*Editorial *क्या पेड़ के वजह से किसी की जान जानी चाहिए ?? किसी का एक्सीडेंट होना चाहिए??किसी को परमानेंट डिसेबिलिटी हो जानी चाहिए ???*
क्या पेड़ के वजह से किसी की जान जानी चाहिए ?? किसी का एक्सीडेंट होना चाहिए??किसी को परमानेंट डिसेबिलिटी हो जानी चाहिए ???
#bksood
पेड़ जीवन के लिए जरूरी है, पर्यावरण और वातावरण के संतुलन के लिए आवश्यक है परंतु पेड़ के वजह से किसी की जान जानी चाहिए ??
किसी का एक्सीडेंट होना चाहिए??
किसी को परमानेंट डिसेबिलिटी हो जानी चाहिए ???
किसी सूखे हुए पेड़ की वजह से पांच 10 लोगों की जान जानी चाहिए ??
कुछ पेड़ों की वजह से सरकार को लाखों रुपए की आय के साधन खत्म हो जाने चाहिए ??
कुछ पेड़ों की वजह से कोई बड़ा प्रोजेक्ट रुक जाना चाहिए ??जिसमें सैकड़ों बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता हो ..
या कुछ पेड़ों की वजह से हमारे सड़क निर्माण निर्माण भवन निर्माण रुक जाने चाहिए??..
या कुछ पेड़ों की वजह से जो उपजाऊ जमीनों के आसपास हैं उन पर जंगली जानवर बंदर आदि है अपना डेरा बनाए रखते हैं और किसान लोग वहां पर अपनी फसल नहीं उगा सकते अगर उगाए तो सारी फसल को वह तबाह कर जाते हैं क्या ऐसे पेड़ों की आवश्यकता है??
यह सब ज्वलंत प्रश्न हैं जिनका जवाब हमारे अंधे काले कानून के पास कभी नहीं मिलेगा..
कुछ लोग पर्यावरण के नाम पर राजनीति करते हैं कि एक पेड़ नहीं काटना चाहिए चाहिए 4 इंसानों की जान चली जाए😢 सूखा पेड़ नहीं काटना चाहिए चाहे उसकी वजह से किसी राहगीर की जान चली जाए।
10 पेड़ नहीं कटने चाहिए चाहे उसकी वजह से करोड़ों का प्रोजेक्ट रुक जाए ,जिसमें बीसियों युवाओं को रोजगार मिल सकता हो ।
जबकि पर्यावरण कानून में यह प्रावधान होना चाहिए कि किसी प्रोजेक्ट के लिए अगर कोई 10 पेड़ काटता है तो वहां पर काटे गए 10 पेड़ों की जगह 20 पेड़ उगाए जाएं और यह सुनिश्चित किया जाए कि उन 20 पेड़ों में से कम से कम 15 पेड़ वहां पर जीवित रहे ।
सड़क पर कोई सूखा पेड़ खड़ा है उसे काटने में क्या दिक्कत है? क्या प्रशासन तभी जागृत होगा जब उस पेड़ के वजह से किसी की जान जाएगी? या कोई हादसा होगा ?
