में सड़क पर हर मिनट कीमती है, विशेषकर तब जब मामला किसी की जान बचाने का हो। फिर चाहे बात एक जाम में फंसी एंबुलेंस की हो, जो अस्पताल पहुंचने के लिए संघर्ष कर रही हो, या फिर हाईवे पर हुई किसी दुर्घटना की – हर क्षण महत्वपूर्ण होता है।
एंबुलेंस के आगे खड़ी गाड़ियाँ – एक अनदेखा अपराध
अभी हाल ही में पालमपुर सिविल अस्पताल में एक तस्वीर ने ध्यान खींचा। आपातकालीन सेवा प्रदान करने वाली एंबुलेंस के आगे कुछ गाड़ियाँ इस तरह खड़ी थीं कि न तो एंबुलेंस आगे बढ़ सकती थी और न ही मरीज को समय पर रेफर किया जा सकता था। स्थिति और चिंताजनक तब बनी जब इनमें से किसी भी गाड़ी के मालिक का पता नहीं चल पा रहा था। अगर गाड़ी पर मोबाइल नंबर अंकित होता, तो सिर्फ एक कॉल पर रास्ता साफ हो सकता था – शायद एक जीवन बच सकता था।
राष्ट्रीय सड़कों पर भी यही कहानी
नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर वर्ष लगभग 1.5 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं जिनमें से एक बड़ा हिस्सा समय पर सहायता न मिल पाने की वजह से मृत्यु में बदल जाता है। 2022 की NCRB रिपोर्ट बताती है कि लगभग 30% दुर्घटनाएँ ऐसी परिस्थितियों में हुईं जब घायलों को समय रहते अस्पताल नहीं पहुँचाया जा सका। इन घटनाओं में से कई बार आस-पास खड़ी गाड़ियों या जाम के कारण एंबुलेंस को समय पर पहुँचना संभव नहीं हो पाया।
अब सोचिए – यदि दुर्घटनास्थल पर बाधा बने वाहनों पर मोबाइल नंबर लिखा होता तो क्या स्थिति अलग नहीं होती?
निजता बनाम जिम्मेदारी – संतुलन की आवश्यकता
कुछ लोग इस प्रस्तावित व्यवस्था को निजता के हनन की संज्ञा देते हैं। यह चिंता अपने स्थान पर जायज़ है। परंतु यह भी उतना ही आवश्यक है कि हम “सार्वजनिक जीवन में निजी जिम्मेदारी” की भावना को समझें। कोई भी वाहन जब सार्वजनिक मार्ग पर चलता है, वह एक सामूहिक प्रणाली का हिस्सा होता है और उस प्रणाली में सहयोग करना उसका सामाजिक कर्तव्य है।
हम टेक्नोलॉजी की मदद से निजता और जिम्मेदारी में संतुलन बना सकते हैं। उदाहरण स्वरूप:
डिजिटल क्यूआर कोड प्रणाली, जो वाहन के रजिस्ट्रेशन से जुड़ी हो और जिसे पुलिस या अधिकृत अधिकारी स्कैन कर वाहन मालिक से संपर्क कर सकें।
डिजिटल हेल्पलाइन ऐप्स जो सीधे वाहन मालिक को नोटिफिकेशन भेज सकें, बिना मोबाइल नंबर सार्वजनिक किए।
‘डिस्टर्बेंस अलर्ट’ प्रणाली, जो गाड़ी के भीतर लगे एक ऑटोमैटिक सिस्टम से जुड़ी हो और वाहन मालिक तक अलर्ट भेज सके।
स्वैच्छिक शुरुआत की आवश्यकता
जब तक सरकार इस दिशा में राष्ट्रीय नीति नहीं बनाती, हम नागरिकों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए स्वयं पहल करनी चाहिए। बहुत से लोग अपने वाहनों पर “In case of emergency, contact: XXXXX-XXXXX” जैसे स्टिकर लगाकर यह उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह एक सराहनीय सामाजिक चेतना है, जो अनुकरणीय बन सकती है।
निष्कर्ष – एक छोटा कदम, एक बड़ी सुरक्षा
सरकार को चाहिए कि वह इसे सिर्फ सुझाव न रहने दे, बल्कि इसे अनिवार्य सामाजिक सुरक्षा उपाय माने। एक सशक्त नियम बने, जिससे वाहनों पर मोबाइल नंबर या संपर्क व्यवस्था अनिवार्य हो – चाहे वह सीधे हो या डिजिटल माध्यम से।
क्योंकि किसी दिन, हो सकता है आपकी ही एंबुलेंस एक ऐसी गाड़ी के पीछे फँसी हो, जिसके मालिक तक आप समय पर न पहुँच सकें।