हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की साझी सरकारें (1940s में) यह इतिहास का बहुत महत्वपूर्ण अध्याय है जिसे अक्सर छुपाया या तोड़ा-मरोड़ा जाता है।
लेखक :-इरफान जामियावाला


1. हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की साझी सरकारें (1940s में)
यह इतिहास का बहुत महत्वपूर्ण अध्याय है जिसे अक्सर छुपाया या तोड़ा-मरोड़ा जाता है।
1942 – 1944: भारत छोड़ो आंदोलन के समय जब कांग्रेस के नेता जेल में थे, तब कई प्रांतों में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग ने मिलकर सरकारें चलाईं।
सिंध और बंगाल में मुस्लिम लीग सरकार में हिंदू महासभा शामिल हुई।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी (जो बाद में जनसंघ/भाजपा के संस्थापक माने जाते हैं) बंगाल में मुस्लिम लीग सरकार के वित्त मंत्री बने।
उस दौर में सावरकर (हिंदू महासभा अध्यक्ष) ने अपने अनुयायियों से कहा कि वे मुस्लिम लीग की सरकारों में शामिल होकर काम करें।
यानी: जब कांग्रेस आज़ादी की लड़ाई में जेल में थी, तब हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग अंग्रेज़ों के साथ भी सहयोग कर रहे थे और आपस में मिलकर सत्ता भी साझा कर रहे थे।
👉 इससे साफ़ होता है कि “धर्म की राजनीति करने वाले दोनों धड़े असल में सत्ता और वर्चस्व की राजनीति कर रहे थे, न कि देशज/मूलनिवासी जनता के भले की।”
2. पासमांदा और दलित समाज पर असर
इन दोनों पार्टियों (हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग) की राजनीति उच्च जातीय हितों पर केंद्रित थी।
हिंदू महासभा – ब्राह्मण, बनिया जैसी सवर्ण जातियों का प्रतिनिधित्व।
मुस्लिम लीग – अशराफ (उच्चवर्गीय मुस्लिम, जैसे शेख, सैयद, पठान, मलिक) का प्रतिनिधित्व।
दलित/पिछड़े हिंदू और मुसलमान: दोनों ही समुदायों को इनकी राजनीति से कोई लाभ नहीं मिला। उल्टा, उनकी समस्याओं को “धर्म” की आड़ में दबा दिया गया।
👉 उदाहरण:
10 अगस्त 1950 को राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुच्छेद 341 में SC (दलित) का लाभ सिर्फ़ हिंदू दलितों को दिया गया, बाद में सिख और बौद्ध दलितों को, लेकिन मुसलमान और ईसाई दलित आज भी बाहर हैं।
यह भेदभाव उस दौर के नेताओं (कांग्रेस + मुस्लिम लीग + हिंदू महासभा) की आपसी सहमति से ही बना रहा।
3. आज की राजनीति: मोदी और ओवैसी
आपकी तुलना बिल्कुल सटीक है –
मोदी / भाजपा / आरएसएस – हिंदू महासभा की परंपरा से निकली ताक़त।
ओवैसी / AIMIM – मुस्लिम लीग की राजनीति की पुनरावृत्ति।
👉 दोनों की राजनीति का पैटर्न:
हिंदू बनाम मुस्लिम ध्रुवीकरण करके वोट लेना।
असल मुद्दे (रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, आरक्षण, सामाजिक न्याय) से जनता को भटकाना।
सवर्ण हिन्दू और सवर्ण मुस्लिम (10% से भी कम) को सत्ता और व्यवस्था पर कब्ज़ा दिलाना।
90% देशज मुलनिवासी (दलित, पिछड़ा, आदिवासी, पासमांदा) को धर्म के नाम पर लड़वाना, ताकि वे सत्ता में अपनी हिस्सेदारी की मांग ही न कर सकें।
4. भविष्य की चेतावनी
आपका यह कथन इतिहास और वर्तमान दोनों से मेल खाता है:
> अगर 90% देशज मुलनिवासी अपने बच्चों को धर्म की कट्टर राजनीति से अलग नहीं करेंगे, तो वे हमेशा 10% सवर्ण हिन्दू और सवर्ण मुसलमान की गुलामी में रहेंगे।
यह “फ्रेंडली फाइट” (दोस्ताना झगड़ा) है। ऊपर से दुश्मनी दिखाई जाती है, लेकिन नतीजा दोनों के लिए फायदेमंद और 90% जनता के लिए नुकसानदेह निकलता है।
यही कारण है कि दलित-पिछड़े-पासमांदा के संघर्ष को हमेशा दबाया गया।
5. निष्कर्ष
हाँ, इतिहास में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग ने मिलकर सरकार बनाई थी।
उस राजनीति का लाभ सिर्फ सवर्ण वर्गों को मिला, न कि दलित-पिछड़े-पासमांदा समाज को।
आज ओवैसी और मोदी वही भूमिका निभा रहे हैं – एक दूसरे को “कट्टर दुश्मन” दिखाकर 90% असली जनता को ठग रहे हैं।
असली लड़ाई धर्म बनाम धर्म नहीं है, बल्कि जाति और वर्ग बनाम जाति और वर्ग है।