4 पेड़ों की वजह से अगर सड़क का निर्माण रुक जाए और उसकी चौड़ाई कम करनी पड़ जाए हमारे कानून को वह तो मंजूर है लेकिन चार पेड़ों की वजह 10 पेड़ लगा दिए जाएं और 4 पेड़ों को काटकर वहां पर सड़क को चौड़ा कर दिया जाए, ऐसा कानून को मंजूर नहीं ।
हालांकि अगर सड़क तंग है तंग सड़क की वजह से वहाँ पर ट्रैफिक जाम होने के कारण डीजल पेट्रोल का कितना नुकसान होता है और देश की आर्थिकी पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ता है यह कानून के सोचने का विषय नहीं है शायद। नीचे दिए गए चित्रों से स्पष्ट है कि पेड़ के नहीं कटने से सड़क सड़क के विस्तारीकरण पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ रहा है वहां पर कभी भी कोई भी एक्सीडेंट हो सकता है किसी की जान जा सकती है सूखा पेड़ अगर किसी बस पर गिर गया तो 5-7 इंसानों का मरना तय है ,परंतु इस विषय पर कोई नहीं सोचता अगर प्रशासन कुछ करने की सोचेगा भी तो ,पर्यावरणविद आ जाएंगे और प्रशासनिक अधिकारियों का जीना हराम कर देंगे ।
मेरे हिसाब से पर्यावरण विदों को भी देश के हित में सोचने की जरूरत है अगर हम यह गले सड़े बने कानून और लकीर के फकीर बने रहेंगे तो देश कभी तरक्की नहीं करेगा।
यदि सती प्रथा आज भी जारी रहती तो शायद कितनी ही महिलाएं इस कुप्रथा की भेंट चढ़ गई होती ,पेड़ों को ना काटने का फरमान भी सती प्रथा के फरमान से कम नहीं लगता।
Bk
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बहुत दुखद खबर कि 8-10 पहले बनूरी के पास पेड़ की टहनी गिरने से एक स्कूटर सवार की जान चली गई पेड़ की टहनी नहीं कटनी चाहिए, इंसान की जान भले ही चले जाए #इस मुद्दे पर 7 दिसंबर 2021 को मेरे द्वारा लिखा गया आर्टिकल जिसमें शंका जाहिर की गई थी कि पेड़ों की वजह से इंसानों की जान जा सकती है सरकार और प्रशासन के लिए क्या पेड़ जरूरी है या इंसानों की जिंदगीयां।
परंतु प्रशासन के कान पर जूं कभी नहीं रेंगती। हां जूं तभी रेंगेगी यदि आज तक या जी टीवी वाले किसी मुद्दे को उठाएंगे या कोई बड़ा अखबार पंजाब केसरी अमर उजाला आदि विषय को उठाएंगे ।
हम जैसे छोटे मोटे पत्रकारों को ना तो प्रशासन कोई तरजीह देता है और ना नेतागण ।
जितना भी मर्जी सच लिख लो सभी सोचते हैं यह बकवास है। परंतु कई बार छोटे आदमी भी अच्छे अच्छे सुझाव और अच्छी बातें लिख सकते हैं यह इस बात से साबित हो गया है ।
मैं लगभग पिछले 5 सालों से इस विषय पर लिख रहा हूं कि सड़कों के किनारे कुछ पेड़ बहुत बहुत खतरनाक है जो कभी भी किसी भी वक्त दुर्घटना का कारण बन सकते हैं ।
और कल पालमपुर की बनूरी गांव के पास एक आदमी की जान चली गई है ।
तूफान में पेड़ की एक टहनी गिरने से ही इंसान की जान चली गई अगर पूरा पेड़ किसी बस पर गिर जाए तो क्या होगा आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं। भविष्य में ना जाने कितने लोगों की जान जा सकती है अगर यह सूखे या हरे पेड़ किसी बस पर गिर जाए तो कम से कम 5 -7 लोग मर सकते हैं। परंतु बात वही है कि अच्छे अच्छे सुझावों को कौन सुनेगा।
हां किसी बड़े मीडिया हाउस की तरफ से यह मुद्दा उठाया जाए तो शायद कुछ फर्क पड़ेगा परन्तु बड़े-बड़े मीडिया हाउसेस के पास राजनीति में उलझे हुए मुद्दे इतने अधिक है कि वह जनता के मुद्दे कब और कैसे उठाएं इसका समय उन्हें नहीं मिल पाता है यह उनकी मजबूरी है ।परंतु सामने दिखाई दे रहे खतरे को भी हम आंखें मूंद कर बैठे रहे यह कहां की अकल मंदी है। जरूरी नहीं है कि हर खतरे से आगाह मीडिया करें हर चेतावनी मीडिया दे हर नुकसान की भविष्यवाणी मीडिया करें।
पता सरकार जी को भी होता है परन्तु वह उस मोड में काम करते हैं कि बने रहो पगला काम करेगा अगला और शासक जी को तो राजनीतिक मुद्दे सुलझाने से वक्त नहीं मिल पाता तो वह लोगों की जान की कब सोचे।