Mandi/ Palampur/ Dharamshala

*आरक्षण को लागू करने का फार्मूला ( पैमाना ) रोस्टर प्रणाली है न कि जनसँख्या :- प्रवीन कुमार पूर्व विधायक पालमपुर*

 

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आरक्षण को लागू करने का फार्मूला ( पैमाना ) रोस्टर प्रणाली है न कि जनसँख्या :- प्रवीन कुमार पूर्व विधायक पालमपुर

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….. नगर निगम पालमपुर में तय आरक्षण के मुताबिक  12 अक्टूबर को महापौर के कार्य काल के ढाई वर्ष समाप्त हो रहे हैं। ऐसे में रोस्टर प्रणाली के आधार पर यह पद ढाई साल अनुसूचित जाति व ढाई साल अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित था । लेकिन अव सुक्खू सरकार में सम्बधित विभाग के विशेषज्ञों ने यह शर्त जड़ दी कि इस पद पर नगर निगम में अनुसूचित जनजाति की संख्या 15 प्रतिशत अनिवार्य है । इसी विषय को लेकर सेवा निवृत गद्दी जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी कल्याण संगठन का प्रतिनिधि मण्डल श्री मनसा राम जी के नेतृत्व में पालमपुर के पूर्व विधायक प्रवीन कुमार से उनके आवास पर मिला । इस शिष्ट मण्डल ने तथ्यों एवं तर्कों भरा पत्र पूर्व विधायक की सेवा में प्रेषित किया । गद्दी समुदाय के इन नेताओं ने पालमपुर में सत्ता की ताकत का ज़िक्र करते हुए कहा सर्वप्रथम किस तरह वार्ड नम्बर तीन का चुनाव रद्द हुआ । जिसमें उस चुनी हुई महिला पार्षद के ऊपर कोई दोष एवं लाछन नहीं था जिसे मतदाताओं ने दिल खोलकर बोट दिये ओर जीत का सेहरा उसके माथे पर पहनाया । वहीं दूसरी तरफ वार्ड नम्बर एक से अनुसूचित जनजाति के लिए (आरक्षित वार्ड) से चुने गये एक मात्र पार्षद श्री राज कुमार का क्या कसूर है जिसे कि अव 15 फीसदी अनुसूचित जनजाति की आबादी होने की दुहाई देकर इस पद से बाहर करने की सुनियोजित चाल रची जा रही है। इन नेताओं ने पूर्व विधायक से दावे ओर विशवास के साथ कहा यह सव वन्दोवस्त किसके लिए हो रहा है गद्दी समुदाय इस निर्णय को बर्दाश्त नहीं करेगा । पूर्व विधायक ने इन सभी नेताओं को आश्वसत करते हुए कहा कि उन्होंने “इन्साफ संस्था” का गठन ही इसलिए किया है। जहां किसी के साथ वे- इन्साफी होगी संस्था अपनी आवाज़ बुलन्द करेगी । इसी साथ के पूर्व विधायक ने सरकार से जानना चाहता है जब रोस्टर के अनुसार दूसरे चरण के अढाई वर्ष के लिए अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है तो उस समय भी नगर निगम के दायरे में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या इतनी ही थी यानी कि वर्ष 2011 की जनगणना को ही आधार बनाकर आरक्षण रोस्टर महापौर पद के लिए निर्धारित किया गया था। ऐसे में अब महापौर पद के चुनाव से ठीक पहले आरक्षण रोस्टर में बदलाव तथा अधिसूचना जारी न करना स्वयं दर्शाता है कि कहीं दाल में कुछ काला है

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