*पाठकों के लेख : लेखक :-महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*
12 अगस्त 2022– (#बिहार_मे_नीतीश_का_यू_टर्न)–
इस वर्ष हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है। हम आजाद भारत के 75 वर्षों का अवलोकन करेंगे। इस अवलोकन के बारे मे विस्तृत चर्चा हम आगे के ब्लॉग मे करेंगे, लेकिन आज बिहार के घटनाक्रम को देखते हुए यह कहना होगा इन 75 वर्षों मे राजनेताओं ने नैतिक मूल्यों को पुरी तरह छोड़ दिया है। नैतिकता और सिद्धांत की राजनिति का स्थान सत्ता और सुविधा की राजनीति ने ले लिया है। राजनीति के मौसम विज्ञानी माने जाने वाले नीतीश पिछ्ले पांच वर्ष मे दो बार सुविधा की राजनीति का खेल खेल चुके है। हालांकि यह भी सही है कि सुविधा की राजनीति का खेल देश की हर पार्टी खेल रही है। कोई भी पार्टी अपवाद नहीं है। बिहार मे पलटू राम के नाम से मशहूर नीतीश ने भाजपा का साथ छोड़कर लालू प्रसाद की पार्टी राजद के साथ महागठबंधन बना कर सरकार बनाई और बीच मे ही राजद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए महागठबंधन को तोड़कर अपने पुराने सहयोगी भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। उस समय राजद नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश चाचा को देश का सबसे बड़ा धोखेबाज बताया था।
स्मरण रहे उस समय भाजपा खुश थी और नीतीश का अभिनंदन कर रही थी। फिर 2020 मे भाजपा और नितीश ने मिलकर चुनाव लड़ा और नीतीश के कम विधायक होने के बावजूद भाजपा ने नीतीश को बिहार का नेतृत्व सौंप दिया था, लेकिन नीतीश ने एक बार फिर रंग बदला और भाजपा को छोड़कर राजद के साथ हाथ मिलाकर बिहार मे आठवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ ले ली है। इस बार उन्होने भाजपा पर जदयू को तोड़ने का षडयंत्र रचने का आरोप लगाते हुए पलटी मारी है। अब भाजपा नीतीश को धोखेबाज बता रही है और इस घटनाक्रम को जनादेश का अपमान बता रही है। इससे पहले सत्ता और सुविधा की राजनीति का खेल महाराष्ट्रा मे भी खेला गया था। अब सत्ता प्राप्ति के लिए न तो विचारधारा न ही कार्यक्रम जरूरी समझे जा रहे है। आप चुनाव किसी पार्टी के साथ मिलकर लड़ते और जीतते हो और सत्ता सुख विरोधी पार्टी के साथ मिलकर लेते हो। इसका परिणाम यह है कि आम जनता मे राजनैतिक दलों और नेताओं की विश्वसनीयता शुन्य हो गई है।
वर्तमान नेताओं को जनता इसलिए झेल रही है क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है। आज सभी पार्टियां सत्ता और सुविधा की राजनीति कर रही है। भले पार्टियाँ सत्ता प्राप्ति कर अपने को मजबूत समझ रही हो लेकिन उनकी इस कारगुजारी से लोकतंत्र और देश कमजोर हो रहा है क्योकि लोकतंत्र मे लोकलाज जरूरी है। लेकिन इन 75 वर्षों मे अधिकांश नेताओं और पार्टियों ने लोकलाज की परवाह करनी छोड़ दी है। आज इतना ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।
नोट– अपनी निजी व्यस्तता से थोड़ी राहत के बाद पुनः नियमित ब्लॉग की शुरुआत कर रहा हूँ। दोस्तों और पाठकों से पहले की तरह स्नेह और सहयोग की अपेक्षा रखता हूँ। आदर सहित।