*पाठकों के लेख :संजीव थापर पालमपुर*
बंद कमरे में किसी राजनीतिक दल के धुरंधर गहन चर्चा में लीन हैं , बीच बीच में धीमी आवाज ऊंची भी हो रही है शायद किसी बात पे रोष प्रकट हो रहा है । अरे यह क्या कुछ लोग तो अपनी सीटों से खड़े हो कर लड़ने पर भी उतारू हो गए हैं फिर बीच में पड़ कर किसी ने उन्हें समझाया है और वे शांत हो कर फिर बैठ गए हैं । कुछ लोग बाहर से भीतर आए हैं उनके हाथों में ब्रीफ केस हैं और सभी की नज़र आने वाले लोगों पे कम और ब्रीफ केसो पे ज्यादा है । कोई भी अनुमान लगा सकता है कि उनमें क्या होगा । दोस्तो मैं आपको बता दूं कि कुछ एक सैद्धांतिक दलों को छोड़ कर किसी भी निर्वाचन के आने से पहले राजनीतिक दलों द्वारा अपने लोगों में पार्टी के टिकट देने हेतु तय की गई बैठक का यह दृश्य है । इन बैठकों में टिकटार्थियों और वितरित करने वाले गणमान्यों द्वारा क्या क्या नहीं किया जाता सोचिए भी मत । एक एक टिकट के वितरण हेतु जाति , धर्म , नकदी , बाहुबली स्तर , दल के प्रमुख के प्रति आपका झुकाव और विश्वसनीयता और ना जाने क्या क्या ताम झाम किया जाता है । ब्रीफकेस भी इस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । संक्षेप में कहूं तो “राजनीति शास्त्र” की लोकतंत्र से संबन्धित परिभाषा को तार तार करने का कार्य यहां किया जाता है । एक बात कहूं , बुरा मत मानियेगा , मुझे नहीं पता कि यह जो उपरोक्त बातें मैंने कही हैं कितने प्रतिशत सत्य हैं । यह सब मैंने यूट्यूब के कुकुरमुत्तों की तरह फैले चैनल्स के माध्यम से जानी हैं । यदि ये बातें पूर्णता गलत हैं तो प्रश्नचिन्ह उन चैनल्स की ओर उठना चाहिए दोस्तो और यदि यह सत्य या कहें कुछ प्रतिशत तक ही सत्य हैं तो …. तो मेरा ध्यान 36 साल पहले अपने सरकारी कालेज धर्मशाला की राजनीति शास्त्र की क्लास में पहुंच गया है जहां मेरे प्रिय और आदरणीय प्रोफेसर लाल मन डोगरा जी पढ़ा रहे हैं और विषय है ” एथिक्स इन पॉलिटिक्स ” जिसमे उन्होंने राजनीति में उच्च आदर्शों को बनाए रखने हेतु हमें प्रेरित किया था और कहा था कि हमें हमेशा बिना किसी लालच के आदर्शवान पढ़े लिखे लोगों को राजनीति में आगे लाना चाहिए । यही लोग राज्य विधानसभाओं में या पार्लियामेंट में जा कर अच्छी नीतियां बनायेंगे और देश उन्नति की ओर अग्रसर होगा । मुझे एक पल में सब कुछ याद आ गया है मान्यवर किंतु मैं सोच रहा हूं तो यह विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा घोषित ” मुफ्त नीति (freebies) ” क्या हैं । क्या यह सब कुछ मतदाताओं को लुभाने के लिए नहीं है ? यह जो हाल ही में हुए निर्वाचनों में पोलराइजेशन धर्म के आधार पर हुई , कौन जिम्मेवार है , बाहुबलियों को टिकट दिए गए मगर क्यूं ? क्या आपने एथिक्स की राजनीति को तिहाड़ में बंद कर दिया है ? प्रश्न तो बहुत हैं मगर उत्तर देने वाला कोई नहीं । राजनीति शास्त्र को ही संभवत पुनः परिभाषित करने का समय आ गया है । अभी अभी मेरे कानों में किसी ने कहा है कि हमारे प्रदेश हिमाचल में इस तरह की बेहया राजनीति संभव नहीं , ना जाने क्यूं मैं बड़ी जोर से हंसा हूं दोस्तो शायद कटाक्ष की हंसी है ।

संजीव थापर
बंदला, पालमपुर