*राजनीती और विभाजन* “
“राजनीती और विभाजन “
क्या देश को राजनीति ने , क्षेत्रवाद , भाषा , जाति और धर्म के नाम पर विभाजित कर रखा है ? अगर इस सवाल पर गौर से सोचें तो उत्तर हां में मिलता है । जरा सोचिये देश के प्रधान मंत्री से लेकर विधायक तक अधिकतर हिन्दू है । प्रशासन में हिन्दू तादाद अधिक है , अगर फिर लव जिहाद जैसे शब्द सुनाई देते हैं तो कहीं न कहीं राजनीति जरूर है , कैसे कानून की होते हुए लव जिहाद नामक बीमारी पैदा हो सकती है ,क्या इसके पीछे राजनीति नही है ? अगर यह केरल से भी शुरू हुआ हैं तो इसका अर्थ वहां की राजनीति या नेताओं ने समय रहते कार्यवाही नही की नतीजा यह धोखेबाजी अधिकांश पूरे देश को कम तादाद से ही सही अपनी चपेट में ले चुकी है । दूसरा पक्ष यह भीं है की लड़कियों के मामले में धोखे बाजी तो हिंदू भी करते है अक्सर बेटियों से रिश्ते करती बार बहुत से ऐसे केस हैं जो धोखे से किए गए जैसे लड़के के बारे में गलत जानकारी दे कर , इन घटनाओं को किस जिहाद की श्रेणी में रखेंगे । अक्सर अधिकतर परिवारों में महिलाऐं घरेलू हिंसा का शिकार है और अधिकांश अपनी नियति समझ कर खामोशी धारण कर लेता हैं । वास्त्व में सुविधा की राजनीति ने विशुद्ध कानूनी समस्या को बड़ी चालाकी से दोनो और से धर्म से जोड़ दिया । नतीजा मुस्लिम धार्मिक नेता मुस्लिम अपराधी तो को बचाने के लिए राजनीति से गठजोड़ कर लेते है ठीक ऐसे ही इस तरफ हो रहा है । हर राजनितिक दल हर घटना का सुविधा के अनुसार इस्तेमाल अपने राजनितिक लाभ के लिए करता है और पिस्ते बेगुनाह है ।
ऐसा ही जाति के नाम पर हर जाति के नेता अलग अलग है और जहर फैलाने में कहीं नही चूकते । कुछ नेता ब्राह्मण लोगो को गाली देकर अपनी राजनीति चमकाते हैं और कुछ शोषित वर्ग को । यह सत्य है की आरक्षण की जरुरत शोषित वर्ग को है लेकिन आजादी के 75 साल तक अभी तक कोई भी राजनेतिक नेता या दल इस पर विश्लेषण नही कर रहा । अगर आरक्षण से लाभ नही मिल रहा तो कोई वैकल्पिक व्यवस्था शोषित लोगो के लिए होनी चाहिए जो सर्वमान्य हो और सहमति हो , सामाजिक न्याय और बहुत बड़े जातीय वर्ग को सत्ता में हिस्से दारी तो सुनिश्चित करनी ही होगी । लेकिन राजनीति यहां भी हावी हो जाती है और गाली दे कर अपनी तुष्टि कर लेती है । ऐसा ही क्षेत्रवाद है हर क्षेत्र के लोगो को अपनी समस्याएं का पता है और कमियों का भी और क्षेत्रवाद के नाम सत्ता में हिस्सेदारी की मांग यहां भी राजनीति खुल खेलती है। नेता लोग भी क्षेत्रवाद के नाम पर बंट जाते है । यह नही सोचते की हर क्षैत्र का समान विकास लाजमी हैं बस लोगो को बांट दिया जाता है । भाषा तो है ही , भाषा के नाम पर संघर्ष देश आजाद होते ही हो गया और रजनीति ने प्रदेशों का निमार्ण ही भाषाई आधार पर किया लेकिन राजनीति फिर भी समाप्त नही हुईं । आज भी एक ही प्रदेष में भाषा का संघर्ष जारी है और राजनीति अपना खेल खेल रही है । महाराष्ट्र की राजनीती ही मराठी से शुरू होती है , ऐसे तमिल या अन्य राज्यों में भी है अब हिमाचल में भी भाषा में राजनीति की सुगवगाहट शुरू होने लगी है इसलिए सावधान रहीए । देश का दुर्भाग्य है कि हम नागरिक बंट रहे हैं ।