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*यह_तो_इतेफाक़_है*:-लेखक *हेमांशु मिश्रा*

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#यह_तो_इतेफाक़_है

#हेमांशु_मिश्रा

मैं धोखे में हूँ
या सच मे
जून की दुपहरी में ठंडक है
बदलते मौसम के मिज़ाज
कंपकपाती आवाज़
टकराते अल्फ़ाज़
क्या कोई नया आगाज़ है
नही
यह तो इतेफाक़ है
यह तो इतेफाक़ है

मैं धोखे में हूँ
या सच मे
साल भर के मौसम को
दस दिन भी थे कम
नई रुत में जीवन गया है थम
छम छम बारिश सांसे हैं बेदम
कभी गर्मी कभी सर्दी
कभी बरसात जैसी नम
तपते तीर ढूंढ रहे हम

नही
यह तो इतेफाक़ है
यह तो इतेफाक़ है

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